सर्वधर्मसुखाय के प्रणेता महान दार्शनिक विचारक समाज सुधारक रामकृष्ण परमहंस

dr. j k garg
रामकृष्ण परमहंस ने अपने जीवन काल में सभीधर्मों की एकता का संदेश दिया। वे मानवता केपुजारी थे। हिन्दू, इस्लामऔर ईसाई आदि सभी धर्मों पर उसकी श्रद्धा एक समान थी, ऐसाइसलिए क्योंकि उन्होंने बारी-बारी सबकी साधना करके एक ही परम-सत्य का साक्षात्कारकिया था। रामकृष्णपरमहंस सिर से पांव तक आत्मा की ज्योति से परिपूर्ण थे। उन्हें आनंद,पवित्रता तथा पुण्य की प्रभा घेरे रहतीथीं। वे दिन-रात चिंतन में लगे रहते थे। सांसारिक सुख,धन-समृद्धि का भी उनके सामने कोई मूल्यनहीं था। जब उनके वचनामृत की धारा फूट पड़ती थी,तब बड़े-बड़े तार्किक भी अपने आप में खोकरमूक हो जाते थे। निसंदेह परमहंसभारत के एक महान संत दार्शनिक और विचारक थे।रामकृष्ण परमहंस की वचनामृत की शैली वैसी ही थी जैसी कि भारत के प्राचीन ऋषि-मुनि,महावीर और बुद्ध की थी और जो परंपरा सेभारतीय संतों के उपदेश की पद्धति रही है। रामकृष्ण परमहंस अपने उपदेशों में तर्कोंका सहारा कम लेते थे, जोकुछ समझाना होता वे उसे उपमा और दृष्टांतों से समझाते थे।रामकृष्णपरमहंस सनातन परंपरा की साक्षातप्रतिमूर्ति कहे जाने वाले महात्मा थे । सन् 1885के मध्य में उन्हें गले की बीमारी केचिह्न नजर आए और शीघ्र ही बीमारी ने गंभीर रूप धारण किया जिससे वे मुक्त न हो सके |50 वर्ष तक सर्वधर्मो के संत परमहंस रामकृष्ण ने 16अगस्त 1886को उन्होंने महाप्रस्थान किया। विवेकानंदने स्वामी रामकृष्णपरमहंस द्वारा दी गई शिक्षा से पूरे विश्व में भारत के विश्व गुरु होने का प्रमाणदिया। रामकृष्ण परमहंस जीएक महान विचारक थे, जिनके विचारों को स्वयंविवेकानंद जी ने पूरी दुनिया में फैलाया |. राम कृष्ण परमहंस जी नेसभी धर्मों को एक बताया. उनका मानना था सभी धर्मो का आधार प्रेम. न्याय और परहितही हैं. उन्होंने एकता का प्रचार किया |राम कृष्ण परमहंस जी का जन्म 18 फरवरीसन 1836मेंहुआ था. बाल्यकाल में इन्हें लोग गदाधर के नाम से जानते थे. यह एक ब्राह्मण परिवारसे थे. इनका परिवार बहुत गरीब था लेकिन इनमे आस्था. सद्भावना. एवं धर्म के प्रतिअपार श्रद्धा एवम प्रेम था.राम कृष्ण परमहंस जी के विचारों पर उनके पिता की छायाथी. उनके पिता धर्मपरायण सरल स्वभाव के व्यक्ति थे. यही सारे गुण रामकृष्ण परमहंसजी में भी मोजुद थे | फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भारत केमहान संत एवं विचारक रामकृष्ण परमहंस का जन्म हुआ था । उनका बचपन का नाम गदाधर चट्टोपाध्याय था। तारीख के अनुसार उनका जन्म 18 फरवरी 1836 को बंगाल केएक प्रांत कामारपुकुर गांव में हुआ था। पिता का नाम खुदीराम तथा माता का नाम चंद्रमणिदेवी था। रामकृष्ण अपने बाल्यकाल से मानते थे कि भगवान के दर्शनहो सकते हैं, अतःभगवान प्राप्ति के लिए उन्होंने कठोर साधना और भक्ति की तथा सादगीपूर्ण जीवनबिताया। संत रामकृष्ण कभी भी किसी स्कुल नहीं गये और ना ही उनको अंग्रेजी आती थी और ना ही वो संस्कृतके जानकार थे। वे तो सिर्फ मां काली के भक्त थे। उनकी सारी पूंजी महाकाली कानाम-स्मरण मात्र था।