ग्राम स्वराज की सार्थक पहल

-डॉ. देवदत्त शर्मा-
जयपुर, महात्मा गांधी का सपना था कि गांव का शासन गांव से चले। लोक खुद तय करें कि उनके विकास की प्राथमिकताएं क्या हैं। इसी प्रकार नेहरू जी ने भी एक बार कहा था कि हिन्दुस्तान की सच्ची तरक्की तभी होगी जब गांव के लोगों में राजनैतिक चेतना पैदा होगी। देश की आबादी का अस्सी फीसदी से भी ज्यादा भाग गांवों में रहता है और देश की तरक्की का दारोमदार हमारे गांवों की तरक्की पर है। जब हमारे गांव तरक्की करेंगे तभी हिन्दुस्तान मजबूत राष्ट्र बनेगा और कोई भी उसकी तरक्की को नहीं रोक सकेगा। आज यह बात सचमुच में सही साबित हो रही है कि गांव की तरक्की गांव के हाथ में है। आज गांवों की सरकार अर्थात् पंचायतों को इतना सुदृढ़ कर दिया गया है कि वे अपने क्षेत्र के हित के फैसले स्वयं लेने लगे हैं और गांव के लोगों की राय के मुताबिक विकास कार्यों की प्राथमिकता तय करने लगे हैं।
इतना ही नहीं महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज के सपने को साकार करने के लिए राज्य सरकार ने पंचायती राज संस्थाओं को प्रारम्भिक शिक्षा,चिकित्सा एवं स्वास्थ्य, कृषि, महिला एवं बाल विकास तथा सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता जैसे पांच महत्वपूर्ण विभाग सौंप दिये हैं। विभागों की जिला स्तरीय गतिविधियां पंचायतीराज संस्थाओं को हस्तान्तरित कर दी गई हैं। पंचायतीराज संस्थाओं की मजबूती के लिए उठाये गये इन कदमों के फलस्वरूप वर्ष 2010-11 में भारत सरकार ने राजस्थान को प्रथम पुरस्कार के रूप में डेढ़ करोड़ रुपये नकद तथा प्रशंसा-पत्र देकर सम्मानित किया है।
राज्य सरकार ने पंचायतीराज संस्थाओं के सुदृढ़ीकरण के लिए राजस्थान ग्रामीण विकास राज्य सेवा का गठन किया है वहीं पंचायतीराज संस्थाओं को भौगोलिक एवं प्रशासनिक दृष्टि से सुदृढ़ एवं सुविधाजनक बनाने के लिए ग्राम पंचायतों, पंचायत समितियों तथा जिला परिषदों के पुर्नसीमांकन एवं पुनर्गठन के तहत दस नई पंचायतों के नव सृजन की अधिसूचना जारी की गई। अब राज्य में कुल 249 पंचायत समितियां हैं। पंचायतीराज संस्थाओं को हस्तांतरित किये गये विभागों की जिला स्तर तक की निधियां, गतिविधियां एवं स्टाफ तथा प्रभावी पर्यवेक्षण की दृष्टि से प्रशासनिक अधिकार भी पंचायतीराज संस्थाओं को प्रदान कर दिये गये हैं। इस हस्तान्तरण को प्रभावी बनाने के लिए तीन मंत्रियों की एक समिति गठित की गई है तथा जिला स्तर पर स्थानीय समस्याओं के समाधान हेतु जिला कलेक्टर की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया है।
