पर्यावरण संरक्षण के लिए वृक्षारोपण एवं उनकी देखभाल जरूरी

पर्यावरण दिवस पर विशेष

अशोक लोढ़ा
1974 में सयुक्त राष्ट्र द्वारा पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति अधिक से अधिक लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य को लेकर प्रतिवर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस घोषित किया गया । देश में हर वर्ष इस दिन पर्यावरण संरक्षण पर बड़े बड़े आयोजन किए जाते रहे है, लाखो वृक्ष भी विभिन्न राजनेताओं, सामाजिक संस्थाओं और वन विभाग द्वारा लगाये जाते रहे है, लेकिन इससे बाद इनकी समुचित रख रखाव के अभाव में अधिकाश वृक्ष पनपने से पहले ही मुरझा जाते है । पर्यावरण संतुलन में वृक्षों का सर्वाधिक योगदान है । इसलिए अधिक से अधिक वृक्ष लगें, वन संरक्षण हो । फलदार वृक्ष छाया देने के साथ-साथ समय पर फल भी देता है । देश के हर नागरिक को संकल्प लेना चाहिए कि वे अपने जीवन काल में कम से कम एक वृक्ष जरूर लगायेगे और उस वृक्ष की देखभाल अपनी संतान की तरह करेगे । इसके साथ ही स्वच्छता, प्रदूषण नियंत्रण, जल का सदुपयोग एवं वाहनों का सही रख रखाव जैसे अन्य विषय भी हैं, जिनसे हम दैनिक जीवन में पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान कर सकते हैं।

कोरोना महामारी के चलते देश के कई राज्यो में ऐसी गतिविधियां बंद है, जिससे पर्यावरण प्रदूषित होता है । 2020 में एक समय आया था, जब दुनिया की सड़कें, रेल पटरियां और नभ में वायुयान लगभग, नही के बराबर चल रहे थे । वैज्ञानिकों ने जब शोध किए, तो पता चला कि वायुमंडलीय प्रदूषण का स्तर बहुत सुधर गया है । उद्योग धंधों के लगभग बंद हो जाने का असर विश्व की कालिमा छाई हुई नदियों के थोड़े थोड़े उजले होने में दिखने लगा था । शोधकर्ताओं को पर्यावरण में जल स्थल और वायु प्रदूषणों पर कोविड-19 के प्रकोप के प्रभाव की जांच में मानव जनित अपशिष्टों की वृद्धि कम होती सी नजर आने लगी है । पिछले वर्ष में कोरोना महामारी के चलते एवं इस वर्ष लोगों में ऑक्सिजन लेबल कम होने के कारण हुई मोतो पर प्रकृति के प्रति आम जन में भी जबरदस्त जागरूकता आई है । आम लोगों को यह भी समझ में आने लगा है कि शरीर को स्वस्थ रखना है तो हवा में शुद्धता होनी चाहिए एवं वो शुद्धता हमे पर्यावरण संरक्षण से ही मिल सकती है ।

आज से दो साल पहले सोशल मीडिया व्हाट्सप्प, फेसबुक एवं अन्य सोशल साइड पर बढ़ते तापमान, सूर्य देव का प्रकोप एवं एक प्राचीन लघु कथा जिसमे हनुमान जी से उगते हुये सूर्य को लाल फल समझकर उसे पकड़ने और गर्मी के प्रकोप से राहत दिलाने की विनती इत्यादि पोस्ट अनवरत चल रही थी । इस का कारण था देश के कई स्थानों में तापमान 45 डिग्री या इससे अधिक का होना । लोग इस भीषण गर्मी से बेहाल हैं । दिन में बाजारों में सूनापन और आसमान से बरसने वाली आग ने लोगों को घरों और दफ्तरों में कैद कर दिया और कोरोना महामारी से पूर्व 2019 में इस मौसम से मरने वालो का आकड़ा 2000 के लगभग था । कोरोना महामारी के दो सालो में लगभग देश में लॉक डाउन की स्थिति रही, जिसके कारण इन दो सालो में जरूर गर्मी से बहुत कम मौत हुई है एवं इन दो वर्षो का कोई अधिकृत आंकड़ा भी नही है । भारत में भीषण गर्मी से हर साल हजारों लोग मारे जाते हैं । लेकिन पिछले दो दशक में गर्मी से मरने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है । नई दिल्ली स्थित विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र का कहना है कि अचानक बढ़ी गर्मी मौतों का कारण हो सकती है और इस बढ़ती गर्मी का मुख्य कारण वायु प्रदुषण ही है ।

