ना नौ मन तेल होगा…..

जिस दिन मुद्दे सुलझ जाएंगे।
जिस दिन सारे वादे वफ़ा हो जाएंगे।
जिस दिन सियासी दलों के चुनावी ऐलान अमलीजामा पहन लेंगे।
समझो सियासत का आखिरी दिन होगा।
लोकतंत्र, जम्हूरियत, प्रजातंत्र, डेमोक्रेसी
वादे करके भूल जाने वाली सियासत है ये। घोषणाएं पूरी हो गयीं तो अगला चुनाव कैसे जीतेंगे। हर चुनाव में हर पार्टी का ऐलान– ” हमें जिताओ तो भ्रष्टाचार जड़ से ख़त्म कर देंगे”। क्या आप ये आवाम को बताओगे कि भ्रष्टाचार की जड़ है कहाँ? आप बता ही नहीं सकते। क्योंकि जो रिश्वत लेते पकड़े जाते हैं वो भ्रष्टाचार के वट वृक्ष के पत्ते, तने, शाखाएं या पराये परिंदों द्वारा बनाये गए घोसले हैं। उस भ्रष्टाचार के दरख़्त का मुख्य तना राजभवन की ज़मीन में सियासत की जड़ों के साथ खड़ा है।
सचिवालय, राज्यसभा और लोकसभा को आप खोद सकोगे…? नहीं..!!
तो आप भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म कर ही नहीं सकते। आप करोगे भी नहीं। आप उस जड़ का एक हिस्सा हो।
खबर आई कि राजस्थान के सचिवालय में स्वास्थ्य मंत्री भूतल पे आवश्यक बैठक ले रहे थे और प्रथम तल पे उन्हीं के महकमे के XEN, AEN, लेखाकार अथवा लेखाधिकारी स्तर के कार्मिक सामूहिक रिश्वत लेते धरे गए।
मास्टर की मौजूदगी में बच्चे क्लास में तभी अनुशासनहीनता कर सकते हैं, जब मास्टर खुद अनुशासनहीन हो, और मास्टर की कमज़ोर नब्ज़ विद्यार्थियों के हाथ हो। आजादी के सत्तर साल में हर प्रशासनिक विद्यार्थी ने अपने सियासी मास्टर की ये नब्ज़ थाम रखी है।
एक परिचित एक “उगाही” वाले महकमे में फील्ड पोस्टिंग पर हैं। सरकारी वर्दी, सरकारी जीप। नौकरी शुरू की थी तो ईमादारी का कीड़ा था। फुटबॉल बना दिया महकमे ने। समझ नहीं पाये कि गलती कहाँ है। अनुभवों ने बिगाड़ दिया।
शर्मनाक विडम्बना है आजाद भारत की कि लोग अमुभव से सुधरते हैं, वो बिगड़ गए। जिस पार्टी की सरकार होती है, सम्बंधित विभाग के मंत्रालय से मासिक टारगेट मिलता है कि इस माह इतने लाख की उगाही चाहिये। मंत्री 5 लाख कहते है, सचिव 6 बताता है, महाधीक्षक अथवा महानिरीक्षक 7 करता है, तो अधीक्षक 8 कह के नीचे आदेश फॉरवर्ड करता है। निचला अधिकारी 8 का 9 करके फील्ड अधिकारी अथवा कर्मचारी को टारगेट थामा देता है। फील्ड पे उगाही करने वाला सबसे छोटा कार्मिक उस महीने बताये गए 9 की जगह 10 लाख की उगाही करता है।
उगाही के लिए बदनाम कौन..? सबसे निचला कार्मिक, फील्ड वाला। जब ऊपर वाले सब लोगों के लिए उगाही से ठप्पा लग ही रहा है तो फिर खुद के लिए थोडा सा क्यों नहीं..!!
इसे रिवर्स में देखें। निचला कार्मिक दस में से अपनी टीम का 1 रख के नौ ऊपर पहुंचाता है…. और ऐसे ऊपर वाले अपना अपना रख के सबसे ऊपर की वांछित रकम सबसे ऊपर पहुंचा देते हैं। इसमें वो रकम शामिल नहीं जो बाकायदा सरकारी नियमानुसार रसीद काट कर वसूल की गयी और ईमानदारी से सरकारी खजाने में गयी। पेड़ फल फूल रहा है।
क्या सियासत अपनी जड़ें खोदेगी….? कभी नहीं….? सीधी सी बात है भ्रष्टाचार समाप्त कर देने का ये भ्रामक वादा आजादी के बाद सत्तर साल से ऐसे ही हर चुनाव में चलता आ रहा है… और जब तक प्रलय आकर धरती ख़त्म नहीं हो जाती, तब तक ये चिर स्थायी चुनावी मुद्दा ऐसे ही सियासत की दुकान के शो-केस की शोभा बढाता रहेगा। ना जड़ें खुदेंगी न भ्रष्टाचार का पेड़ कभी नेस्तनाबूत होगा।
निजी दुश्मनी में भले सत्ताधारी दल विरोधी को किसी मामले अथवा आरोप में जानवर की तरह घसीट कर थाने या अदालत ले जाएँ, मगर अंततः वो बरी ही होगा, क्योंकि उसकी पार्टी भी तो कभी सत्ता में आएगी।
वो हर चुनाव में सत्तर साल से बेरोजगारी मिटाने के सब्ज बाग़ दिखा रहे हैं। वो हर चुनाव में गरीबी ख़त्म करने की बात कर रहे हैं। मगर अगले चुनाव में भी वही वादे और सावन के अंधे वाली हरी हरी।
यानी आप किसी भी चुनाव में इस “तय चुनावी पाठ्यक्रम” से आगे बढ़ोगे नहीँ, और जनता को नये वादे देने की नौबत कभी आएगी नहीं। जनता वही भ्रष्टाचार समाप्ति, बेरोजगारी समाप्ति, महंगाई समाप्ति के ख्वाब लिए कभी इस पार्टी को, तो कभी उस पार्टी को सत्ता सौंपती रहेगी। आप और आप का निज़ाम भ्रष्टाचार के पेड़ से फल तोड़ तोड़ के खाता रहेगा। जनता का ख्वाब नींद में ही दम तोड़ देगा। सत्तर साल में कई पीढियां ख्वाब देखते देखते मर गयीं। आगे भी मरती रहेंगी। ना नौ मन तेल होगा, ना राधा नाचेगी। खुली आँख का सपना कभी सच नहीं होता। मगर भोली से ज्यादा बेवकूफ जनता ये नहीँ समझती। ये “उम्मीद” नाम की बेजान चिड़िया ना जाने क्यों मन में हर पांच साल बाद अवाम के मन में फड़फड़ाने लागती है। क्या ये ख्वाहिशों-उम्मीदों की चिड़िया कभी घुटते अँधेरे मन की क़ैद से आजाद होगी…?? शायद नहीं..???? क्योंकि शुरू में मैंने कहा न कि अगर ऐसा हुआ तो उस दिन सियासत की दूकान बंद हो जायेगी।
—-अमित टंडन, अजमेर

error: Content is protected !!