फ्लेगशिप से आया गरीबों के जीवन में बदलाव

-गिरिराज अग्रवाल-
जयपुर, सुशासन शब्द सुनने में बहुत अच्छा लगता है। परंतु सुशासन का आखिर उद्देश्य क्या है? इसका मतलब है ‘रंकÓ की खुशी में राजा की खुशी। दूर-दराज और अंतिम छोर पर बैठे बेसहारा, निर्धन व्यक्तियों के कल्याण में अपना कल्याण समझना। इसीलिए कहा गया है कि सरकार को गरीब की सेवा उसे गणेश मानकर करनी चाहिए। पिछले चार साल में इस कसौटी पर राज्य की गहलोत सरकार पूरी तरह से खरी उतरी है। इस दृष्टि से स्वच्छ, संवेदनशील, पारदर्शी और जवाबदेह प्रशासन देने का प्रयास किया है।
राज्य की योजनाओं और कार्यक्रमों को लागू करने में आम आदमी को केंद्र बिंदु बनाया गया है। राज्य में पहली बार 11 फ्लेगशिप योजनाएं लागू करके गरीब और कमजोर वर्गों के लिए अन्न सुरक्षा, आवास सुरक्षा, चिकित्सा सुरक्षा और जिंदगी बचाने के साथ ही प्रसूताओं और नवजात शिशुओं के लिए आवश्यक स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं।
मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत की संवेदनशीलता भी इस हद तक कि मनुष्यों के साथ-साथ मूक पशुओं के लिए भी नि:शुल्क दवाओं का इंतजाम कर दिया। उन्होंने अपनी योजनाओं के माध्यम से बुजुर्ग, महिलाओं, बच्चों के साथ साथ हर उस शख्स को छूनेे की कोशिश की है, जो अपने लिए सरकार से कुछ उम्मीद भी नहीं कर सकता था। विकास की समग्र दृष्टि रखते हुए न केवल शहरी क्षेत्रों बल्कि ग्रामीणों की उम्मीदों को भी पंख दिए हैं।
मुख्यमंत्री नि:शुल्क दवा योजना:
इलाज के बढ़ते खर्च। कर्ज में डूबते परिवार। इलाज के अभाव में बुढ़ापे की टूटती लाठी। सरकारी अस्पतालों में दवाएं नहीं थीं और प्राइवेट अस्पतालों में पैसे के बिना कोई इलाज करने को तैयार नहीं था। इन घटनाओं ने मुख्यमंत्री श्री गहलोत को अंदर तक झकझोर दिया था। जन सुनवाई और व्यक्तिगत रूप से मिलने के दौरान भी कई लोगों ने उन्हें सुझाव दिया कि कोई ऐसी योजना हो जिसकी वजह से लोगों की जिंदगी बचाई जा सके। ये शिकायत भी मिली की ज्यादातर योजनाएं गरीबों और बीपीएल परिवारों के लिए ही बनती हैं, परंतु बीमारी अमीरी या गरीबी देखकर नहीं आती। इसलिए ऐसी योजना बने, जिसमें अमीर-गरीब का भेद न हो।
बस, इसी विचार ने जन्म दिया मुख्यमंत्री नि:शुल्क दवा योजना को। पहले जेनरिक दवाएं लिखवाकर इलाज के खर्च को घटाने की कोशिश की गई और बाद में सभी सरकारी अस्पतालों में सभी दवाएं मुफ्त कर दी गईं। इस योजना का प्रदेश की जनता ने जबरदस्त तरीके से स्वागत किया। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अस्पतालों के ओपीडी में मरीजों की संख्या 3 से बढ़कर 5 गुणा तक हो गई। इसके लिए 300 करोड़ रुपए का बजट रखा गया है। खास बात यह है कि सेवानिवृत राज्य कर्मचारियों के लिए डायरी व्यवस्था को भी पहले की तरह यथावत जारी रखा गया है। इस योजना से प्रदेश के सात करोड़ लोगों को लाभ मिला है। योजना के क्रियान्वयन से पिछले एक वर्ष में आमजन विशेषकर गरीब वर्ग के लोगों को 1591.89 करोड़ रुपए की शुद्घ धनराशि की बचत हुई।