पृथ्वी पर जीवन को पनपने के लिए करोडो वर्षो तक संघर्ष करना पड़ा है । भूगोल के अध्ययन से यह स्पष्ट है कि धरती पर जीवन की उत्पत्ति के लिए काफी लंबा समय तय करना पड़ा है । लेकिन जो वस्तु इंसान को प्राकृतिक एवं पूर्वजो की कड़ी मेहनत से मिली है । उसे आज खुद इंसान ही मिटाने पर लगा हुआ है । लगातार प्रकृति के कार्यों में हस्तक्षेप कर इंसान खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहा हैं । इंसान अपने फायदे के लिए ऐसे- ऐसे काम कर रहा हैं जहाँ प्रकृति उसका विनाश कर सकती है । जंगलों, वनों की कटाई कर धरती पर असंतुलन पैदा किया जा रहा है । मोटरयानो, आधुनिक कल कारखानो से निकलता हुआ जहरीला धुँआ वायुमंडल को प्रदूषित कर रहा है वहीं उस जल को भी इंसान ने नहीं बख्शा, जिसकी वजह से धरती पर जीवन संचालित होता है । विकास के नाम पर नदियों में कारखानो का जहरीला कूड़ा – करकट एवं जल छोड़ा जा रहा हैं । इंसान अपने स्वार्थ के लिए नदी, नालो, झीलों, तालाबों इत्यादि के जल के आवक मार्ग एवं भराव क्षेत्र पर अतिक्रमण कर प्रकृति को ललकार रहा हैं ।

वायु प्रदुषण के कारण दिनों – दिन पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है, क्योंकि सूर्य से आने वाली गर्मी के कारण पर्यावरण में कार्बन डाइ आक्साइड, मीथेन तथा नाइट्रस आक्साइड का प्रभाव बढ़ रहा है, जो सभी जीवो के लिए घातक हैं । हवा में अवांछित गैसों की उपस्थिति से मनुष्य, पशुओं तथा पंछियों को गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ता है । इससे बढ़ती गर्मी के साथ साथ दमा, खाँसी, अंधपन, श्रवण शक्ति का कमजोर होना आदि जैसी बीमारियाँ पैदा होती हैं । वायु प्रदुषण के कारण जिन अपरिवर्तन, अनुवाशंकीय तथा त्वचा कैंसर के खतरे बढ़ जाते हैं । लम्बे समय के बाद इससे अनुवाशंकीय विकृतियाँ उत्पन्न हो जाती हैं और अपनी चरम सीमा पर यह घातक भी हो सकती है । वायु प्रदूषण से अम्लीय वर्षा के खतरे बढ़े हैं, क्योंकि बारिश के पानी में सल्फर डाई आक्साइड, नाइट्रोजन आक्साईड आदि जैसी जहरीली गैसों के घुलने की संभावना बढ़ी है। इससे फसलों, पेड़ों, भवनों तथा ऐतिहासिक इमारतों को नुकसान पहुँच सकता है । सर्दियों में कई जगहों पर कोहरा छाया रहता है, वायु प्रदुषण के कारण धूएँ तथा मिट्टी के कण कोहरे में मिल जाते है । इससे प्राकृतिक दृश्यता में कमी आती है, आखों में जलन होती है और साँस लेने में कठिनाई होती है ।

