आज की तस्वीर

नटवर विद्यार्थी
सागरों में रत्न हैं तो
बादलों में नीर है ।
आदमी के पास देने,
के लिए दुःख-पीर है ।

रचयिता ने तो बनाया ,
एक-दूजे के लिए ।
पर यहाँ पर है इकट्ठी ,
स्वार्थ की बस भीड़ है ।

पूछ लो किससे कभी भी ,
यार कैसी कट रही ?
मुश्किलें हैं या कि कोई ,
द्रोपदी का चीर है ।

आज जगहों में सिमटकर ,
रह गया है आदमी ।
गाँव में अब भी हमारे ,
लोग कहते सीर है ।

सिर्फ़ ख़ुद के ही लिए अब ,
जी रहा है शख़्स हर ।
मैं-मेरा परिवार बस यह ,
आज की तस्वीर है ।
– *नटवर पारीक*,डीडवाना

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