कोरोना से ‘दंगल’ हार रहे युवा

सुमित सारस्वत
वैसे तो पिछले कुछ वक्त से हर रोज, हर जगह एक ही खबर सुनने-पढ़ने को मिल रही है.. ‘ये नहीं रहा.., उसकी मौत हो गई.., वो भी चल बसा..।‘ मगर शुक्रवार का दिन सुबह से ही शोकमय रहा। सवेरे आंखों के सामने गोपाल नामक जिस शख्स को बैठा देखा था, एक घंटे बाद उसके मौत की खबर आ गई। थोड़ी देर बाद फेसबुक ऑन किया तो पहली पोस्ट पत्रकार अरविंद अपूर्वा जी की सामने आई, जिसमें वरिष्ठ पत्रकार अरविंद गर्ग जी के निधन का समाचार था। हम तीनों ने दैनिक भास्कर के अजमेर कार्यालय में साथ काम किया था। व्हॉट्सएप ऑन किया तो भाई का संदेश पढ़ा कि आज तक के वरिष्ठ पत्रकार रोहित सरदाना नहीं रहे। शूटर दादी भी आज जिंदगी का निशाना चूक कर चल बसी। हैरानी के साथ चौंक गया। ये सब क्या हो रहा है! चारों तरफ मौत, मौत, और सिर्फ मौत। इन मौतों में भी अधिकांश युवा।
टीवी पत्रकारिता का जाना-पहचाना चेहरा एंकर रोहित सरदाना भी युवा थे। उनकी मौत ने पूरे देश को हैरानी के साथ सदमा पहुंचाया। किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी कि दूसरों को खबरदार करने वाला पत्रकार भी खबर बन जाएगा। रोहित की युवा मौत पर पूरा राष्ट्र रो पड़ा। देशभर से संवेदनाओं का सागर छलका। रोहित की शख्सियत और लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि महामहिम राष्ट्रपति जी ने भी शोक जताया। देश के बड़े-बड़े पत्रकार और टीवी एंकर भी रो पड़े। आजतक चैनल की एंकर नवजोत की रुलाई नहीं रूक रही थी। आंसू बहाती चित्रा त्रिपाठी से बात करते हुए फूट-फूट कर रो रही थीं। हुंकार शो में रुबिका लियाकत रो रही थीं। एबीपी न्यूज के संपादक सुमित अवस्थी भी रोहित की यादें साझा करते हुए रो पड़े। उनका दर्द सुनकर मेरा दिल भर गया। रोकते हुए भी आंखों से आंसू छलक पड़े। एंकर शोभना यादव, पंकज झा की आंख में भी आंसू थे। आंसू शायद इसलिए क्योंकि वो पत्रकार थे, इसलिए क्योंकि वो युवा थे, और शायद इसलिए क्योंकि वो दो मासूम बेटियों के पिता थे।
कोरोना काल में रोहित जैसे न जाने कितने पिता मौत का शिकार बने हैं। न जाने कितनी बेटियां अनाथ हुई हैं। न जाने कितने बेटों के सिर से पिता का साया उठा है। न जाने कितनी मांग का सिंदूर उजड़ा है। न जाने कितने कुल का चिराग बुझा है। न जाने कितने मां-बाप के बुढ़ापे का सहारा टूटा है। न जाने कितने दोस्तों का साथ छूटा है। यह सब कल्पना से भी परे है। वर्तमान हालात में जो कुछ देख-सुन रहे हैं वो रुह कंपा देने वाला है। ऐसे वक्त में खुद को सुरक्षित रखने का सबसे बेहतर जरिया यही है कि घर में रहें। अतिआवश्यक होने पर यदि घर से बाहर निकलना पड़े तो खुद को पूरी तरह सुरक्षा कवच से ढककर निकलें। बाजार में अनावश्यक न घूमे। सामने खड़े होकर संवाद करते वक्त पर्याप्त दूरी बनाए रखें। अस्पताल और श्मशान के हालात लिखने और बताने की शायद आवश्यकता नहीं है। बस इतना याद रखिए, जान है तो जहान है। जरा-सी लापरवाही सिर्फ हमें ही नहीं, हमारे परिवार और हमसे जुड़े हर शख्स के लिए जानलेवा साबित हो सकती है। स्वस्थ रहें, सुरक्षित रहें, परिवार के साथ प्रसन्न रहें।

-सुमित सारस्वत

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