मृत्यु के कितने प्रकार होते हैं, मृत्यु से पहले दिखते हैं कौन-कौन से लक्षण

जानिए परलोक और पुनर्जन्म के बारे में
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राजेन्द्र गुप्ता
मृत्यु इस संसार का सबसे अटल सत्य है। इस सत्य से कोई भी इंकार नहीं कर सकता और ना ही कोई इसे टाल सकता है। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है, जीवन के समान मृत्यु भी अटल सत्य है और मृत्यु के बाद फिर नया शरीर मिलेगा इस सत्य से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। यह जीवन और मृत्यु एक चक्र है जिसमें सभी जीवधारियों की आत्मा भटकती रहती है। जैसे जीवन में हर कोई अमीर और हर कोई गरीब नही होता है उसी तरह मृत्यु भी सभी सबकी अलग होती है और यह अपने कर्मों पर निर्भर करती है।

इनकी आत्मा रहती है अशांत
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धर्मग्रंथों में मुख्य रूप से दो प्रकार की मृत्यु बताई गई है प्राकृतिक और अप्राकृतिक। किसी रोग के होने, वृद्धावस्था को प्राप्त होने शरीर को आत्मा द्वार त्याग दिया जाना प्राकृतिक मृत्यु है। दुर्घटना में, सर्पदंश से, हथियार से, आत्मघात से मृत्यु को प्राप्त हो जाना अप्राकृतिक मृत्यु की श्रेणी है इसे अकाल मृत्यु भी कहा गया है। कहते हैं अकाल मृत्यु को प्राप्त मनुष्य की आत्मा अशांत रहती है क्योंकि उनकी भौतिक इच्छाएं पूरी तरह नष्ट नहीं हो पाती हैं। ऐसे में वह पृथ्वी लोक और परलोक के बीच में भटकती रहती है। पितृपक्ष में शरीर त्याग कर चुके लोगों के नाम से तर्पण करने से आत्मा को तृप्ति और शंति मिलती। शिव पुराण, गरुड़ पुराण, कठोपनिषद् सहित कई ग्रंथों में मृत्यु और उसके बाद की होने वाली घटनाओं के बारे में बताया गया है।

मृत्यु से पहले बदल जाता है शरीर का रंग
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शिव पुराण के अनुसार प्राकृतिक मृत्यु की अवस्था में मृत्यु के कुछ समय पहले से ही शरीर में कई लक्षण प्रकट होने लगते हैं। शरीर का सफेद या पीला पड़ जाना साथ ही आंखों में लाली नजर आना इस बात का संकेत होता है कि व्यक्ति की वर्तमान जीवन लीला अब अधिक दिनों तक नहीं बची है।

सूर्य चांद दिखने लगते हैं ऐसे
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सूर्य और चंद्रमा के चारों तरफ काली रेखाएं दिखने लगे, आग को देखने पर भी उसके चारों तरफ काली लपटें नजर आए तो यह भी मृत्यु के बेहद करीब होने का संकेत होता है। इन स्थितियों में मनुष्य को सांसारिक माया मोह का त्याग कर अपनी संतान को सभी जिम्मेदारियों को सौंपकर खुद को ईश्वर में लीन हो जाना चाहिए। इससे मुक्ति की राह आसान हो जाती है।

तो फड़कने लगता है बायां अंग
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मृत्यु बेहद करीब होने पर पूरे शरीर में दर्द और अंगराई आने लगती है। तालु सूखने लगते हैं। शरीर का बायां हिस्सा लगातार ही फड़कने लगता है। आत्मा नाभि चक्र को तोड़कर शरीर को त्यागने लगता है। इससे आंख, नाक और कान की शक्तियां क्षीण हो जाती हैं।

तो छोड़ देता है साया भी साथ
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नाक की टिप पर देखने पर नाक ना दिखना भी मृत्यु करीब होने का संकेत कहा गया है। मनुष्य के साथ जन्म से ही उसकी साया चलती है। लेकिन मृत्यु के करीब आ जाने पर साया भी साथ छोड़ देती है। जब मनुष्य को जल में, घी में, दर्पण में, तेल में अपनी साया ना दिखे तो यह मृत्यु सम्मुख होने का संकेत कहा गया है।

राजेन्द्र गुप्ता,
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
मो. 9611312076
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