इस योजना के तहत आज सरकारी अस्पतालों में सभी रोगियों को सामान्यत: उपयोग में आने वाली 400 से अधिक दवाईयां नि:शुल्क मिल रही हैं। इनके साथ ही आवश्यक सर्जिकल आइटम जैसे डिस्पोजेबल सिरिंज, आईबी ट्रांसफ्यूजन सैट, टांके लगाने के लिए सूचर्स आदि भी नि:शुल्क उपलब्ध कराए जा रहे हैं। इस योजना को लेकर प्रारंभ में कई तरह की आशंकाएं भी व्यक्त की गई थीं। इन सभी आशंकाओं को निराधार साबित करते हुए सरकार ने बीपीएल, स्टेट बीपीएल, आस्था कार्डधारी, एचआईवी एड्स पीडि़त, वृद्घावस्था, विकलांग, विधवा पेंशनधारी, जोधपुर शहर की चार नट एवं सांसी बस्तियों, अंत्योदय, अन्नपूर्णा योजना समेत सभी पात्र लोगों को ‘मुख्यमंत्री जीवन रक्षा कोषÓ से मिलने वाली सभी सुविधाओं को बरकरार रखने की घोषणा की। अन्य मरीजों को भी किसी तरह की परेशानी न हो, इसलिए 14737 दवा वितरण केंद्र बनाए गए हैं। इनडोर मरीजों के लिए ये दवा स्टोर सात दिन 24 घंटे खुले रखने की व्यवस्था की गई है। ड्रग टेस्टिंग लेबोरेटरी के माध्यम से दवाओं की गुणवत्ता भी सुनिश्चित की जा रही है। इस महत्वाकांक्षी योजना की सफलता तो सुनिश्चित करने के लिए मॉनीटरिंग व्यवस्था को और प्रभावी बनाए जाने की आवश्यकता है।
मां की जीवन रक्षा, शिशु को भी मिली सुरक्षा :
कहते हैं कि बच्चे को जन्म देने वाली मां को भी प्रसव के बाद नई जिंदगी मिलती है। ग्रामीण इलाकों में सामान्यत: प्रसव घरों में ही दाई के माध्यम से कराया जाता था। ऐसे में अगर कोई ऊंच-नीच हो जाएं तो आसपास पर्याप्त चिकित्सा सुविधाएं भी नहीं होती थीं। ऐसे में मां और बच्चे की जान को हमेशा खतरा बना रहता था। कई बार तो ऐन वक्त पर प्रसूता को अस्पताल ले जाने के लिए साधन नहीं मिलता था। साधन मिलता तो इतनी देर हो जाती कि कई बार प्रसूता रास्ते में ही दम तोड़ देती थी।
राज्य सरकार ने मां और शिशु को सुरक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से प्रदेश में ‘राजस्थान जननी-शिशु सुरक्षा योजनाÓ को लागू किया। इस योजना में सभी प्रसूताओं और बीमार नवजात बच्चों के लिए 30 दिन तक सरकारी अस्पतालों में सभी तरह की सेवाएं मुफ्त उपलब्ध कराई जा रही हैं। उन्हें दवाईयों के साथ-साथ भोजन और घर से लाने एवं ले जाने तक की परिवहन सेवाएं भी मुफ्त उपलब्ध कराई जा रही हैं। नवजात बच्चा जब तक एक माह का न हो जाए, तब तक उसके इलाज का खर्च सरकार ही उठाएगी।
