जननायक शास्त्री जी के जीवन के अद्भुत मर्मस्पर्शी प्रेरणादायक संस्मरण Part 1

j k garg
नाटे कद और हमेशा मुस्कराता हुवा चेहरा रखने वाले शास्त्री जी जवाहर लाल के उतराधिकारी बन कर देश के दुसरे प्रधानमंत्री बने | वास्तव में शास्त्री जी जहाँ एक तरफ आजादी के लिये अपना सर्वस्व कुर्बान करने का संकल्प रखते थे वहीं दसरी तरफ वो मितभाषी और आत्मसम्मान के धनी थे | वर्तमान समय के आज के राज नेताओं की आत्म वंचना सेल्फ प्रेज ईगो और सच्चे झूटे बडबोलेपन एवँ सेल्फ मार्केटिग से जनसाधारण नागरिको को बहलाने फुसलाने और उनका नाम अख़बारों में छपे और टेलीवीजन पर लोग उनकी तारीफ के गीत गीत गायें तथा उनके कामों की प्रशंसा करें | इन सब के विपरीत शास्त्री जी तो कभी भी नहीं चाहते थे कि उनका नाम अखबारों मे छपे | उन्होंने अपने जीवन में कभी भी कायदे कानून की अवेहलना नहीं होने दी थी वो तो सही मायनो के अंदर बापू जी के आदर्शो को मानने वाले उनके सच्चे अनुयायी थे | उनमे ना किसी भी पद और सम्मान का लालच था और ना ही पद का अभिमान था | 1965 की भारत पाकिस्तान की लड़ाई के समय पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सीमा रेखा को पार करके पाकिस्तान की धरती में घुस कर आक्रमण कर लाहोर के नजदीक पहुच जाने का साहिसिक फेसला लेने वाले शास्त्री जी ही थे उनके इस निर्णय की प्रसंसा तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल चोधरी और वायुसेना के मुखिया एयर मार्शल अर्जुन ने भी की थी | पिछले 50 वर्षो में जन्म लेने वाले हिन्दुस्थानियो को तो इस बात में वीस्वश ही नहीं होगा कि आज का कोई मंत्री नैतिकता और अपनी आत्मा की आवाज पर उसके विभाग में घटित दुर्घटना पर अपना मन्त्री पद से त्याग पत्र देने की हिम्मत कर सकता है | किन्तु शास्त्री जी ने ऐसा कर दिखाया |

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