माना जाता है कि उनके माता-पिता को उनके जन्म से पहले हीअलौकिक घटनाओं का अनुभव हुआ था। उनके पिता को एक रात दृष्टांत हुआ, जिसमेंउन्होंने देखा कि भगवान गदाधर ने स्वप्न में उनसे कहा था कि वे विष्णु अवतार केरूप में उनके पुत्र के रूप में जन्म लेंगे तथा माता चंद्रमणि को भी ऐसे ही एकदृष्टांत का अनुभव हुआ था, जिसमेंउन्होंने शिव मंदिर में अपने गर्भ में एक रोशनी को प्रवेश करते हुए देखा था। राम कृष्ण परमहंस जी देवी काली केप्रचंड भक्त थे. | उन्होंने अपने आपको देवी काली को समर्पित कर दिया था. रामकृष्ण परमहंस जी का भले ही बालविवाह शारदामणि से हुआ था, लेकिन इनके मन में स्त्री को लेकरकेवल एक माता भक्ति का ही भाव था इनके मन में सांसारिक जीवन के प्रति कोई उत्साह नहीं था, इसलिए ही सत्रह वर्ष की उम्र मेंइन्होने घर छोड़कर स्वयं को माँ काली के चरणों में सौंप दिया. यह दिन रात साधना मेंलीन रहते थे | इनकी भक्ति को देख सभी अचरज में रहते थे. इनका कहना था कि माँ काली इनसेमिलने आती हैं | वे उन्हें अपने हाथों से भोजन करातेहैं. जब भी माँ काली उनके पास से जाती वे तड़पने लगते और एक बच्चे की भांति अपनीमाँ की याद में रुदन करते. उनकी इसी भक्ति के कारण वे पूरी गाँव में प्रसिद्द थे.लोग दूर- दुर से उनके दर्शन को आते थे और वे स्वयं दिन रात माँ काली की भक्ति मेंरहते थे |रामकृष्ण जी एक संत थे और उन्हें परमहंस की उपाधिमिली थी. दरअसल परमहंस एक उपाधि हैं यह उन्ही को मिलती हैं, जिनमे अपनी इन्द्रियों को वश में करनेकी शक्ति हो. जिनमे असीम ज्ञान हो, यही उपाधि रामकृष्ण जी को प्राप्त हुई और वे रामकृष्णपरमहंस कहलाये, हालांकि रामकृष्ण जी के परमहंस उपाधिप्राप्त करने के पीछे कई कहानियां हैं |. रामकृष्ण कीमाता काली भक्ति के चर्चेसभी जगह होने लगे उनके बारे में सुनकर संत तोताराम जो, कि एक महान संत थे, वो रामकृष्ण जी से मिलने आये औरउन्होंने स्वयं रामकृष्ण जी को काली भक्ति में लीन देखा | तोताराम जी नेरामकृष्ण जी को बहुत समझाया, कि उनमे असीम शक्तियाँ हैं, जो तब ही जागृत हो सकती हैं, जब वे अपने आप पर नियंत्रण रखे. अपनीइन्द्रियों पर अपना नियंत्रण रखे, लेकिनरामकृष्ण जी अपनी काली माँ के प्रति अपने प्रेम को नियंत्रित करने में असमर्थ थे |तोताराम जी उन्हें कईतरह से मनाते, लेकिन वे एक ना सुनते. तब तोताराम जीने रामकृष्ण जी से कहा, कि अब जब भी तुम माँ काली के संपर्कमें आओ, तुम एक तलवार से उनके तुकडे कर देना.