यहां तक कि अगर किन्हीं कारणों से सिजेरियन ऑपरेशन भी करना पड़े तो वह भी मुफ्त होगा। इस दौरान अगर रक्त (खून) की आवश्यकता पड़ी तो वह भी ‘फ्रीÓ में होगी। इस योजना में गत एक वर्ष में 9 लाख 2 हजार 973 महिलाओं और 2 लाख 62 हजार 166 नवजात शिशुओं को राहत मिली है। इसके साथ ही जननी सुरक्षा योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं को 1400 और शहरी क्षेत्र की महिलाओं को 1000 रुपए की प्रोत्साहन राशि भी दी जा रही है। इससे अब न केवल मां के स्वास्थ्य की रक्षा हो रही है, बल्कि नवजात को भी पूरी सुरक्षा मिल रही है। राज्य में इस योजना के बेहतर क्रियान्वयन के फलस्वरूप भारत सरकार ने 665 करोड़ रुपए की विशेष वित्तीय सहायता प्रदान की है। इसके अलावा 400 अतिरिक्त एम्बूलेंस सुलभ कराई है जिनका संचालन 31 अक्टूबर 2012 से प्रदेशभर में शुरू हो चुका है।
अच्छा खाओ अन्न और रहो प्रसन्न :
जिंदगी की इस जद्दोजहद में आज भी ऐसे हजारों परिवार हैं जो काफी पिछड़ गए हैं। सुबह की रोटी का इंतजाम हो गया तो शाम का पता नहीं और शाम की रोटी का इंतजाम हो गया तो सुबह का पता नहीं। गहलोत सरकार ने इसकी चिंता की और उन्हें राहत पहुंचाने के लिए मुख्यमंत्री अन्न सुरक्षा योजना लागू की। इस योजना में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिए 10 मई, 2010 से प्रदेश के बीपीएल और स्टेट बीपीएल परिवारों को 2 रुपए प्रति किलो की दर से हर माह 25 किलो गेहूं उपलब्ध कराया जा रहा है। अगर कोई परिवार गेहूं के बजाय आटा लेना चाहता है तो उसे 3.60 रुपए प्रति किलो की दर से फोर्टिफाइड आटा मिलेगा। सरकार की ओर से हर साल इस योजना में करीब 350 करोड़ रुपए खर्च करके 40 लाख बीपीएल और स्टेट बीपीएल परिवारों को फायदा पहुंचाया जा रहा है।
अन्त्योदय अन्न योजना के पात्र परिवारों को भी 2 रुपए प्रति किलो की दर से हर माह 35 किलो गेहूं दिया जा रहा है। कोई भी पात्र परिवार गेहूूं, आटा लेने से वंचित न रहे यह सुनिश्चित करने की कोशिश की गई है। इसके तहत प्रत्येक माह की 24 तारीख से अंतिम तारीख तक राशन की दुकानों पर आवश्यक सामग्री पहुंच जाती है। उसके बाद उपभोक्ताओं को निश्चित समय पर यह सामग्री उपलब्ध रहती है। इनके साथ ही राशन की दुकानों के माध्यम से उपभोक्ताओं को आयोडाइज्ड नमक, फोर्टिफाइड आटा, कपड़े धोने के साबुन समेत अन्य सामग्री भी रियायती दर पर सभी उपभोक्ताओं को मुहैया कराई जा रही है। इस योजना में हालांकि कालाबाजारी की शिकायतों पर काफी हद तक नियंत्रण हुआ है, परंतु सरकार को इसमें और सुधार करने की आवश्यकता है ताकि अपात्र लोग इसका फायदा नहीं उठा सकें। इसलिए इस योजना को ‘आधार कार्ड से जोड़े जाने की जरूरत है।
मुख्यमंत्री ग्रामीण बीपीएल आवास योजना :
पेट भरने को रोटी और सिर ढकने को बस एक छत मिल जाए। एक आम आदमी को जीवन में और क्या चाहिए? एक बेघर व्यक्ति को अपना आवास मिलने से उसमें गजब का आत्मविश्वास बढ़ता है। ग्रामीण क्षेत्र में दूर-दराज बैठे आम आदमी के इस सपने को सरकार ने मुख्यमंत्री ग्रामीण बीपीएल आवास योजना लागू करके पूरा करने की कोशिश की है। ग्रामीण बीपीएल आवास योजना के माध्यम से सरकार ने बेघर को घर देने की कोशिश की है। इसके तहत प्रत्येक पात्र परिवार को अपना घर बनाने के लिए 50 हजार रुपए की राशि उपलब्ध कराई जा रही है।
