*देशभक्त*

नटवर विद्यार्थी
घर का सारा कूड़ा-कचरा ,
खुली सड़क पर डाल रहा हूँ ।
गुटखा खाकर दीवारों पर ,
अपनी पीक उछाल रहा हूँ ।
अपनी इच्छा का मालिक हूँ ,
नहीं किसी की मैं सुनता हूँ ।
मुझे नहीं परवाह देश की ,
फिर भी देशभक्त बनता हूँ ।

मेरी बाइक ,मेरी गाड़ी ,
चाहे जितनों को बैठाऊँ ।
नियम- क़ायदे सभी फ़ालतू ,
हेलमेट क्यों बेल्ट लगाऊँ ?
ले-देकर सब काम निपटते ,
इसी नियम पर मैं चलता हूँ ।
मुझे नहीं परवाह देश की ,
फिर भी देशभक्त बनता हूँ ।

प्रेमभाव से रहना – चलना ,
मुझको यारों बहुत अखरता ।
अपना उल्लू सीधा करने ,
मनमुटाव की बातें करता ।
भाई – भाई टकरा जाए ,
ऐसा उनमें विष भरता हूँ ।
मुझे नहीं परवाह देश की ,
फिर भी देशभक्त बनता हूँ ।

एक अकेला नहीं, कई है ,
मेरे पथ पर चलने वाले ।
इसी सोच के बिछा रखे हैं ,
इधर-उधर मकड़ी के जाले ।
इससे मेरा काम चल रहा ,
इसीलिए जाले बुनता हूँ ।
मुझे नहीं परवाह देश की ,
फिर भी देशभक्त बनता हूँ ।
– *नटवर पारीक, डीडवाना*

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