निंदा

Dinesh Garg
हमारे हाथों में पांच अंगुलियां होती है। जब हम किसी व्यक्ति की ओर अंगुली से इशारा करते हुए उसकी निंदा या आलोचना करते हैं तो उस समय तीन अंगुलियां हमारी तरफ मुड़ी होती है और वह हमारी और भी संकेत करती है इसलिए जब भी हम किसी के दोषो की और संकेत करें तो हमारे लिए अति आवश्यक है सबसे पहले हम अपना स्वयं का विश्लेषण करें कि हमारे में तो वह दोष नहीं है जिसके लिए हम दूसरों को दोषी ठहरा रहे हैं या उसकी निंदा कर रहे हैं। ऐसा करने का एक सीधा सरल उपाय है जब भी हम किसी के कोई दोष देखें तो उसे महत्वहीन समझें और उस और ध्यान ना दें। यदि हमने स्वयं में कोई छोटा सा दोष भी दिखे या कोई हमारे दोषो को या कमियों को बताने का प्रयास करें तो उसे आलोचना ना समझ कर उसे सकारात्मक रूप से ले और उसे दूर करने के लिए प्रयास प्रारंभ करें। दूसरो की निंदा करने में इतना श्रम नहीं लगता जितना अपने स्वयं में सुधार करने में लगता है। आप जिसकी निंदा कर रहे है आवश्यक नहंी कि उस निंदा में कुछ भी सत्य हो तो क्यूं कर हम उस असत्य को दूसरो के सामने सत्य रूप में रखने का कार्य करे। सत्य को आप जब तक जांच परख ना ले किसी के लिए भी निदंनीय बाते ना करे। कल्पना करे कि यदि आपके साथ भी कोई आपकी असत्य निंदा कर रहा है तो आपकी मनोदशा पर कितना असर होगा जैसे ही आप उस स्थिति का अनुभव करेगे तो आप निदंनीय चर्चा से स्वत: ही दूर हो जाएंगे और हो जाएंगे सबके प्रिय। किसी की निंदा कर उससे दूरी बना लेना आसान है लेकिन उसकी प्रंशसा कर उसका बन जाना मुश्किल भी तो नहीं है तो आपको चयन करना है कि आप क्या करना चाहते है। आप अपना निर्णय लेने के लिए पूर्णत: स्वतंत्र है। आप क्या मेरे इस कथन से सहमत है कि क्या प्राप्त करना चाहेगे दूरी या निकटता, आपके जबाब का इंतजार रहेगा।

DINESH K.GARG ( POSITIVITY ENVOYER)
dineshkgarg.blogspot.com

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