राज्य सरकार ने इस योजना में 3 साल में 6 लाख 80 हजार ग्रामीण बीपीएल परिवारों को आवास उपलब्ध करवाने का लक्ष्य रखा है जबकि करीब 4 लाख घर केंद्र की इंदिरा आवास योजना के तहत दिए जाएंगे। इस तरह राज्य के 10 लाख बीपीएल परिवारों के अपने घर का सपना पूरा होगा। अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, मुक्त बंधुआ मजदूर, अल्पसंख्यक और गैर अनुसूचित जाति, जनजाति के गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले ग्रामीण परिवार इस योजना का लाभ उठा सकेंगे। इस योजना के पहले चरण में 2 लाख 72 हजार 165 आवास बन चुके हैं। दूसरे चरण के 2.91 लाख मकानों के लक्ष्य के विपरीत 71 हजार 432 मकानों के लिए स्वीकृति जारी हो चुकी है। इसी की तर्ज पर सरकार ने हाल ही शहरी क्षेत्रों में रहने वाले बीपीएल परिवारों के लिए भी मुख्यमंत्री शहरी बीपीएल आवास योजना लागू की है। इसमें कुल 5 लाख बीपीएल परिवारों में से 1 लाख आवासहीन परिवारों को इसी वित्तीय वर्ष में मकान उपलब्ध कराए जाने का लक्ष्य है।
अफोर्डेबल हाउसिंग पॉलिसी 2009 :
बढ़ते शहरीकरण और आसमान छूती जमीन की कीमतों को देखते हुए शहरी क्षेत्रों में आम आदमी के लिए घर का मकान एक सपना ही बनता जा रहा है। आम आदमी को कम कीमत में अपना मकान उपलब्ध कराने का बीड़ा उठाया नगरीय विकास विभाग ने। नगरीय विकास मंत्री श्री शांति धारीवाल और प्रमुख सचिव श्री जी.एस. संधू की कड़ी मेहनत और सकारात्मक सोच के परिणाम स्वरूप बनी अफोर्डेबल हाउसिंग पॉलिसी। इसे वर्ष 2009 में लागू किया गया। इसके तहत आर्थिक दृष्टि से कमजोर वर्ग, अल्प आय वर्ग और मध्यम आय वर्ग के परिवारों को लगभग लागत मूल्य पर ही आवास उपलब्ध कराए जा रहे हैं।
इतना ही नहीं जयपुर एवं जोधपुर विकास प्राधिकरण, नगर विकास न्यास और स्थानीय निकायों के लिए यह जरूरी कर दिया गया है कि वे अपनी आवासीय योजनाओं में 25 प्रतिशत भूखंड अथवा आवास इस कमजोर तबके के लिए रखेंगे। राजस्थान आवासन मंडल की योजनाओं में 50 प्रतिशत और निजी विकासकर्ताओं की योजनाओं में यह सीमा 15 प्रतिशत होगी। इस योजना में वर्ष 2013-14 तक करीब 5 लाख मकान बनाने का लक्ष्य रखा गया है। वर्तमान में 10 हजार 370 मकानों के निर्माण का काम चल रहा है। इसमें आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए फ्लैट की अधिकतम लागत 2.40 लाख रुपए, अल्प आय वर्ग के लिए 3.75 लाख और मध्यम आय वर्ग के लिए 7.50 लाख रुपए रखी गई है। हाल के दिनों में सीमेंट, लोहे और निर्माण सामग्री में हुई बेतहाशा वृद्घि के कारण कीमतों में कुछ परिवर्तन संभव है। वर्ष 2011-12 के दौरान राजस्थान आवासन मंडल, जयपुर, जोधपुर विकास प्राधिकरण, नगर विकास न्यास और स्थानीय निकायों की ओर से अब तक कमजोर तबके को 53 हजार 763 आवास एवं भूखंड उपलब्ध कराए जा चुके हैं।
