लगभग यही बात तमिलनाडू में AIDMK पार्टी में होरही हैं. वहां ओं.पनीरसेल्वम और इडापल्ली पलानीस्वामी दोनों ही गुट अपने आपको असली बताने में लगे हुए है. जब तक जयललिता थी दोनों ही उनको साष्टांग प्रणाम करने में समान थे. अब उनके जाने के बाद असली-नकली का घमासान चल रहा हैं. नीति की बजाय व्यक्ति आधारित दलों का यही हश्र होता है.
असली-नकली की लडाई देश के दोनों प्रमुख दलों में भी होती रही है वरना किसी को निर्देशक मंडल में Ornament के रूप में बैठाने का क्या मकसद हो सकता हैं ?
वैसे असली-नकली की पहचान आसान नही हैं सिर्फ गुणी लोग ही कर सकते हैं. मसलन एक सेठ साहब थे. बहुत पैसेवाले थे और अपनी बडाई करते रहते थे. यही गुण उन्होंने अपने लडके को भी सिखाया कि कोई पूछे तो कहना जानते नही, सेठ भागचंद का लडका हूं. एक रोज सेठानी ने सुन लिया. वह सौम्य स्वभाव की थी. उसने लडके को समझाया कि बेटा ऐसे नही कहते. एक रोज समाज की कोई मीटिंग में किसी ने उस लडके को पूछा किसके बेटे हो ? तो वह बोला कि पिताजी तो कहते है कि मैं सेठ भागचंद का लडका हूं परन्तु माताजी मना करती हैं.
असली-नकली की भूल-भुलैया ऋषीकेश में “चोटीवाला रेस्टोरेंट” हो या हर की पौडी पर “गंगा-माता का मंदिर” हो सब जगह हैं. यहां तक कि दिल्ली से मथुरा के रास्तें में एक स्थान पर एक शिव-मंदिर का निर्माण हो रहा है वहां बोर्ड लगा हुआ है विश्व का सबसे प्राचीन मंदिर. अब आप ही बतायें कि असली-नकली में क्या अंतर रह गया है ?
घी को लेकर तो यह गलतफहमी बहुत होती है. इसी झमेलें से बचने के लिए एक बार मैंने एक विद्वान से पूछा कि असली एवं नकली घी में क्या अंतर है ? तो उसने कहा लो ! इतना भी नही जानते ? जो घी सर्वत्र मिलता है वह नकली और जो कही नही मिलता वह असली घी होता है. तब कही जाकर बात मेरे समझ में आई.