अभी दो वर्ष पूर्व हमने मीडिया एक्शन फोरम की टीम के साथ चित्तौड़गढ जिले के चंदेरिया में स्थित हिन्दुस्तान जिंक द्वारा फैलाये जा रहे वायु प्रदूषण की खबर एवं इससे उत्पन स्थिति पर रिपोर्ट बनाई थी । इस जिंक संयंत्र द्वारा फैलाये जा रहे वायु प्रदूषण से हो रही तेजाबी बरसात के कारण आसपास के कई गांवों की उपजाऊ भूमि नष्ट होकर बंजर हो गई । जो विगत 10 वर्षों से वीरान पडी है । जिस जगह जिंक के संयंत्र की स्थापना की गई थी । वह जगह घनी हरियाली से भरपूर होकर प्राकृतिक वनस्पति व कृषि से परिपूर्ण क्षेत्र था । वर्तमान में हिंदुस्तान जिंक के कारखाने की स्थापना के बाद संयंत्र द्वारा वायुमण्डल में सल्फर के प्रदूषण से जिंक के द्वारा फैलाई जा रही इस हाइड्रोलिक एसिड से तेजाबी बरसात हो रही है । जिससे पुठोली के आसपास के कई गांव तेजाबी बरसात से प्रभावी हो गये । इस कारण क्षेत्र में गंभीर बीमारियां फैल रही है जिससे कई लोग मौत के शिकार हो गये है । जिंक के प्रदूषण से हो रही तेजाबी बरसात से इस क्षेत्र में 6-7 किलोमीटर की परिधि में वनस्पति नष्ट होकर बडे-बडे पीपल व बर के वृक्ष सूख कर राख हो गये है । प्रदूषण नियंत्रण के लिये यहाँ पर कोई कारगर उपाय नहीं किये गये । ऐसा यह कोई एक उदहारण नहीं है । देश और दुनिया से हर दिन इस तरह की खबरे आती रहती हैं लेकिन फिर भी इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाये नहीं जाते ।

ओजोन परत, हमारी पृथ्वी के चारो ओर एक सुरक्षात्मक गैस की परत है । जो हमें हानिकारक अल्ट्रावायलेट किरणों से, जो कि सूर्य से आती हैं, से बचाती है । ओजोन परत पृथ्वी के वायुमंडल की एक परत है, जिसमे ओजोन गैस की सघनता अपेक्षाकृत अधिक होती है । इसे O3 के संकेत से प्रदर्शित करते हैं । यह परत सूर्य के उच्च आवृत्ति के पराबैंगनी प्रकाश की 93-99 % मात्रा अवशोषित कर लेती है, जो पृथ्वी पर जीवन के लिये हानिकारक है । पृथ्वी के वायुमंडल का 91 % से अधिक ओजोन यहां मौजूद है । यह मुख्यतः स्ट्रैटोस्फियर के निचले भाग में पृथ्वी की सतह के उपर लगभग 10 किमी से 50 किमी की दूरी तक स्थित है, यधपि इसकी मोटाई मौसम और भौगोलिक दृष्टि से बदलती रहती है । ओजोन एक हल्के नीले रंग की गैस है । यह गैस सूर्य से आने वाली पराबैंगनी-बी किरणों के लिए एक अच्छे फिल्टर का काम करती है और महज दो से तीन फीसदी हिस्सा ही पृथ्वी की सतह तक पहुंच पाता है । वैज्ञानिकों का कहना है कि ओजोन परत के नष्ट होने से सूर्य से आनेवाली पराबैंगनी किरणों के चलते धरती बंजर और वीरान हो सकती है । सूर्य की पराबैंगनी किरणों से धरती को बचाने वाली ओजोन परत में काफी बड़ा छेद हो चुका है । नासा के उपग्रह से प्राप्त आंकड़े के अनुसार, ओजोन छिद्र का आकार 13 सितंबर, 2007 को अपने चरम पर कोई 97 लाख वर्ग मील के बराबर पहुंच गया था, यह क्षेत्रफल उत्तरी अमेरिका के क्षेत्रफल से भी अधिक है । वैज्ञानिक मानते हैं कि प्रदूषण और मौसमी बदलावों की वजह से ओजोन परत को और ज्यादा नुकसान पहुंच सकता है । ऐसी स्थिति में दक्षिणी ध्रुव की बर्फ तेजी से गलने लगेगी । इससे तापमान बढ़ने के साथ साथ समुद्रों का जलस्तर बढ़ने लगेगा । तटीय इलाकों के डूबने से करोड़ों लोगों को विस्थापित होना पड़ सकता है ।

