समर्पण

Dinesh Garg
हम प्रतिदिन परम शक्ति से आराधना करते है और अपने को प्राप्त वह समस्त सांसरिक वस्तुएं, पदार्थ उन्हें अर्पित भी करते है इस आशय के साथ कि हमारे सारे मनोरथ अब पूर्ण हो जाएंगे या फिर अब तक पूरे मनोरथो का हम उन्हें धन्यवाद अर्पित करना चाहते है। कभी विचार किया है कि आखिर वह आपसे क्या चाहते है? क्या वह आपसे आपके अर्थ की चाहत रखते है या आपकी प्रतिष्ठा या पद की। इसका एक प्रत्यक्ष संस्मरण यह था कि एक बार एक अजनबी अपने किसी व्यक्ति के घर अपने लिए सहयोग लेने के लिए गया। वह खाली हाथ आया था तो उसने सोचा कि कुछ उपहार देना अच्छा रहेगा तो उसने वही पर टंगी एक पेन्टिंग उतारी और जैसे ही वह व्यक्ति सामने आया, उसने संकोच के साथ पेन्टिग देते हुए कहा, यह मैं तेरे लिए लेकर लाया हुँ। व्यक्ति आश्चर्य चकित हुआ क्योंकि वह जान चुका था कि यह तो मेरी ही चीज मुझे ही भेंट दे रहा है, यह देखकर वह सन्न रह गया लेकिन अपने स्वभाव के खातिर उसने कुछ भी जाहिर नहीं किया और शांत रहा। अब आप ही बताएं कि क्या वह भेंट पा कर जो कि पहले से ही उसका है, उस व्यक्ति के मन में प्रसन्नता के भाव होगे? मेरे ख्याल से शायद नहीं क्योंकि जब मैने इस विषय पर चिंतन किया तो पाया कि यही कार्य हम परमशक्ति के आराध्य स्थलों पर जाकर हम स्वयं भी तो प्रतिदिन करते है। हम कृतज्ञता स्वरून वे ही रूपया,वस्तुएं,साम्रगी उन्हेें अर्पित करते है जो कभी भी हमारी थी ही नहीं लेकिन यहां हम गलत होते है। हम यह भी जानते है कि उनको इन सब चीजों कि जरुरत नहीं है लेकिन फिर भी वे ही हम उन्हें बार बार अर्पित करते है। वस्तुत: यदि हम सच में उन्हें कुछ अर्पित करना चाहते हैं तो हमें उन्हीं अपनी श्रद्धा का भाव सौंपना चाहिए ,उन्हें अपने हर एक श्वास में याद करने का वर मांगना चाहिए और उन्हें अपनी एक कमी जो हमारे स्वयं के द्वारा ही निर्मित होती है वह है हमारा अहं व दूसरो के लिए मन में उपजे नकारात्मक विचारो के त्याग के भाव को अंत:स्थल से अर्पित कर देना चाहिए। उन्हें एक धनवान व एक निर्धन का समर्पण व सकारात्मक बननेे का भाव समान रूप से स्वीकार्य है। यहि एक मात्र अपेक्षा सर्वशक्तिमान हम से रखता है। क्या हम भी ऐसा करते है़? चिंतन करे।

DINESH K.GARG ( POSITIVITY ENVOYER)
dineshkgarg.blogspot.com

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