तब रामकृष्ण ने पूछा मुझे तलवार कैसे मिलेगी ? तब तोताराम जी ने कहा – अगर तुम अपनी साधना से माँ काली को बना सकते हो. उनसेबाते कर सकते हो. उन्हें भोजन खिला सकते हो. तब तुम तलवार भी बना सकते हो. अगलीबार तुम्हे यही करना होगा } अगली बार जब रामकृष्ण जी ने माँ काली से संपर्क किया तब वे यह नहीं कर पाएऔर वे पुनः अपने प्रेम में लीन हो गए. जब वे साधना से बाहर आये, तब तोताराम जी ने उनसे कहा कि तुमनेक्यों नहीं किया. तब फिर से उन्होंने कहा कि अगली बार जब तुम साधना में जाओगे, तब मैं तुम्हारे शरीर पर गहरा आघातकरूँगा और उस रक्त से तुम तलवार बनाकर माँ काली पर वार करना. अगली बार जब रामकृष्णजी साधना में लीन हुए. तब तोताराम जी ने रामकृष्ण जी के मस्तक पर गहरा आघात किया, जिससे उन्होंने तलवार बनाई और माँकाली पर वार किया | इस तरह संत तोताराम जी ने रामकृष्ण जी को अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रणकरना सिखाया. और तब से संत सीताराम जी रामकृष्ण जीके गुरु बन गये |रामकृष्ण जी ने कई सिद्धियों को प्राप्त किया. अपनी इन्द्रियों को अपने वशमें किया और एक महान विचारक एवं उपदेशक के रूप में कई लोगो को प्रेरित किया.उन्होंने निराकार ईश्वर की उपासना पर जोर दिया. मूर्ति पूजा को व्यर्थ बताया. उनकेज्ञान के प्रकाश के कारण ही इन्होने नरेंद्र नाम के साधारण बालक जो कि अध्यात्म सेबहुत दूर तर्क में विश्वास रखने वाला था, को अध्यात्म का ज्ञान कराया. ईश्वर की शक्ति से मिलानकरवाया और उसे नरेंद्र से स्वामी विवेकानंद बनाया. राष्ट्र को एक ऐसा पुत्र दिया, जिसने राष्ट्र को सीमा के परे सम्मानदिलाया. जिसने युवा वर्ग को जगाया और रामकृष्ण मिशन की स्थापना कर देश जागरूकता काअभियान चलाया और अपने गुरु को गुरुभक्ति दी.रामकृष्ण परमहंस जी को गले का रोग होजाने के कारण उन्होंने 15 अगस्त 1886 को अपने शरीर को छोड़ दिया | राम कृष्ण जी ने बतलाया की वही इन्सान सार्थक जीवन जीते हैं,जो दूसरों के लिए जीते हैं। अगर धनसम्पत्ती दूसरों की भलाई करने में मदद करे या उनके काम आए तो इसका कुछमूल्य है, अन्यथा यह धन सिर्फ बुराई का एक ढेरऔर कूड़ा ही है और इससे जितना जल्दी छुटकारा मिल जायेउतना बेहतर है |एक समय में एक काम करो, और ऐसा करतेसमय अपनी पूरी आत्मा उसमे डाल दो और बाकी सब कुछ भूल जाओ। यदि तुम ईश्वर की दी हुई शक्तियों का सदुपयोग नहींकरोगी तो वह अधिक नहीं देगा इसलिए प्रयत्न आवश्यक है ईश-कृपा के योग्य बनाने केलिए भी पुरुषार्थ चाहिए. कर्म के लिए भक्ति का आधार होना आवश्यक है. एकमात्र ईश्वरही विश्व का पथ प्रदर्शक और गुरु है. पानी और उसका बुलबुला एक ही चीज है उसीप्रकार जीवात्मा और परमात्मा एक ही चीज है अंतर केवल यह है कि एक परीमीत है दूसराअनंत है एक परतंत्र है दूसरा स्वतंत्र है. जब हवा चलने लगी तो पंखा छोड़ देनाचाहिए पर जब ईश्वर की कृपा दृष्टि होने लगे तो प्रार्थना तपस्या नहीं छोड़नीचाहिए.