परिवर्तन का सिद्धांत स्वीकारना ही पड़ेगा

–अमित टंडन

ब्रह्मास्त्र के भरे हश्र के बाद भी करण जौहर का यह कहना कि वह इसके दो पार्ट और बनाएंगे। दिग्गजों के पार्टी से किनारा करना शुरू कर देने के बाद भी कांग्रेस का इस जिद पर रहना कि नेतृत्व नहीं बदलेंगे। इन दो उदाहरणों को लेकर चल रहे हैं मगर लेख इन जैसे हज़ारों उदाहरणों के मद्देनज़र पढ़ा जाए। और इन दो उदाहरणों से किसी की भावनाएं जुड़ी हों तो क्षमा चाहता हूं।

अमित टंडन
मेरे एक मित्र पत्रकार तीर्थदास गौरानी ने इन दो उदाहरणों में जो उक्ति इस्तेमाल की वो है- ‘कॉन्फिडेंस के नमूने”।
मुझे लगा के इस विचार को आगे बढ़ाया जाए, इसलिए मैंने कहा कि कॉन्फिडेंस के नमूने नही, “ओवर कॉन्फिडेंस के झमूरे”।
इन दो उदाहरण सहित ऐसे अनेक मसलों से जुड़े लोगों के समझ नहीं आता कि परिवर्तन प्रकृति का नियम है और ये प्रकृति से अलग नहीं हैं। इंसान भी एक नेचुरल प्रोडक्ट है प्रोसेस की दृष्टि से देखें तो। बहरहाल, जब प्रकृति परिवर्तन करती है तो इस प्रकृति की कृति परिवर्तन बिना कब तक सरवाइव करेगी। राज कपूर की शोमैनशिप का भी अंत हुआ, जूनियर शोमैन के रूप में सुभाष घई आये और जल्दी फीके पड़ गए। शत्रुघ्न, धर्मेंद्र, जीतेन्द्र के दिन लदे अरसा हो गया। उससे पहले देव आनंद अपने कैरियर के अंतिम पड़ाव में अनेक बचकानी फिल्में बना कर फ्लॉप हुए। भारत कुमार मनोज कुमार की एन्ड की “क्लर्क” जैसी कुछ फिल्में पिट गईं और घर बैठ गए। सैकड़ों उदाहरण हैं ऐसे। सन्नी देओल, गोविंदा आदि। ऐसे में करण जौहर अपने निर्माण निर्देशन के अमरत्व की गलतफहमी में जी कर खुद का नुकसान कर रहे हैं।
यही हाल राजनीति में कांग्रेस का है। कोई संस्था संगठन भले सौ – दो सौ साल चल जाये मगर उसे चलाने वाले इंसान /संचालक भी चल जाएंगे यह ओवर कॉन्फिडेंस भी है और गलतफहमी भी।
मिलेनियम स्टार अमिताभ का बेटा नहीं चला, पहले सुपर स्टार देव आनंद का बेटा बिल्कुल नहीं चला, जुबली कुमार राजेन्द्र कुमार का बेटा फ्लॉप हो गया। राजनीति के दिग्गज प्रमोद महाजन का बेटा मसखरा निकल गया और राजनीति तो क्या किसी भी क्षेत्र की लाइम लाइट से आउट पड़ा है। ऐसे में यह गलतफहमी कि सफल प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का पोता और राजीव गांधी का बेटा भी उनकी जितनी काबिलियत रखता है और चल ही जायेगा, यही कांग्रेस के हर छोटे बड़े नेता कार्यकर्ता की गलतफहमी कहो, या जो कुछ कहना चाहो कहो, बस वही है। आखिर कपिल सिब्बल और गुलामनवी आज़ाद जैसे दिग्गज आजिज़ आ ही गए न। ऐसा अन्य दूसरी पार्टी में भी हुआ है।
इन्हें प्रकृति के परिवर्तन के सिद्धान्त को स्वीकार करना चाहिए, वरना पतन शुरू हो गया है और गर्त दूर नहीं।

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