स्वच्छ पर्यावरण और शुद्ध ऑक्सीजन के लिए धरती पर हरियाली और बड़े वृक्षों का होना बहुत जरूरी है । पर्यावरण का स्वच्छ एवं सन्तुलित होना मानव सभ्यता के अस्तित्व के लिए आवश्यक है । पहला, वृक्ष विशेषकर जल, कार्बन और नाइट्रोजन के चक्रों के प्रवाह को नियंत्रित करते हैं । इनका स्थानीय और विश्व ऊर्जा संतुलन में भी भारी महत्व होता है । ऐसे चक्र न केवल वनस्पति के वैश्विक, बल्कि जलवायु के भी स्वरूपों के लिये महत्वपूर्ण होते हैं । दूसरा, वृक्ष मिट्टी के गुणों को भी प्रबल रूप से प्रभावित करते हैं, जिनमें मिट्टी का आयतन, रसायनिकता और बनावट शामिल हैं, जो बदले में उत्पादकता और रचना सहित विभिन्न वनस्पति गुणों को प्रभावित करती है । तीसरा, वृक्ष और वन इस ग्रह पर मौजूद जन्तुओं की विशाल सारणी के लिये वन्य जीवन आवास और ऊर्जा के स्रोत का काम करते हैं । संभवतः सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वैश्विक वनस्पति वातावरण में आक्सीजन का प्रमुख स्रोत है । वृक्ष और वन वर्षा को अपनी और आकर्षित करते हैं । वर्षा होने के कारण तापमान में कमी आती है । पेड़ और जंगलो की अंधाधुंध कटाई होने के कारण दिनों-दिन सूर्य की गर्मी बढ़ती जा रही हैं ।

वृक्ष एवं वन धरती के आभूषण के साथ-साथ मानव जीवन के लिए भी अति महत्वपूर्ण हैं । इनके बिना जीवन सम्भव नहीं है । वन नष्ट होते हैं तो बाढ़, सूखा, आग, अकाल व महामारी फैलती है । वृक्ष एवं वन प्रकृति के ऐसे वरदान हैं, जो हमें हरियाली और फल-फूल देने के साथ ही हमारे बेहतर स्वास्थ्य में भी सहयोग करते हैं । पर्यावरण संरक्षण में न केवल वृक्षों का महत्व है बल्कि इनका महत्व धर्म और वास्तु से भी जुड़ा है । पर्यावरण और वृक्षों के बीच काफी गहरा रिश्ता है । वैसे तो ये चीज़ हम अपने अनुभव से भी महसूस कर सकते हैं, पर अब तो वैज्ञानिक शोध ने भी ये साबित कर दिया है कि वृक्ष लगाने से कई सारे लाभ होते हैं । कारखानो से निकली कार्बन डाई आक्साइड गैस को वृक्ष सोख लेते हैं और हमारे लिए आक्सीजन देते हैं । वृक्षों की जड़ मिट्टी को बांध कर रखती हैं । जिससे कि मिट्टी का कटाव कम होता है और खासतौर से इसका फायदा बारिश में होता है । वृक्षों से आसपास का तापमान कम रहता है, वृक्षों के रहने से धूल भी कम उड़ती है, वृक्षों के रहने से तरह तरह के पक्षी भी आते है जो कि पर्यावरण को हमारे अनुकूल बनाते हैं । पर्यावरण की दृष्टि से हमारा परम रक्षक और मित्र वृक्ष एवं वन है । यह हमें अमृत प्रदान करते है । हमारी दूषित वायु को स्वयं ग्रहण करके हमें प्राण वायु देते है, मरूस्थल पर नियंत्रण करते हैं, नदियों की बाढ़ो की रोकथाम करते हैं, जलवायु को स्वच्छ रखते हैं, समय पर वर्षा लाने में सहायक होते हैं, धरती की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाते हैं । वृक्ष हमारा दाता है जो हमें निरन्तर सुख ही देते रहते है ।