मुख्यमंत्री बीपीएल जीवन रक्षा कोष योजना:
अन्न सुरक्षा, स्वास्थ्य सुरक्षा और आवास सुरक्षा के साथ-साथ राज्य की संवेदनशील गहलोत सरकार ने निर्धन और गरीब की जिंदगी की रक्षा करने का जिम्मा भी संभाला। इसके लिए मुख्यमंत्री बीपीएल जीवन रक्षा कोष बनाया गया। मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत ने 1 जनवरी, 2009 को इस कोष की घोषणा की। इसके माध्यम से बीपीएल एवं स्टेट बीपीएल परिवारों को इलाज एवं जांच की नि:शुल्क सुविधा मुहैया कराई जा रही है। इसमें 2 अक्टूबर, 2011 से थैलेसीमिया एवं हिमोफीलिया रोग से पीडि़त रोगियों को भी शामिल कर लिया गया है। इस कोष के जरिए 1 जनवरी, 2009 से अब तक 141 करोड़ रुपए खर्च करके 1.36 करोड़ निर्धनतम मरीजों को नि:शुल्क चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराई गई है।
किसानों को ब्याज मुक्त कर्ज :
किसानों के लिए 5 साल तक बिजली की दरें नहीं बढ़ाकर बड़ी राहत देने वाली प्रदेश की गहलोत सरकार ने एक और ऐतिहासिक फैसला किया। यह फैसला है किसानों को ब्याज मुक्त फसली कर्जे उपलब्ध कराना। यानी जो किसान अपने फसली कर्जों का समय पर चुकारा करेंगे उनसे ब्याज नहीं लिया जाएगा। वर्ष 2012-13 में इसके लिए सरकार 200 करोड़ रुपए का अनुदान देगी। सहकारी बैंकों से 1 लाख रुपए तक का अल्पकालीन कर्ज लेने वाले छोटे और मध्यम किसानों को काफी राहत मिलेगी। इस मद में सरकार अब तक 48 करोड़ रुपए स्वीकृत कर चुकी है। खरीफ मौसम में सहकारी बैंकों के माध्यम से 25 लाख किसानों को 9 हजार करोड़ रुपए के कर्जे उपलब्ध कराए जा चुके हैं।
पशुधन नि:शुल्क दवा योजना :
मुख्यमंत्री नि:शुल्क दवा योजना की तर्ज पर 15 अगस्त 2012 से मुख्यमंत्री पशुधन नि:शुल्क दवा योजना राज्य के सभी पशु चिकित्सालयों में लागू की जाकर 5.67 करोड़ पशुधन को लाभान्वित किया जा रहा है। यह योजना 60 करोड़ के बजट प्रावधान से 3 हजार 900 केन्द्रों पर शुरू की गई है।
राजस्थान लोक सेवाओं के प्रदान करने की गारंटी :
किसी भी राज्य की कल्याणकारी सरकार का यह पहला दायित्व है कि नागरिकों को जीवन और संपत्ति की सुरक्षा के साथ-साथ न्याय भी समय पर मिले। छोटे-छोटे कामों के लिए उसे सरकारी कार्यालयों में अनावश्यक चक्कर नहीं लगाने पड़ें। सरकारी अधिकारी और कर्मचारी समय पर समस्याओं का समाधान करें, ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए। इसी सोच और उद्देश्य के राजस्थान की सरकार ने अपने नागरिकों को लोक सेवाओं के प्रदान की गारंटी दी। विधानसभा में विधेयक पारित करवाकर उन्हें कानूनी हक दिया कि वे आवश्यक सेवाओं को निश्चित समय पर प्रदान कर सकें। इसके लागू होने के बाद अब अगर कोई भी सरकारी अधिकारी अथवा कर्मचारी निर्धारित समय सीमा में नहीं करता है तो उस पर 500 रुपए