….बरबाद हुए बच्चे, कंगाल हुए माँ-बाप

डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी
मोदी और भाजपा शासित राज्यों के अवाम में डिजिटल समाजवाद काफी पुष्पित एवं पल्लवित हो रहा है। इस समाजवाद को हर कोई सहज रूप में अंगीकार कर चुका है। बीते छः महीनों में देश के भाजपा शासित इलाकों में हर घर में इन्टरनेट का धुंआधार सदुपयोग किया जाने लगा है। अब तो नन्हें-मुन्ने बच्चों से लेकर हर उम्र के लोगों के हाथों में स्मार्ट मोबाइल फोन, घरों में लैपटॉप और डेस्कटॉप देखने को मिल रहा है। आखिर क्यों न हो, छः महीने के भारत बन्दी की अवधि में स्कूल कॉलेजों की पढ़ाई ठप्प है। सरकार ने पढ़ाई की ऑनलाइन व्यवस्था करके बच्चों को मोबाइल, लैपटॉप और डेस्कटाप रखने के लिए मजबूर कर दिया है। चूँकि यह निर्देश सरकार का है, तो जाहिर सा है कि सरकार की हर बात का आम जन पालन भी करेगा। न चाहते हुए भी मन मसोस कर आर्थिक रूप से कमजोर अभिभावक भी ये सब डिजिटल व्यवस्थाएँ अपने बच्चों के भविष्य के निर्माण के लिए कर रहे हैं।
अब हो क्या रहा है यह भी जानिये………। ऐसा करके सरकार ने कम उम्र के बच्चों में परोक्ष रूप से यौन विकार पैदा करना शुरू कर दिया है। बच्चों को सरकार के ऑनलाइन व्यवस्था और अभिभावकों द्वारा दी गई पढ़ाई की छूट ने उन्हें पुस्तकीय शिक्षा कम यौन शिक्षा अधिक लेने का अवसर प्रदान कर दिया है। बच्चे अब धीरे-धीरे इन उपकरणों के जरिये अश्लील, गन्दी एवं यौन क्रियाओं से परिपूर्ण फोटोज़ और वीडियोज़ देखकर इसका आनन्द ले रहे हैं। इस तरह कम उम्र में ही ये बच्चे यौन विकारों से ग्रस्त होकर सेक्स क्राइम की तरफ बढ़ रहे हैं। सारे रिश्ते अब समाप्त से होने लगे हैं। न भाई न बहन, बच्चे घर-परिवार में ही आपस में यौनाचार एवं अश्लील हरकतें को आतुर से दिखने लगे हैं। इनके हाव-भाव इस उम्र में ही वयस्कों की तरह हो गये हैं। स्कूली आनलाइन शिक्षा को तो कम परन्तु गूगल, यू-ट्यूब, व्हाट्सएप्प के जरिये ये बच्चे सरकार की नीतियों, अभिभावकों की अक्ल विहीनता का पूरा समर्थन पाकर वयस्क होने के पूर्व ही गर्त में मिलने लगे हैं।
कितने बच्चे जिनकी उम्र 20 से 25 साल रही और है वे लोग इसी डिजिटल समाजवाद का फल जेलों में जाकर भुगत रहे हैं। ऐसे कई मामले सुनने में आये हैं कि किशोर और युवाओं ने मोबाइल की इस क्रान्ति में अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। परिणाम यह रहा कि ये बच्चे नियंत्रण विहीन होकर जिन्दगी जीने लगे और पाक्सो तथा बलात्कार जैसे सेक्स अपराध में मुल्जिम बनकर सलाखों के पीछे भी पहुँच चुके हैं। पाक्सो यानि प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल अफेन्सेज़ एक्ट जैसे गम्भीर मामलों में किशोर और युवा अब अक्सर जेल की सलाखों के पीछे जाने लगे हैं। पुलिस को भी एक अच्छा एक्ट मिल गया है। वाह सरकार, हाय सरकार, तुम्हीं सरकार, तुम्हीं करतार……. वर्तमान परिदृश्य में भाजपा की सरकारों के बारे में जितना कुछ भी कहा जाये, वह सब कम ही है।
कई अभिभावकों ने वर्तमान ऑनलाइन शिक्षा पर बात करते हुए दुःख व्यक्त किया कि देश के प्रधानमंत्री/राज्य के मुख्यमंत्री का इन मासूमों ने क्या बिगाड़ा था कि केन्द्र और प्रदेश की सरकारों ने इनके हाथों में स्मार्ट फोन पकड़ा दिया। जो इनके लिए आत्मघाती तो साबित हो ही रहा है, इससे पूरा परिवार आर्थिक रूप से चरमरा गया है। हालांकि सबसे बड़ी भूल अभिभावकों की है, जिन्होंने सरकार के मन की बात और सरकार के निर्देशों के अनुपालन में ऑनलाइन शिक्षा को स्वीकारा। रूक जाते और तब तक रूकते, जब तक कोरोना वायरस का भय देश से समाप्त न हो जाता। क्या जल्दी थी, कौन सा समय बीत रहा था, कि अभी नहीं तो कभी नहीं। कौन सी प्रतिस्पर्धा भविष्य में न होती या नहीं होगी, जो इसी कोरोना काल में हो रही है। क्या इस काल में जब कि वैश्विक महामारी का डंका पीटा जा रहा है।
