आचार्य श्री नानेश के शिष्य महास्थविर, श्रमण श्रेष्ठ, ध्यान योगी, पण्डित रत्न, गणाधिपति श्री शान्ति मुनिजी म.सा का जन्म राजस्थान के चित्तोड़ जिले के ग्राम भदेसर में 29 मई, 1945 तद्नुसार संवत् 2003 ज्येष्ठ कृष्णा 12 को हुआ। आपके पितात श्री डालचन्दजी और माता श्रीमती लहरी बाई का साया तीन वर्ष की अवस्था में ही उठ गया। तब आपका लालन-पालन आपके बड़े भाई ने किया।
आपश्री ने संवत् 2019 फाल्गुन शुक्ला 1 तदनुसार 24 फरवरी, 1963 को 16 वर्ष की आयु में आचार्य श्री 1008 श्री नानालाल जी म.सा. के सान्निध्य में भगवती दीक्षा अंगीकार की। आचार्य नानेश के मार्गदर्शन में अध्ययन करते हुए जैन सिद्धान्त अलंकार की परीक्षा सन् 1972 में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की।
आपने जैनागम, पिटकों, टीका, चूर्णि, भाष्य, न्याय दर्शन आदि ग्रन्थों का गहन अध्ययन, चिंतन, मनन एवं अनुशीलन द्वारा सुविज्ञता दक्षता प्रकट कर साहित्य के क्षेत्र में एक अनूठा कीर्तिमान स्थापित किया था।
शिखरचंद सिंगी ने बताया कि आप श्री सहृदयी, मृदुल व्यवहारी एवं स्पष्ट वक्ता थे। हमेशा शांत स्वभाव में रहते हुए प्रसन्न मुद्रा में दिखाई देते थे। आपश्री के प्रवचन सचोट, आत्मस्पर्शी होते थे। आप श्री बहुआयामी प्रतिभा के धनी थे। आप में कारयत्री एवं भावयत्री प्रतिभा का अनूठा संगम था। आप सहृदय संवेदशनशील कवि, मधुर गीतकार होने के साथ-साथ तत्त्वदर्शी, आगमवेत्ता, ओजस्वी वक्ता, अध्यात्मवादी, समीक्षक, आत्मानुलक्षी विवेचक एवं गहरे ध्यान साधक भी थे।
आपश्री की लेखनी ने चिंतन, कथा, काव्य, उपन्यास, जीवनी, प्रवचन, गीत, तत्त्व विवचेन आदि विभिन्न विषयों का स्पर्श करते हुए अपना स्वतंत्र एवं सशक्त चिन्तन प्रस्तुत किया। आपश्री द्वारा लिखित, संपादित शताधिक 128 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है एवं आपकी लेखनी अंत समय तक गतिमान रही।
ताराचंद करनावट ने बताया कि आपके प्रभावेात्मपादक उपदेशों का ही परिणाम है कि नानेश नगर, दांता राजस्थान में राष्ट्रीय चरित्र निर्माण के उद्देश्य पूर्वक आचार्य श्री नानेश समता विकास ट्रस्ट की स्थापना हुई।
संघ में व्याप्त असंवेदनशील परिस्थितियों के चलते आपश्री ने अपने साथी संतों सहित बीकानेर 6 मई 1996 को शांति-क्रांति का बिगुल बजाते हु संघ से संबंध विच्छेद कर लिया। 22 मई, 1997 को मंदसौर के हायर सैकण्डरी स्कूल में आयोजित दीक्षा समारो में आपश्री द्वारा चतुर्विध संघ की घोषणा की गई। साथ ही 15 मार्च, 1998 को होली चातुर्मास के अवसर पर चिकारड़ा में आपश्री ने विशाल चतुर्विध संघ के समक्ष नवगठित संघ श्री हुक्मगच्छीय साधुमार्गी शांत-क्रांति संघ के नायक के रूप में तरूणाचार्य पद पर संयति प्रवर श्री विजयराजजी म.सा. की घोषणा की। इस प्रकार मुनिश्री ने एक सशक्त नये संघ की विधिवत स्थापना कर जिनशासन की भव्य प्रभावना में एक नूतन कड़ी का संयोजन किया। अंत समय तक आप संस्कार क्रांति द्वारा जन चेतना एवं समीक्षण ध्यान द्वारा आत्म चेतना जागृत करते हुए अध्यात्म साधना के महान् पथ पर निरन्तर प्रगतिशील रहे।
सुरेश नाहर ने बताया कि राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीगढ़, उड़ीसा, महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, जम्मू कश्मीर आदि प्रदेशों में विचरण करते हुए अब तक आपके उत्कृष्ट संयमी जीवन के गौरवशाली 59 चातुर्मास 2021 तक हो चुके थे। आपका आगामी 2022 का चातुर्मास अजमेर में होना था। आपके पावन सान्निध्य में अजमेर में महावीर जयन्ती का कार्यक्रम आयोजित हुआ। तब से आपका अजमेर प्रवास चल रहा था। अजमेर में विभिन्न क्षेत्रों में आप धर्म जागृति की प्रेरणा कर रहे थे।
अनिल कोठारी ने बताया कि शुक्रवार संध्याकालीन प्रतिक्रमण पच्चखाण के पश्चात एकाएक शांतिमुनिजी म.सा.. की तबीयत बिगड़ गई और रात्रि 10.00 बजे आप महाप्रयाण की यात्रा पर निकल गये। आपके देवलोकगमन के समाचार कुछ ही क्षण में पूरे हिन्दुस्तान में फैल गये और शनिवार को भक्तगणों का तांता लग गया। दोपहर 4 बजे तेरापंथ भवन, सुन्दर विलास से महाप्रयाण यात्रा प्रारम्भ हुई जिसमें श्री हुकमगच्छीय साधुमार्गी शांत क्रांति जैन श्रावक संघ के राष्ट्रीय पदाधिकारी रिद्धकरण सेठिया, ताराचंद बोहरा, लालसिंह, सुभाष लोढ़ा, विरेन्द्र जैन, पुष्पेन्द्र भडाणा, गजराज जैन, अजय जैन, सुरेश नाहर, ताराचंद करनावट, भीकमचंद पीपाड़ा, अनिल कोठारी, रिखब सुराणा, शिखरचंद सिंगी, रिखब मांडोत, सी.पी.कोठारी, सूर्यप्रकाश गांधी, सुनील कोठारी, नरेश नाहर ने सम्पूर्ण व्यवस्था संभाली हुई थी।
महाप्रयाण यात्रा में शांतिमुनिजी म.सा. के सांसारिक भतिजे पुखराज स्वरूपरिया, मुकेश, राकेश, संजय, प्रदीप आदि परिजनों सहित शामिल हुए।
महाप्रयाण यात्रा में एक हजार से ज्यादा भक्तगण नवकार मंत्र का जाप करते गाजे-बाजे के साथ उछाल करते चल रहे थे। सम्पूर्ण रास्ते में जैन सोशल ग्रुप क्लासिक द्वारा ठण्डे पानी की व्यवस्था की गई।
अनिल कोठारी
मो. : 9829071614