परिपक्वता

Dinesh Garg
जीवन हर पल बीत रहा है, बीते दिनो का अनुभव हमें हमारी गलतियों से काफी कुछ सिखा भी जाता है और हम उम्र के पड़ाव की और बढ़ते हुए अधिक परिपक्व होते जाते है। जीवन में हम सभी ने अपने अपने अनुरूप सब कुछ प्राप्त किया है लेकिन समय शेष है हमें कुछ और सीखना बाकी भी है। आखिर क्या और कुछ सिखा जा सकता है आइए जानते है।
दूसरो से उम्मीदे समाप्त कर दे कि मैंने उसके लिए कुछ किया तो उसे भी मेरे लिए कुछ करना चाहिए। समय के साथ साथ नकारात्मक लोगों से दूरी बनानी होगी। जो आपको बेहतर मार्ग की और ले जाने का साहस दिला सके वहीं साथ आपको चयन करना होगा। अतीत में जीने से अच्छा है भूलना सीख ले और परिस्थितियों को स्वीकार करना प्रारंभ कर दे। मानकर चले कि एक दिन में सभी कुछ आपकी उम्मीदो के मुताबिक नहीं हो सकता। यदि आपको किसी ने कुछ भला बुरा कहा है तो कुछ समय के लिए ठहर जाएं, मौन धारण कर ले अपनी प्रतिक्रिया ना दे। जीवन के अंतिम दौर की अग्रसर होने पर हमें आवश्यकता और चाहत में स्पष्ट पहचान कर लेनी चाहिए। आवश्यकता संतुष्ट की जा सकती है लेकिन चाहत हमेशा बने ही रहने वाली है। शरीर में रोग और पीड़ा नकारात्मक वातावरण से उत्पन्न होती है और उसके लिए हमारे द्वारा किया गया अत्यधिक भौतिक संग्रह जिम्मेदार है। क्यूं नहीं समय रहते अनावश्यक का त्याग कर दे। हमें इस जीवन में स्वयं से खुश रहने की कला को और बेहतर तरीके से सीखना होगा। दूसरो के द्वारा दी गई खुशी तो सिनेमा हाल में टिकट खरीदकर प्राप्त की जा सकती है। प्रत्येक व्यक्ति में कुछ ना कुछ कमी रहती है, आपकी कई कमियों को भी तो लोग स्वीकार करते है तो आप ऐसा क्यों नहीं कर सकते कि दूसरो में अच्छाईया तलाशना करना प्रारंभ कर दे। अपने द्वारा किए गए सद्कार्याे व सेवा कार्य के लिए आपको दूसरो से प्रमाण पत्र लेने की कोई आवश्यकता नहीं है। आपको जिस कार्य में संतुष्टि मिले वह अनवरत् जारी रखे। समय तेजी से बदल रहा है इसके पहले कि हम तनावग्रस्त व रोगग्रस्त हो अपने मैं और अधिक बदलाव का प्रयास तो आज से ही प्रारंभ कर सकते है।

MIRACLE THINKING BY dinesh k. garG ….
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