जाति है कि जाती ही नही

कई सारी ऐसी जातिया है जो यह जाती ही नही,
खुशियों के पलों को ये कभी आनें देती ही नही।
काश्मीर से लेकर घूम लो चाहें तुम कन्याकुमारी,
मंज़िल पर हमको अपनी पहुंचने देती ही नही।।

सबसे पहले पूछते है कौन जाती के हो मेरे भाई,
चाहें ले विद्यालय में प्रवेश चाहें शादी या सगाई।
मन्दिर मस्जिद जाएं चाहें कोई चर्च या गुरूद्वारा,
ना जाने यह ऐसी रीत कब-किसने क्यों बनाई।।

एक सूरज एक चंद्रमा और एक धरातल है भाई,
काम किसी का छोटा ना होता चाहें करें सफाई।
दुनिया के सारे लोग है अच्छे न करें कोई लड़ाई,
एक दूजे को नीचा न समझो चाहें लोग-लुगाई।।

क्या छोटी जाति में जन्म-लेना है यह अभिशाप,
75 साल आज़ादी को हुआ‌ कब समझेंगे आप।
एक तरह से आना सबका व एक तरह से जाना,
जैसे तन को साफ़ रखते हो मन भी करें साफ़।।

एक है ख़ून सबका जिसका होता है ये रंग लाल,
धर्म-जाति को लेकर मानव नज़रिया ये संभाल।
जातिवाद के नाम पर कोई मत करो ये भेदभाव,
पड़ता है इससे बुरा असर समाज के हर लाल।।

सैनिक की कलम
गणपत लाल उदय, अजमेर राजस्थान
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