*कर्ज़*

नटवर विद्यार्थी
अभी तक देश से हमने,
लिया है, बस लिया ही है ।
कभी सोचा नहीं हमने ,
देश को कुछ दिया भी है ?

है इसके भी धड़कता दिल,
रगों में रक्त बहता है ।
इसे भी दर्द होता है ,
कभी चिंतन किया भी है ?

इसी पर जन्म पाया है ,
इसी से ही हुए पोषित ।
कहा माता इसे हमने ,
कभी दर्जा दिया भी है ?

बड़े कृतघ्न हैं हम सब,
देश को भूल बैठे हैं ।
दिया सब कुछ हमें जिसने,
कर्ज़ चुकता किया भी है ?
– *नटवर पारीक,डीडवाना*

1 thought on “*कर्ज़*”

  1. 👍निःसंदेह आपकी अभिव्यक्ति के शब्द व गुण प्रासंगिक अवश्य है….. आपके सकारात्मक भावो के साथ विहंगम तालमेल को कृतत्व भाव से आभार👌👍🌹

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