वो सुबह जरूर आएगी

सीमा
हम सभी बहुत ही मुश्किल दौर से गुज़र रहे हैं, और ये भी मालूम नहीं आखिर कब तक! लेकिन हम उन चुनिंदा खुशकिस्मत लोगों में से हैं जो इस दौर में भी सेहतमंद, अपने घरों में महफूज हैं। जिन्हें आज की रोटी की फ़िक्र नहीं है। जिनके पास इतना तो है कि वो अपने घरों में रहकर भी अपना पेट भर पा रहे हैं। अपनी जरूरतें पूरी कर पा रहे हैं। इसके लिए परमेश्वर का शुक्रिया अदा कीजिए। लेकिन हर कोई इतना खुशकिस्मत नहीं है।
एक बहुत बड़ी तादाद उन लोगों की भी है जो रोज छोटा-मोटा काम करके अपना और अपने परिवार का पेट भरते हैं। सभी जानते हैं कि अभी सारे काम बंद पड़े हैं। ऐसे में ये लोग किस तरह अपना गुज़ारा कर रह होंगे…ज़रा सोच कर देखिए! कितने भूखे रहते होंगे? कितने अपनी जरूरतें पूरी नहीं कर पा रहे होंगे? किस तंगहाली से रोज़ गुजरते होंगे? जीते जी भी रोज़ मरते होंगे? यही वक्त है इंसानियत का हाथ थामने का, अपनेपन का हाथ जरूरतमंद लोगों की तरफ बढ़ाने का।
हमारे आसपास ऐसे बहुत से जरूरतमंद लोग एवं परिवार हैं। हम सिर्फ इतना करें कि अपने राशन वाले को उनका पता बता दें, उनके घर राशन भिजवा दें। साथ में कुछ आम जरूरी दवाइयां भी। अगर हो सके तो रोज़मर्रा के खर्चों के लिए कुछ रुपए भी। इतना करने भर से उनका कुछ वक्त तो थोड़ा ठीक गुज़र जाएगा। हमें ईश्वर ने इतना तो दिया है कि हम ये कर सकते हैं। और मुझे यकीन है, कई लोग ऐसा कर भी रहे होंगे।
ये वक्त एक-दूसरे के साथ मिलकर मुश्किल हालातों से निपटने का है। किसी को कमज़ोर मत होने दीजिए। आगे आइए, बिना किसी के कहे, अपनी ज़िम्मेदारी समझ कर। इस शैतानी वक्त के खिलाफ लड़ाई में शामिल हो जाइए। अपने प्यार, हमदर्दी और अपनेपन से इस दौर को मात दे दीजिए। डॉक्टर्स, पैरा मेडिकल, पुलिस इन सबने तो इस लड़ाई में अपनी जिंदगी तक दांव पर लगा रखी है। क्या हम अपने घरों में महफूज़ रहते हुए किसी की तकलीफ थोड़ी सी कम नहीं कर सकते? उनमें मायूसी की जगह, उम्मीद नहीं जगा सकते? उन्हें थोड़ा सा अपनेपन का सहारा देकर उन्हें हिम्मत नहीं दिला सकते?
इंसानियत को शर्मसार न होने दें। जरूरतमंदों का सहारा बनें। ऐसा करके देखिए, यकीन मानिए, हम सभी मिलकर यह मुश्किल दौर भी आसानी से बिता देंगे। और वो सुबह भी ज़रूर आयेगी जब जागते ही हमारे दिमाग में कोई खौफ नहीं, बल्कि चेहरे पर मुस्कुराहट के साथ इस जंग को जीतने की खुशी होगी। वो सुबह कभी तो आएगी। किसी का सहारा बनिये और खुद आगे बढ़ कर मदद कीजिए। फिर देखिए, आपको खुद कितना अच्छा महसूस होगा। उम्मीद का दामन मत छोड़िए। बेशक, वो सुबह ज़रूर आएगी।

सीमा
(लेखिका अधिवक्ता हैं और लंबे समय से लेखन कार्य कर रही हैं)

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