हुस्न और इश्क की आज मेराज है (गुरु और शिष्य का रूहानी मिलन )

शिव शर्मा
वह शिष्य बड़भागी है जिसके साथ गुरु का रूहानी मिलन होता है! मेराज यानी मिलन! रूहानी मिलन! हुस्न यानी गुरु का नूरानी रूप! हीरे की कनी जैसा चमकदार! गुरु का नूरानी जलवा! इश्क यानी मुरीद का गुरु के प्रति प्रेम! गुरु के प्रेम में शिष्य जब अपने भौतिक वजूद को भूल जाता है तब ऐसी अवस्था आती है! गुरु उसकी रूह को आज्ञा चक्र पर उठाता है और वही अपने नूरानी स्वरूप के दर्शन कराता है! इसी को हुस्न और इश्क की मेराज कहते हैं!
इसके बाद शिष्य की रूहानी चढ़ाई तेज गति से होती है! आज्ञा चक्र का श्वेत बिंदु ( यह एक त्रिकोण में होता है) बढ़ते बढ़ते प्रकाश का बड़ा गोला बन जाता है! इसमें लाखों चमकदार गोल-गोल धारियां होती हैं! यह गोला सहस्त्रार चक्र में या कपाल में दिखाई देता है! यहां स्पंदन महसूस होता है! सांस यहां तक पहुंचने लगती है! नाभि मंडल से उठी हुई सांस सीधी यहां टकराती है! साधक को अपनी रूह इसी प्रकाश के गोले में स्थिर करनी पड़ती है! यदि साधक खुद ऐसा नहीं कर पाता है तो फिर गुरु का नूरानी रूप उसे खींचता है! यहां ही गुरु तत्व है और यही चेतन तत्व है और यहां ही आत्म तत्व है! यही शिष्य गुरु और ईश्वर की एकरूपता है! रूहानी मेराज की पूर्णता यही संपन्न होती है!

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