देने को अब कुछ भी नही, देता हू ये श्रदांजली

फूल बहुत मुरझाये यहा मुरझा गई एक कली ।
देने को अब कुछ भी नही, देता हू ये श्रदांजली ।

खुद मरके तुम जिन्दो को मुर्दा साबित कर गई ।
इण्डियागेट पे कितने अनसुलझे प्रशन धर गई ।
एक लाडली बेटी देश की आँखों में आंसू भर गई ।
एक तेरी चित्कार से संसद की रूह भी डर गई।
मरा पड़ा लोहू उबला ये उबल केसे तू  कर गई ।
तू नही मरी बेटी मेरे यहा इन्सानयत मर गई ।
आयना दिखा दिया तूने देख के दुनया डर गई ।
रोना इस बात का तुम अलविदा क्यों कर गई ।
खुद मरके तुम जिन्दो को मुर्दा साबित कर गई ।
इण्डियागेट पे कितने अनसुलझे प्रशन धर गई ।

महेन्द्र सिंह

 

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