मौलिकता अद्वितीय गुण

Dinesh Garg
दरअसल तुलना करना प्रकृति का विरोध करना ही है। परमशक्ति ने हम सभी को अद्वितीय बनाया है। वर्तमान समय में हमारे द्वारा की गई तुलना ने ही हमारी मौलिकता को समाप्त कर दिया है या यूं कहे कि हमारे समाज को कंपेयर डिजीज हो गई है। समाज का हर वर्ग दूसरे से तुलना कर उस जैसा होने के प्रयासो में लगा है। परिणाम यह होता है कि ना तो वो वैसे बन पाते है जिनसे अपनी तुलना करते है और ना ही अपने स्वरूप में रह पाते है। कोई एक व्यक्ति किसी खास क्षेत्र में सफल हो गया ता दूसरा भी उसके जैसा बनने की कवायद में लग जाता है। सफलता असफलता, परिस्थितियों और मन की स्थिति पर निर्भर करती है। तेंदुलकर का सुपुत्र अपने पिता जैसा होगा ऐसी कल्पना करना निरर्थक है। यदि उनके पुत्र के भीतर हमेशा यह विचार डाल दिया जाए कि तुम्हे पिता जैसा ही बनना है तो उसकी मौलिकता समाप्त हो जाएगी। वह आवश्यक नहीं है कि क्रिकेट में सफल हो वह अन्य जगहो पर भी सफल हो सकता है। माता पिता अक्सर अपने बच्चों की तुलना करके किसी खास चरित्र जैसा बन जाने की हिदायत देते है। शिक्षक स्कूल में हर एक बच्चे की आपस में तुलना करता है और बच्चो को कहते है कि देख तेरा मित्र गणित में होशियार है तू क्यों नहीं है। ऐसी तुलना बच्चे को गणित में और कमजोर कर देगी। हमेशा अपना विकास करने के स्थान पर दूसरे के प्रयासो पर नजर रखना प्रारंभ कर देगा। समय की आवश्यकता है हमें बच्चों को मौलिक बनाना होगा। कौएं का और हंस का अपने अपने स्थान पर अलग अलग महत्व है जो प्रकृति में आवश्यक है। हमे इस प्राकृतिक नियम को समझना होगा। जब तक संसार में हम एक व्यक्ति की दूसरे व्यक्ति से तुलना करते जाएंगे समाज में पतन होता ही रहेगा। महावीर, बुद्घ, गांधी, तेदुंलकर बनने के लिए अपने स्वयं को नए सिरे से तैयार करना होगा। हां इतना अवश्य है कि उनके जीवन के विचारो से प्रेरणा ली जा सकती है। यदि हम सभी हमारी नई पौध को उनकी मौलिकता के साथ जीने का साहस दे तो वे निश्चित रूप से सफल होगे। हम स्वयं को भी हमारी मौलिकता को स्वीकार करना होगा। हमेशा अपने धरातल की स्थिति को समझ कर जीवनयापन करना होगा। बहुत बार आस पास के माहौल से की गई तुलना हमे मानसिक अवसाद में ले आती है। अभी रोग अवस्था का समय चल रहा है हममे से अधिंकाश अपने आस पास के माहौल को देखकर भयभीत है कि कहीं मेरे साथ ऐसा ना हो जाएं लेकिन यह आवश्यक नहीं है। आपकी सतर्कता आपके स्वास्थ्य के लिए उपयोगी होगी। इसमें आस पास से अपनी तुलना कर अपने आप को भय में डालने की आवश्यकता नहीं है। हमे हमारी तुलना करने की मानसिकता को बदलना ही होगा। मैं बीमार हो जाऊंगा की सोच के स्थान पर मैं हमेशा ठीक रहूंगा की सोच को महत्व देना होगा। तुलना करने की हमारी सोच अब समय के साथ बदलनी होगी। अपने आपको, अपने स्वभाव को, अपनी दिनचर्या को अपने समान तय करना होगा। क्या आप ऐसा कुछ कर सकते है? यदि कर सकते है तो क्यूं नही आज से ही प्रारंभ करे।

DINESH K.GARG (POSITIVITY ENVOYER)
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