हस्तांरित विभागों के कारण बढ़ी हुई जिम्मेदारियों को प्रभावी ढंग से निष्पादित करने के लिए सभी पंचायत समितियों के प्रधानों और जिला प्रमुखों को पृथक से वाहन उपलब्ध कराये गये हैं और जिला प्रमुख का मानदेय 5100 रुपये से बढ़ाकर 7500 रुपये, पंचायत समिति प्रधान के 3100 रुपये से बढ़ाकर 5 हजार रुपये तथा सरपंच के एक हजार रुपये से बढाकर 3000 रुपये कर दिये गये हैं। इसी प्रकार पंचायतीराज जन प्रतिनिधियों के बैठक भत्तों में भी वृद्घि की गई है। ग्राम पंचायत सदस्य के 50 रुपये से 75 रुपये, पंचायत समिति सदस्य के 75 रुपये से बढ़ाकर 100 रुपये तथा जिला परिषद सदस्य के 90 रुपये से बढ़ाकर 125 रुपये कर दिये गये हैं। जिला प्रमुखों की यात्रा के दिवसों को भी 120 से बढ़ा कर 240 दिवस तथा प्रधानों के लिए 60 से बढ़ाकर 120 दिवस प्रति वर्ष कर दिये गये हैं।
पंचायतीराज संस्थाओं में लम्बे समय से निष्क्रिय रही स्थायी समितियों को क्रियाशील करने तथा पंचायतीराज संस्थाओं कीे निर्णय प्रक्रिया में भागीदार बनाने के लिए राजस्थान पंचायतीराज (अन्तरित क्रियाकलाप) नियम, 2011 जारी किये जा चुकें हैं। अब ग्राम पंचायत की प्रत्येक माह की चार व पांच तारीख, पंचायत समिति की प्रत्येक माह की तीसरे मंगलवार एवं बुधवार तथा जिला परिषद की प्रत्येक माह के दूसरे मंगलवार एवं बुधवार को बैठक आयोजित करने के निर्देश जारी कर दिये गये हैं। इसी प्रकार राजस्थान पंचायतीराज अधिनियम, 1994 की धारा 46 के प्रावधानों की पालना तथा पंचायत समिति के कार्यों में पारदर्शिता एवं बेहतर संचालन हेतु अब साधारण सभा की बैठक माह के अंतिम गुरुवार के स्थान पर माह के अंतिम शुक्रवार को निर्धारित की गई है।
राजस्थान पंचायतीराज नियम 1996 के नियम 165 के अन्तर्गत पंचायतीराज संस्थाओं को चारागाह, चरनोट तथा ओरन आदि भूमि से अतिक्रमण हटाने, चारागाह विकास हेतु वर्षा जल संरक्षण संरचनाओं का निर्णाण, वृक्षारोपण तथा कच्ची चारदीवारी के कार्य महात्मागांधी महानरेगा योजना के तहत वार्षिक कार्य योजना में सम्मिलित करवाते हुए निष्पादित करवाये जाने के निर्देश दिये गये हैं।
पंचायतीराज संस्थाओं को सुदृढ़ बनाने की दिशा में लिए गये महत्वपूर्ण निर्णयों में जहां राज्य वित्त आयोग (तृतीय) के अन्तर्गत प्राप्त अनुदान की राशि का उपयोग पीने के पानी सम्बन्धी कार्यों पर प्राथमिकता से करने के आदेश दिये गये हैं वहीं पंचायतीराज संस्थाओं में लेखा संधारण भी सुनिश्चित किया गया है। इसके लिए सभी मुख्य कार्यकारी अधिकारियों को निर्देशित किया गया है कि वे समय-समय पर पंचायतीराज संस्थाओं के लेखा संधारण की व्यवस्था का निरीक्षण करें तथा विकास अधिकारी, लेखाधिकारी एवं लेखाकार को प्रतिमाह ग्राम पंचायतों का निरीक्षण करने हेतु पाबन्द करें। लेखा संधारण में पाई गई कमियों, दुर्विनियोजन, चोरी, प्रारूप प्रालेख, विशेष जांच तथा अग्रिम के प्रकरणों के ध्यान में आते ही अविलम्ब अनियमित राशि की वसूली, पुलिस कार्यवाही आदि सुनिश्चित करने तथा सम्बन्धित के खिलाफ अपेक्षित कार्यवाही करने के भी निर्देश दिये गये हैं। पंचायतराज संस्थाओं के सशक्तीकरण के लिए राज्य वित्त आयोग ने आर्थिक संसाधन 460 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 980 करोड़ रुपए किए हैं।