हमारे ऋषि मुनि जानते थे कि प्रकृति जीवन का स्त्रोत है और पर्यावरण के समृद्ध और स्वस्थ होने से ही जीवन समृद्ध और सुखी होता है । केवल इतना ही नहीं वे तो प्रकृति की देव शक्ति के रूप में अर्चना उपासना करते थे और प्रकृति को ‘परमेश्वरी ’ भी कहते थे । जहां एक ओर हमारे दूर- दृष्टा मुनियों ने जीवन के आध्यात्मिक पक्ष पर चिन्तन किया, पर्यावरण पर भी उतना ही ध्यान दिया। जो कुछ पर्यावरण के लिए हानिकारक था उसे आसुरी प्रवृत्ति कहा और हितकर को दैवी प्रवृत्ति माना । मानव समाज और प्रकृति में घनिष्ट सम्बन्ध रहा है । मानव के प्रकृति से संबंध केवल गहरे ही नहीं, भावुक एंव मार्मिक भी है। प्रकृति हमारी माता है। वृक्ष, वनस्पतियां, नदियां, झीले पर्यावरण संतुलन के बहुत ही महत्वपूर्ण स्तंभ है । ये पर्यावरण के सजग प्रहरी के समान है । हमारे आदिकाव्य रामायण और महाभारत में वृक्षों एवं वनों का चित्रण पृथ्वी के रक्षक वस्त्रों के समान पाया जाता है । वृक्षों एवं वनों को ऋषियों द्वारा पुत्रवत परिपालित करते वर्णन किया है । अपने किसी स्वार्थसिद्धि के हरे-भरे पेड़ों को काटना पाप माना गया है । मनुस्मृति में बताया गया है कि बिना कारण वृक्षों को काटने पर दंड का विधान है । जो वृक्ष अपना लाभ प्राणियों को व पर्यावरण को दे चुके होते है केवल उसे ही काटा जा सकता है । हम यह समझते रहे हैं कि समस्त प्राकृतिक सम्पदा पर एकमात्र हमारा ही आधिपत्य है । हम जैसा चाहें, इसका उपभोग करें । इसी हमारी भोगवादी प्रवृति के कारण हमने इसका इस हद तक शोषण कर दिया है कि हमारा अपना अस्तित्व ही संकटग्रस्त होने लगा है । वैज्ञानिक बार-बार चेतावनी दे रहे है कि प्रकृति, पर्यावरण और परिस्थिति की रक्षा करो, अन्यथा हम भी नहीं बच सकेंगे ।

सरकार को चाहिए कि वो लोगों के बीच सभी स्तरों पर जागरूकता का प्रचार करने वाले गैर-सरकारी संगठनों, जन मीडिया और अन्य संबंधित संगठनों को प्रोत्साहित करे । मौजूदा शैक्षणिक, वैज्ञानिक अनुसंधान संस्थानों के माध्यम से पर्यावरण संबंधी शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार करे । ताकि पर्यावरण के परिरक्षण और संरक्षण के लिए लोगों को जागरूकता बढ़े । पर्यावरण की रक्षा के लिए सरकार और जनता दोनों को ही निस्वार्थ इस दिशा में काम करना होगा । सरकार को चाहिए पर्यावरण की रक्षा के लिए बड़े पैमाने पर देश की आम जनता में जागरूकता लाये । सरकार हर सड़क के किनारे घने वृक्ष लगवाये, आबादी वाले क्षेत्रों और कालोनियों में जहाँ पर भी संभव हो, वृक्षरोपण करवाये । पर्यावरण की रक्षा के लिए सरकार कल-कारखानो को आबादी से बहुत दूर लगाने की अनुमति दे । कारखानो और शहरों का प्रदूषित जल-मल व कूड़ा-कचरा नदियों में गिरने से रोका जाये । प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर रखना ही धरती पर प्रलयकारी स्थिति से बचने का एकमात्र उपाय है ।

अशोक लोढ़ा नसीराबाद

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