देश में फिर कोरोना का डर

स्कूल में था पढ़ाई का ही डर,
युद्ध में मुझ को मरने का डर।
खेल में हमारी हार का ही डर,
पडौसी में मुझे झगड़े का डर।।

दोस्तों के साथ खर्चे का डर,
परीक्षा में मुझे पर्चे का डर।
खाने में मुझको जर्दे का डर,
प्रेम में रहा मुझे चर्चे का डर।।

क्रिकेट में मुझे हारने का डर,
भाइयों में मेरे बैर का ही डर।
दूध में मुझ को ज़हर का डर,
जंगल मे लगता शेर का डर।।

फ़ोन हमारा गुम होने का डर,
ढोल के रहता फटने का डर।
बोट मे देखा डूबने का यें डर,
हाथ मे आज मिलाने का डर।।

चोरी में लगता ये जेल का डर,
रिजल्ट में रहता फैल का डर।
प्यार में रहता फूट का ही डर,
बारिश मे रहता सूट का डर।।

नौकरी में रहता साहब का डर,
घर में स्वयं मैमसाहब का डर।
फ़ौज में रहता है सजा का डर,
देश में फिर से करोना का डर।।

रचनाकार ✍️
गणपत लाल उदय, अजमेर राजस्थान
ganapatlaludai77@gmail.com

error: Content is protected !!