पंचायतीराज संस्थाओं को सुदृढ़ किये जाने के फलस्वरूप गत चार वर्षों के दौरान अनेक महत्वपूर्ण उपलब्धियां अर्जित की गई हैं। राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में 84 हजार 333 आवासहीन गरीब परिवारों को रियायती दर पर आवासीय भूखण्ड एवं एक लाख 53 हजार 720 बी.पी.एल. परिवारों को नि:शुल्क आवासीय भूखण्ड आवंटित किये गये हैं। इसी प्रकार 3 लाख 21 हजार 593 पुराने आवासीय भवनों तथा 60 हजार 228 मकानों के नियमितीकरण के पट्टे जारी किये गये।
राज्य के तेरह जिलों में पिछड़ा क्षेत्र अनुदान कोष कार्यक्रम चलाया जा रहा है। कार्यक्रम के तहत दिसम्बर, 2008 से सितम्बर, 2012 तक भारत सरकार से प्राप्त 987.35 करोड़ रुपये की राशि जिलों को हस्तान्तरित की जा चुकी है। इस राशि में से 873.43 करोड़ रुपये की राशि जिलों द्वारा खर्च कर 30 हजार 934 कार्य पूर्ण करवाये गये हैं। इसी प्रकार निर्बन्ध राशि योजना के तहत दिसम्बर, 2008 से लेकर अब तक 4900 लाख रुपये की अनुदान राशि पंचायतीराज संस्थाओं को हस्तान्तरित की गई एवं जिलों द्वारा उपलब्ध राशि में से 2857.90 लाख रुपये की राशि व्यय कर 1363 कार्य पूर्ण करवाये गये।
ग्रामीण क्षेत्रों में विभिन्न सेवाओं के रख-रखाब हेतु राज्य वित्त आयोग तृतीय के तहत गत दिसम्बर 2008 से अब तक 580.84 करोड़ रुपये की अनुदान राशि तथा बारहवें वित्त आयोग के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में जल आपूर्ति एवं स्वच्छता सम्बन्धी क्रियाकलापों के लिए गत चार वर्षों के दौरान 369 करोड़ रुपये की अनुदान राशि पंचायतीराज संस्थाओं को हस्तान्तरित की गई। राष्ट्रीय ग्राम स्वरोजगार योजना के तहत कुल उपलब्ध 400 लाख रुपये की राशि के विरूद्घ 16 जिलों में 75 नवीन ग्राम पंचायत भवनों के निर्माण एवं 182 ग्राम पंचायत भवनों के विस्तार/जीर्णोद्वार के स्वीकृत कार्यों में 215 कार्य पूर्ण करवायें जा चुके हैं तथा 38 कार्य प्रगति पर हैं। वर्ष 2012-13 में 115 भवन रहित ग्राम पंचायतों तथा 307 ग्राम पंचायत भवनों के विस्तार/जीर्णोद्घार के कार्यों हेतु भारत सरकार से प्राप्त राशि एवं राज्यांश की राशि पंचायतीराज संस्थानों को हस्तांतरित की जा चुकी है।
इसी प्रकार जिला परिषदों, पंचायत समितियों के भवनों के विस्तार एवं मरम्मत हेतु पचास प्रतिशत राशि निजी आय से उपलब्ध होने पर पचास प्रतिशत राशि राज्य सरकार द्वारा आयोजना मद से उपलब्ध करायी जाती है। वर्ष 2010-11 में नवगठित ग्यारह पंचायत समितियों में से दस पंचायत समितियों के भवन निर्माण हेतु 5.15 करोड़ रुपये की राशि आवंटित कर दी गई है तथा बारां एवं प्रतापगढ़ जिला परिषदों के कार्यालय भवनों के लिए 564.87 लाख रुपये के कार्य करवाये जाने हैं। राज्य के समस्त जिला मुख्यालयों, जिला परिषद परिसरों में विश्राम स्थल एवं सभा भवनों के निर्माण हेतु वर्ष 2012-13 में 1650 लाख रुपये का अतिरिक्त प्रावधान किया गया है।