हर व्यक्ति डरा-सहमा है, जन-जीवन असमन्जस में है। जीवन का आदि और अंत हाँ और न के बीच में लटका हुआ है। कुछ भी स्पष्ट नहीं हो पा रहा है। तब क्या ऐसे में बच्चों की ऑनलाइन शिक्षा काफी महत्व रखती है। क्या इस अवधि में मोबाइल, लैपटाप, कंप्यूटर/डेस्कटॉप के जरिये पढ़ने वाले बच्चे यूपीएससी की परीक्षा उत्तीर्ण कर जिलों के कलेक्टर बन जायेंगे? या फिर उच्च पदस्थ अन्य राजकीय अधिकारी………? एक गार्जियन ने कहा कि उनके घरों के बच्चे छः महीने में डिजिटल उपकरण संचालन में इतने निपुण हो चुके हैं कि जैसे ही कोई बाहरी उनके कक्षों में गुजरता है वे तुरन्त माउस एवं अन्य सिस्टम से स्क्रीन पर प्रदर्शित हो रहे दृश्यों को छुपा लेते हैं, और उनके स्थान पर ऑनलाइन पढ़ाई वाला कोई भी पेज खोल देते हैं।
इस तरह ये बच्चे जहाँ स्वयं की चोरी को अपने अभिभावकों से छिपाने लगे हैं वहीं वे अपना भविष्य भी स्वयं ही चौपट कर ले रहे हैं। यही नहीं घरों और परिवारों के बच्चे अपने-अपने डिजिटल उपकरणों में इतने व्यस्त रहते हैं कि इनके आस-पास क्या हो रहा है, क्या होना चाहिए और क्या होगा इसका जरा भी अन्दाजा इनको नही होता है। परिवार के बुजुर्ग सदस्य लाख चिल्ल-पों करें ये बच्चे इन्टरनेट और ऑनलाइन पढ़ाई के नाम पर स्मार्टफोन, लैपटॉप और डेस्कटॉप में कथित रूप से इतने बिजी रहते हैं कि उनकी बात की अनसुनी करते हैं। यदि किसी ने इन कथित व्यस्त बच्चों को और कई बार बुलाया तो ये लोग उल्टा-सीधा जवाब देने के साथ अपने हाव-भाव से आक्रान्ता हो जाते हैं। इनका अवज्ञाकारी और चिड़चिड़ा हो जाने के पीछे पूरी जिम्मेदारी सरकार और अभिभावकों की ही कही जायेगी।
लाकडाउन अवधि में अनेकों स्थानों पर ऐसे हादसे घटित हो चुके हैं जो काफी चर्चा में रहें। इन हादसों के पीछे मुख्य कारण इन्टरनेट और डिजिटल उपकरण ही बताये गये हैं। घरों में विवाद, मारपीट एवं अन्य अप्रिय घटना सरकार की इसी नीति का परिणाम बताया जा रहा है। कुल मिलाकर सरकार की नीति और देश के मुखिया के मन की बात ने पूरे समाज को एक तरह से पैरालाइज करके रख दिया है। देश की वर्तमान स्थिति देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा है कि अब वह दिन दूर नहीं जब हर साधारण नागरिक रोबोट सा बन जायेगा जिसका रिमोट देश के मुखिया के हाथों में होगा।
बहरहाल प्रबुद्ध वर्गीय चर्चा का विषय है कि यह वर्तमान नस्ल को नेस्तनाबूद करने का सरकार द्वारा चलाया जा रहा एक षडयन्त्र है। सरकार के इस षडयन्त्र को अज्ञानी और मूर्ख अभिभावकों ने अपना सम्पूर्ण समर्थन दिया है। यह लोग तन-मन-धन से सरकार के मन की बात का अनुपालन कर रहे हैं। अपने बच्चों को हरा-भरा करने के चक्कर में उनकी जड़ों में गरम मट्ठा डाल रहे हैं। और ऐसा क्यों न करें। लोकतन्त्र की परिभाषा में कहा गया है कि प्रजातन्त्र मूर्खों की, मूर्खों के लिए, मूर्खों द्वारा संचालित व्यवस्था है। देश में खांटी लोकतन्त्र चल रहा है। तो जाहिर सी बात है कि इस देश का अवाम भी खांटी मूरख ही होगा। थोड़ा सब्र कर लेता तो कोरोना काल उपरान्त ही स्थिति सामान्य होने पर पूर्व की भांति बच्चों को स्कूली शिक्षा प्रदान कराई जाती।
कोरोना क्या है? इसे कोई भी स्पष्ट रूप से न जानता है और न ही इसके बारे में बता सकता है। परन्तु इसे वैश्विक महामारी कहकर देश में 6 महीने से ऊपर की अवधि से पूरे हल्ला-गुल्ला के साथ लाकडाउन, अनलाक, मिनी और माइक्रो लाकडाउन करके सेलीब्रेट किया जा रहा है। नित्य विरोधाभाषी बयानों को देख-सुन-पढ़कर हर साधारण व्यक्ति के सोचने समझने की शक्ति क्षीण हो गई है। इन बयानो में कोरोना घातक है, कोरोना घातक नहीं है, कोरोना एक षडयन्त्र है…….आदि………आदि……..आदि बातें अपने-अपने तरह से दिये गये उदाहरणों और साक्ष्यों के आधार पर कथित जानकारों द्वारा कहा जाता है। इस तरह के बयान किसी भी सामान्य व्यक्ति को असहज एवं असामान्य करके रख देते हैं।
बहरहाल जितना भी कहा जाये सब कम है। इस समय आम आदमी/देश के नागरिकों की हालत खप्तुलहवाशों जैसी है। मार्च 2020 से हर क्षेत्र के लोग कोरोना, कोरोना, कोरोना की ही रट लगाये हुए हैं। वास्तविकता क्या है यह आम लोगों की समझ से परे है। देश के लोगों का ऊपर वाला मालिक है। वही सरकार है, वही आराध्य सा बन गया है।
डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी
वरिष्ठ नागरिक/स्तम्भकार
अकबरपुर, अम्बेडकरनगर (उ.प्र.)
9454908400, 9125977768

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