स्वयं को सुधारो

शास्त्रो में वर्णित एक सूत्र है जिसमे जीवन के अनेको प्रश्नो एवं कठिनाइयो का जवाब मिल जाएगा। प्रभु कहते हैं मेरी कृपा पाने के लिए पहले तुमको दूसरो को सुधारने के स्थान पर स्वयं को सुधारने के लिए तैयार होना पड़ेगा। जब शुरूआत स्वयं से होगी तो सुधार का क्रम अपने आप प्रारंभ होने लगेगा। लेकिन हमारे सभी के जीवन में होता कुछ उलटा है। हम दूसरो को सुधारने के लिए रात दिन समय व्यतीत करते हंै। हमारी हमेशा चाहत रहती है कि दूसरे पहले सुधरे। हम यह हमेशा चाहते आए हैं कि भगतसिंह का जन्म पडोस के घर में हो। हम हमेशा अपना घर बचाने की सोच पहले रखते हैं। हमें जब भी अवसर मिलता है हम दूसरो को उपदेश व मार्गदर्शन देने में नहीं चूकते और स्वयं वही कार्य दोहराते है जिसे दूसरो को ना करने का उपदेश हमने दिया है तो क्या ऐसे में हमारे द्वारा दिए गए उन उपदेशो की कोई सार्थकता है? अपने स्वयं मे सुधार लाना इतना आसान नहीं होता क्योंकि स्वयं के सुधार के समय हमारा अपना स्वयं का अहं् आड़े आता है। हमारा मन तेजी से बयान बदलता है कि मैं सही हूं, मैं अपने में बदलाव क्यूं लाऊं और यही कारण होता है कि हम कभी भी अपनी गलती को स्वीकार नहीं करते वरन् अपनी एक गलती को छिपाने के लिए पूर्व में ही अनेक विकल्प सोच लेते है। अपने द्वारा की गई गलतियो को छुपाने के प्रयास में केवल और केवल दूसरे की गलतियो को ढंूढना प्रारंभ कर देते हंै
आदमी का मन इतना चालाक होता है कि वह अपनी की गई गलती को छुपाने के लिए सामने वाले पर पहले से ही हावी होने का प्रयास करता है या फिर उसे इतना अपमानित महसूस करा देता है कि वह व्यक्ति आपको गलती का भान कराने का साहस ही नहीं कर पाता। दिखने में यह आपकी जीत हो लेकिन अंतत: यह आपकी हार ही होगी क्योंकि कुछ समय पश्चात् आपके द्वारा दोहराई गई वही गलती अक्षम्य हो जाएगी। यहां एक विशेष बात महत्वपूर्ण है कि हम सभी व्यक्ति विशेष के लिए एक धारणा मन में पूर्व में ही बना लेते हैं और उस धारणा के मुताबिक सदैव उस व्यक्ति की गलतियो को ढूूंढने में लगे रहते हैं। एक उदाहरण द्वारा इसे कुछ यूं समझा जा सकता है कि बहु ने अपनी सास के प्रति और सास ने बहु के प्रति यह नजरिया बना लिया कि वह हमेशा रोकती टोकती रहती है, हमेशा दु:ख देती हैं तो दोनो की एक दूसरे के प्रति पनप आई सोच दोनो के संबंधो में क टुता उत्पन्न कर देगी। दोनो कभी भी यह सोचने का प्रयास नहीं करेंगे कि दूसरे के द्वारा किए गए आचरण के पीछे उनके जिंदगी का कोई दर्द भी छिपा हो सकता है या फिर उनकी आपस में एक दूसरे के प्रति काफी अपेक्षाएं भी हो सकती है। एक बार दोनो ने जो नकारात्मक छवि एक दूसरे की अपने मन में बना ली वह प्रत्येक अच्छे कर्म में भी बनी रहेगी जिसका परिणाम होगा संबंधो में तनाव व बिखराव। ऐसे में प्रत्येक रिश्ते में प्रतिपल अपने स्वयं के सुधार को यदि सोचा जाएं तो तनाव पैदा ही नहीं होंगे। लिखने में, पढऩे में यह बात सरल हो लेकिन शुरूआत करने के लिए एक कदम तो हमें स्वयं को अपने घर से ही उठाना होगा। गालिब का एक कथन तर्कसंगत है उम्र भर गालिब यही काम करता रहा धूल चेहरे पर थी आईना साफ करता रहा। आइए स्वयं को सुधारने की पहल स्वयं से आज ही प्रारंभ करे जो मुश्किल नहीं है लेकिन एक पहल आपको करनी होगी।

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