से लेकर 5 हजार रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। जुर्माने की राशि उसके वेतन में से वसूल करने का प्रावधान रखा गया है। यह राशि आवेदक को क्षतिपूर्ति के रूप में भी दिलाई जा सकती है। अब अगर कोई अपना काम लेकर किसी सरकारी दफ्तर में जाता है तो उसे आवेदन के बदले एक रसीद मिलती है। इस पर उस अवधि का उल्लेख होता है जिसमें वह काम हर हाल में पूरा हो जाएगा। अगर कोई अधिकारी अथवा कर्मचारी किसी काम को करने से मना करता है तो पहली और दूसरी अपील करने का प्रावधान किया गया है, ताकि कोई अनावश्यक रूप से काम करने से इनकार नहीं कर सके। अपील के आवेदन के साथ किसी तरह का कोई शुल्क देय नहीं है।
हालांकि इस तरह की व्यवस्थाएं कुछ अन्य राज्यों में भी की हुई हैं, लेकिन राजस्थान के कानून की विशेषताएं उनसे अलग हैं। यह कानून केवल सरकारी विभागों तक ही सीमित न होकर निकाय, बोर्ड, निगम, विश्वविद्यालय जैसी संस्थाओं पर भी लागू है। जलदाय विभाग, जल संसाधन, सार्वजनिक निर्माण विभाग, स्थानीय निकाय विभाग द्वारा ली जाने वाली अमानत एवं धरोहर राशि को निश्चित समय सीमा में लौटाए जाने को भी इसमें शामिल किया गया है। सेवानिवृत अधिकारी और कर्मचारी भी पेंशन तथा अन्य समस्याओं के लिए इसका लाभ उठा सकते हैं। इस कानून के जरिए पिछले एक वर्ष में एक लाख से अधिक प्रकरणों का समय पर निस्तारण हुआ।
राजस्थान जन सुनवाई का अधिकार अधिनियम 2012 :
संभवत: यह देश में पहली बार हुआ है जब राजस्थान के लोगों को अपनी समस्याओं के निस्तारण के लिए सुनवाई करवाने का भी कानूनी अधिकार मिला है। अब तक होता यह था कि लोग अपनी समस्याएं लेकर विभिन्न सरकारी कार्यालयों और अफसरों के पास जाते थे। अर्जी छोड़कर आ जाते थे। चक्कर लगाते-लगाते थक जाते थे, लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं होती थी। परंतु अब ऐसा नहीं है। राजस्थान सरकार ने ‘सुनवाई का अधिकार अधिनियम 2012Ó विधानसभा में पारित करवाकर इसे कानूनी अधिकार बना दिया है। इससे आम आदमी को उसके घर के नजदीक ही सुनवाई का अवसर मिल रहा है। जन शिकायत या परिवाद पर अब अफसर को 15 दिन में कानूनी रूप से सुनवाई करनी ही है। उस शिकायत पर या फैसला हुआ, इसकी सूचना भी 7 दिन में देनी होगी। इस कानून के तहत अब राज्य सरकार की नीति अथवा केंद्र सरकार की नीति, योजनाओं और कार्यक्रमों के तहत मिलने वाले लाभ अगर नहीं मिले हैं, अथवा देरी से मिले हैं तो उसकी शिकायत संबंधित अधिकारी को की जा सकती है। इसमें सुनवाई के बाद अगर कोई सरकारी कर्मचारी या अधिकारी दोषी पाया जाता है तो उसके वेतन से जुर्माना राशि वसूली जा सकती है। अगर कहीं न्याय नहीं मिलता है तो इसमें भी अपील का प्रावधान रखा गया है। सुनवाई के अधिकार के तहत तीन माह में 2 हजार 823 परिवाद निस्तारित किए गए।

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