साँच बराबर तप नहीं, झूंठ बराबर पाप।
सत्य को जान लेना सब से बड़ी तपस्या है। इसी तरह झूठ को नहीं जानना सब से अधिक घातक पाप है। सत्य को जान लोगे तो मुक्त हो जाओगे। झूठ से अनभिज्ञ रहोगे तो डूब जाओगे। झूठ ही पतन कराता है। झूठ ही बार बार पुनर्जन्म कराता है। असत्य ही जेल कराता है। असत्य ही बदनामी लाता है। वस्तुवादी ओर अध्यात्मवादी, दोनों क्षेत्र में मनुष्य का पतन झूठ ही कराता है।
सत्य को जान लोगे तो स्वतः ही झूठ से दूर हो जाओगे। कबीरदास जी के अनुसार सत्य को जानने का तात्पर्य है –
1. स्थूल शरीर से ऊपर उठते हुए निर्वाण शरीर (जहां देह नहीं हे, मोक्ष) तक पहुंच जाना।
2. भौतिक देह की नश्वरता की रूहानी अनुभूति कर लेना। इस के प्रभाव से ही आसकित छूटेगी।
3. वसनाओं एवं कामनाओं से अप्रभावी रहना।
4. आत्म भाव में स्थिर रहते हुए कर्तव्य कर्म करना।
5. गुरु की कृपा से अमृत्यु का रहस्य जान लेना। ऐसे महातमा संसार में उनका कार्य पूरा होते ही स्वयं के शरीर को छोड़ देते हैं। योग विधि के अनुसार देह से निकल जाते हैं। उन्हें मृत्यु नहीं मारती ; वे खुद ही देह का त्याग करते हैं।
6. म्न, कर्म और वचन के स्तर पर सत्य का निर्वाह करते हैं।
इस तरह साँच बराबर तप, का बहुत विस्तृत अर्थ है। ये ऋषि मुनि, संत महातमा आदि इस कथन के साकार रूप होते हैं। न अभिमान, न आसक्ति, न मन मुटाव, न ईष्र्या द्वेष ओर न ही छल कपट – यही है सत्य को जान लेन और सत्य के साथ रहना।
झूट में ही पड़े रहना पाप है। यहां पाप का तात्पर्य है बार बार जनम लेते हुए मृत्यु का आतंक भोगना। झूठ का मतलब है ऐसे कर्म करना जो आपकी ही जीवातमा को अधो योनियों में पुनर्जनम के लिए विवश करते हैं। झूठ यानी अपने और अपने परिवार के मान सम्मान को मटियामेट करना। झूठ अर्थात अपनी एवं अपने गुरु की नजरों से गिर जाना। जब तुम अपने आप से ही लज्जित होने लगो, खुद अपनी ही नजर में गिर जाओ तो समझ लेना कि तुम ‘झूठ बराबर पाप नहीं’ की अवस्था में पड़ गए हो।
शरीर शूठ है, आत्मा सत्य है। मृत्यु झूठ है, अमृत्यु सत्य है। अज्ञान झूठ है, ज्ञान सत्य है। अब यह तुम्हारी इच्छा कि तुम किस राह पर चलते हो।