पंचायतीराज संस्थाओं के लिए वित्तीय वर्ष 2011-12 से निर्बन्ध राशि योजना प्रारम्भ की गई है ताकि ये संस्थाएं अपनी स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकें। वित्तीय वर्ष 2011-12 में पंचायती राज संस्थाओं को निर्बन्ध राशि योजना में 777.54 करोड़ रुपये का वित्तीय प्रावधान किया गया है। उक्त प्रावधान के अलावा बी.पी.एल. आवास हेतु 33.99 करोड़ रुपये की राशि का अतिरिक्त प्रावधान कर सम्बन्धित जिलों को आवंटित कर दिया गया है। वित्तीय वर्ष 2012-13 में पंचायतीराज संस्थाओं को निर्बन्ध राशि योजना में 777.54 करोड़ रुपये का वित्तीय प्रावधान है तथा 5766.48 लाख रुपये का अतिरिक्त प्रावधान किया गया है। जिलों में उपलब्ध राशि में से सितम्बर 2012 तक 117.21 करोड़ रुपये की राशि खर्च कर 8532 कार्य पूर्ण करवाये जा चुके हंै।
जिलों में विभिन्न पूंजीगत परिसम्पतियां छोटे-छोटे मरम्मत कार्यों की आवश्यकता होने के फलस्वरूप अनुपयोगी रूप में पड़ी हुई हैं। इन सम्पत्तियों को अधिक उपयोगी अथवा कार्यशील बनाने के लिए आवश्यक लघु निवेशों को उपलब्ध करवाने को दृष्टिगत रखते हुए तेरहवें वित्त आयोग के तहत जिला नवाचार निधि का सृजन किया गया है। इसी प्रकार पंचायतीराज संस्थाओं को वित्तीय रूप से सुदृढ़ किये जाने के सम्बन्ध में सुझाव देने के लिए गठित समिति द्वारा करों में क्षतिपूर्ति एवं समानुदेशन के रूप में पंचायतीराज संस्थाओं को राशि जारी किये जाने की सिफारिश भी की गई है।
इसी प्रकार स्वर्ण जयन्ती ग्रामस्वरोजगार योजना के तहत 2 लाख 44 हजार 800 गरीब लोगों को लाभान्वित किया गया जिनमें एक लाख 72 हजार 271 महिलाएं हैं। इंदिरा आवास योजना में दिसम्बर,2008 से अक्टूबर,2012 तक कुल 1638.85 करोड़ रुपये व्यय किये गये तथा गरीब परिवारों के लिए 3 लाख 36 हजार 85 नये आवास बनाये गये हैं।
सम्पूर्ण स्वच्छता कार्यक्रम के तहत भारत सरकार द्वारा निर्मल ग्राम पुरस्कार प्रदान किये जाते हैं। ऐसी पुरस्कृत ग्राम पंचायतों को राज्य स्तर पर भी लाभान्वित करने के उद्देश्य से राज्य में निर्मल ग्राम पुरस्कृत पंचायत विकास योजना का क्रियान्वयन किया जा रहा है। वित्तीय वर्ष 2010-11 में पुरस्कृत 182 ग्राम पंचायतों के लिए 182 लाख तथा 102 ग्राम पंचायतों के लिए 102 लाख रुपये की राशि उपलब्ध कराई गई। राज्य में पंचायतीराज संस्थाओं द्वारा सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान भी चलाया जा रहा है। इस अभियान के तहत दिसम्बर, 2008 से सितम्बर 2012 तक राज्य में कुल 27 लाख 9 हजार 91 शौचालय बनाये गये हैं। जिसमें बी.पी.