लड़कों की तुलना में लड़कियां अधिक धोखा देती हैं?

अव्वल तो दुनिया में सच्चा व नि:स्वार्थ प्यार दुर्लभ है। श्रीकृष्ण-राधा के बाद गिनाने भर के लिए हमारे पास लैला-मजनूं, शीरीं-फरहाद, रोमियो-जूलियट, सोनी-महिवाल, ढ़ोला-मरवण जैसे कुछ किस्से ही हैं। तभी तो एक फिल्मी गीत में यह पंक्ति लिखी गई है- किताबों में छपते हैं, चाहत के किस्से, हकीकत की दुनिया में चाहत नहीं है। बावजूद इसके लोग सच्चे प्यार के दावे करते हैं, तो हंसी आती है। चालीस-पचास साल पहले की बात फिर भी और थी, तब प्यार के इजहार के अवसर ही कम मिला करते थे। बंधन भी कई प्रकार के थे, इस कारण प्रेम संबंध उजागर भी कम ही होते थे। अलबत्ता उनमें निभाने जज्बा होता था। मगर अब हालात बदल चुके हैं। सामान्य सजातीय तो बहुत आम बात है, बल्कि अंतर्धामिक व अंतरजातीय प्रेम संबंध भी खुल कर सामने आने लगे हैं। कोई पेरामीटर तो तय नहीं किया जा सकता, मगर फिर भी आज जो प्रेम विवाह हो रहे हैं, उनमें अमूमन समझदार प्रेमी-प्रेमिका शादी से पहले हिसाब-किताब लगा लेते हैं। अर्थात स्टेटस का ख्याल रखने लगे हैं। वैसे यह है उचित, क्योंकि यदि समान आर्थिक हालात नहीं होंगे तो आगे जा कर विसंगति ही उत्पन्न हो सकती है। प्यार में जोड़-बाकी-गुणा-भाग करने के बाद भी ब्रेक अप की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। भारत जैसे विकासशील देशों में अलबत्ता इनकी संख्या कम है, मगर अमरीका जैसे विकसित देशों में हालात बहुत खराब हैं।
ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर इसकी वजह क्या है? कदाचित ऐसा इस कारण कि शादी से पहले ही इतनी करीबी हो जाती है कि एक-दूसरे की छोटी-छोटी कमियां भी दिखने लग जाती हैं और शादी की स्थिति आने से पहले ही एक दूसरे से विरक्ति के हालात उत्पन्न हो जाते हैं। जहां तक अरेंज मैरिज का सवाल है, उसमें छोटी-छोटी आदतें शादी के बाद पता लग पाती हैं, जिन्हें नजरअंदाज कर दिया जाता है। सामाजिक दबाव भी इतना अधिक रहता है कि पति-पत्नी संबंध को निभाते हैं।
जहां तक संबंध विच्छेद या ब्रेक अप का सवाल है, उसमें यह विचारणीय है कि उसकी पहल किस ओर से होती है। हमारी संस्कृति में ऐसा पाया जाता है कि वैवाहिक संबंधों में महिलाएं अमूमन एकनिष्ट होती हैं, जबकि पुरुष अपने आपको इस मर्यादा से मुक्त ही मानता है। परिस्थितियां भी महिलाओं को दायरे से बाहर निकलने की सुविधा कम देती हैं, जबकि पुरुष के मनोनुकूल रहती हैं। एक जमाना था, जबकि किसी लड़की का कोई मित्र भी होता था, तो वह उस संबंध को छिपा कर अपना भाई बताया करती थी। लड़के व लड़की के बीच दोस्ती को अच्छा नहीं माना जाता था। मगर स्वछंद माहौल में फेसबुक जैसी सोशल साइट्स ने काम बहुत आसान कर दिया है। अब लड़कियों को यह कहने में तनिक भी संकोच नहीं होता कि अमुक लड़का उसका ब्वॉय फ्रेंड है। एकाधिक फेसबुक फ्रेंड होना भी आम बात हो चुकी है। मजे की बात ये है कि कुछ लड़कियां दस मित्रों में से सभी को अलग-अलग यही बताती हैं कि वे ही उनके वास्तविक प्रेमी हैं, बाकी के नौ केवल सिंपल फ्रैंड हैं।
खैर, महिला-पुरुष संबंधों पर मेरे एक परिचित ने कुछ भिन्न राय ही प्रकट की है, जो कबीर की उलटबांसी सी लगती है। पेशे से वे व्यवसायी हैं। कई देशों में घूम चुके हैं, अर्थात रह चुके हैं। अनेक महिलाओं के संपर्क में रहे हैं। उनका शौक भी है। उन्होंने अपने अनुभव के आधार पर एक बहुत दिलचस्प जानकारी साझा की है।
उनका मानना है कि आपसी संबंधों में महिलाएं पुरुषों की तुलना में अधिक धोखा देती हैं। धोखा देने में माहिर भी अधिक होती हैं। उनके मन की थाह पाना बहुत मुश्किल होता है। हमारे यहां तो कहा भी गया है कि स्त्री का चरित्र और पुरुष का भाग्य देवता भी नहीं जान सकते। ऋषि-मुनि तक त्रिया चरित्र को नहीं समझ पाते थे।
एक बात और कही। वह यह कि कोई महिला अगर किसी पर पुरुष के संपर्क में है तो वह उस संबंध की पूरी वसूली करती है। वह जानती है कि जब पुरुष उसका दोहन ही करने आया है, तो उसकी एवज में पूरी वसूली करने में क्या हर्ज है।
बहरहाल, मैं न तो मेरे परिचित की बात से पूरी तरह से सहमत हूं और न ही पूरी तरह से असहमत। तटस्थ हूं, चूंकि अपनी दिमागदानी में बात ठीक से बैठी नहीं। हो सकता है, यह उनका निजी अनुभव हो। अगर उन्होंने इन संबंधों की गहराई में जाने की कोशिश की हो, तो शायद उनकी राय इसलिए बनी हो, क्योंकि पूर्व में अमूमन लड़के ही धोखा देते थे, लड़कियां निभाने की कोशिश करती थीं, जबकि अब वे भी समझदार हो गई हैं, इस कारण उनकी ओर से धोखा देने की घटनाएं बढऩे लगी हैं। स्वाभाविक रूप से यह बहस का विषय हो सकता है। आप ही निर्णय कीजिए। मेहरबानी करके कोई टिप्पणी करें तो उसका मकसद निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए होना चाहिए, न कि बकवास करने के लिए।

-तेजवानी गिरधर
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