एल. परिवारों को 6 लाख 52 हजार 506 शौचालय बनाने हेतु प्रोत्साहन राशि प्रदान की गई जबकि 20 लाख 56 हजार 585 ए.पी.एल. परिवारों ने स्वच्छता अभियान से प्रेरित होकर अपने घरों में शौचालयों का निर्माण करवाया है। इसी प्रकार राज्य की पाठशालाओं में 26 हजार 305 शौचालय एवं आंगनबाड़ी केन्द्रों में 7 हजार 861 शौचालयों का निर्माण किया गया। इसके अलावा राज्य में ठोस एवं तरल कचरा प्रबंधन के भी 1122 कार्य सम्पादित किये गये। इस वर्ष राज्य में मुख्यमंत्री बी.पी.एल. आवास योजना एवं इंदिरा आवास योजना के अन्तर्गत 4 लाख 37 हजार घरों को स्वच्छ सुविधाओं से जोडऩे का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। पंचायतीराज संस्थाओं को सुदृढ़ बनाने तथा नेतृत्व क्षमता के विकास के लिए सभी निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को प्रशिक्षण भी दिया गया है।
पंचायतीराज संस्थाओं को मजबूत बनाने के लिए कुछ नवाचार भी अपनाये गये हैं। उदाहरण के लिए प्रत्येक गांव का एक मास्टर प्लान तैयार करवाया जा रहा है। इसके लिए प्रथम चरण में दस हजार एवं इससे अधिक जनसंख्या वाले 81 गांवों के विलेज प्लान तैयार किये जा रहे हैं। इनमें से 65 गांवों के मास्टर प्लानों के प्रारूप की प्रति राजस्थान के मुख्य नगर नियोजक द्वारा सम्बन्धित जिलों को आवश्यक कार्यवाही हेतु अग्रेषित कर दी गई है।
द्वितीय चरण में जिला परिषद/पंचायत समिति के माध्यम से राजस्व नक्शें के आधार पर विभागीय स्तर पर तैयार कराये गये मॉडल विलेज प्लान नगर नियोजन विभाग के तकनीकी मार्गदर्शन में गांवों के मास्टर प्लान तैयार करने के निर्देश दिये गये हैं। अब तक 1316 मास्टर प्लान तैयार हो चुके हंै तथा 1854 प्रक्रियाधीन हैं। मास्टर प्लान तैयार करने के लिए 13वें वित्त आयोग की सिफारिशों के अनुसार देय अनुदान से राशि खर्च करने के निर्देश भी जारी कर दिये गये हैं।
नवाचारों के अन्तर्गत अप्रेल, 2011 से ग्राम सचिवालय व्यवस्था भी लागू की गई है। इस व्यवस्था के अन्तर्गत प्रत्येक माह की 5, 12, 20 व 27 तारीख को ग्राम पंचायत पर ग्राम पंचायत स्तरीय सभी विभागों के कर्मचारी उपस्थित रहकर आमजन के कार्य निपटाते हैं। इस व्यवस्था के लागू होने से आमजन को अपने कार्यों के लिए विभिन्न कार्यालयों के चक्कर नहीं लगाने पड़ते। इस व्यवस्था के प्रभावी संचालन एवं मॉनिटरिंग की जिम्मेदारी जिला कलक्टर एवं जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी को सौंपी गई है। इस व्यवस्था से एक ओर जहां विभागीय योजनाओं के क्रियान्वयन को गति मिलेगी वहीं आपसी समन्वय से आम आदमी की समस्याओं का निराकरण भी हो सकेगा।
पंचायतीराज संस्थाओं को अधिक अधिकार सम्पन्न बनाकर राज्य सरकार ने न केवल बापू का सपना साकार किया है अपितु स्वशासन और सुशासन की परिकल्पना को भी साकार किया जा रहा है।

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