| रामकृष्णपरमहंस सिर से पांव तक आत्मा की ज्योति से परिपूर्ण थे। उन्हें आनंद, पवित्रता तथापुण्य की प्रभा घेरे रहती थीं। वे दिन-रात चिंतन में लगे रहते थे। सांसारिक सुख, धन-समृद्धिका भी उनके सामने कोई मूल्य नहीं था। जब उनके वचनामृत की धारा फूट पड़ती थी, तब बड़े-बड़ेतार्किक भी अपने आप में खोकर मूक हो जाते थे। रामकृष्ण जीकहते थे सुखी और सफल जीवन के लिए सबसे अच्छा उपायहै कि उसे याद करो जो तुमने पाया है,जो हासिल नहीं हो सका उसेनहीं | तुम्हें कहाँ पहुचना किबजाय की तुम कहाँ पहुँच गये हो | जीवन कोईसमस्या नहीं है, जिसे तुम्हें सुलझाना है | मुझे लगता है कि तुम यहजान जाओ कि जीना कैसे है, तो जीवन रामक्रष्ण बोले जीवन की जटिलता से परेशान होना लोगों की आदत बन गई है,यही प्रमुख वजह है लोगखुश नहीं रह पाते हैं | हैंपरमहंस बोले -जिसे तुम दुःख कह रहे होदरअसल वह एक परीक्षा है,परीक्षासे प्राप्त अनुभव से उनका जीवन बेहतर होता है, बेकार नहीं | रगड़े जाने पर ही हीरे मेंचमक आती है | आग में तपने के बाद हीसोना शुद्ध होता है |विवेकानन्द नेवापस सवाल किया क्या इसका मतलब है हो, अनुभव एक कठोर शिक्षक की तरह है | पहले वह परीक्षा लेता हैऔर फिर सीख देता है |सबसेअच्छा उपाय है कि उसे याद करो जो तुमने पाया है,जो हासिल नहीं हो सका उसेनहीं | तुम्हें कहाँ पहुचना किबजाय की तुम कहाँ पहुँच गये हो परमहंसने उत्तर दिया शायद तुम डर गयेहो, इससेबचो | जीवन कोई समस्या नहीं है, जिसेतुम्हें सुलझाना है | मुझेलगता है कि तुम यह जान जाओ कि जीना कैसे है, तोजीवन रामक्रष्ण बोले जीवन की जटिलता सेपरेशान होना लोगों की आदत बन गई है,यहीप्रमुख वजह है लोग खुश नहीं रह पाते हैं | हैंपरमहंस बोले -जिसे तुम दुःख कह रहे हो दरअसल वह एकपरीक्षा है,परीक्षासे प्राप्त अनुभव से उनका जीवन बेहतर होता है, बेकारनहीं | रगड़ेजाने पर ही हीरे में चमक आती है | आगमें तपने के बाद ही सोना शुद्ध होता है |विवेकानन्द ने वापस सवाल किया क्या इसका मतलब है हो, अनुभवएक कठोर शिक्षक की तरह है | पहलेवह परीक्षा लेता है और फिर सीख देता है |जैसे सूर्य की छवि दिखाई नहीं पड़ती, वैस ही ख़राब मन में भगवान की मूरत नहीं बनती. धर्म सभी समान हैं. वे सभी ईश्वर प्राप्ति का रास्तादिखाते हैं.अगर मार्ग में कोई दुविधा ना आये तब समझना की राह गलत हैं.जब तक देशमें व्यक्ति भूखा और निसहाय हैं. तब तक देश का हर एक व्यक्ति गद्दार हैं.विषयकज्ञान मनुष्य की बुद्धि को सीमा में बांध देता हैं और उन्हें अभिमानी भी बनाता हैं|रामकृष्ण जी कहते थे कि तुम रात को आसमान में बहुत सारे तारों को देखते हो लेकिन सूर्यनिकलने के बाद तारे नहीं दिखते। क्या तुम कहोगे कि दिन में आसमान में तारे होते हीनहीं ? सिर्फ इसलिए क्योंकि तुम अपने अज्ञानकी वजह से भगवान को देख नहीं पाते, ये मत कहो कि भगवान जैसी कोई चीज नहीं होती। रामकृष्ण ने हमें उपदेश दिया ” जिस प्रकार मिट्टी के खिलौने का हाथी या फल देखना असलीहाथी या फल की याद दिलाते हैं, उसी प्रकार ईश्वर के चित्र औरमूर्तियां भी उस परमात्मा की याद दिलाते हैं | मनुष्य तकिये के कवर जैसा है। एककवर का रंग लाल है, दूसरे का नीला और तीसरे का रंग काला है ; लेकिन सबके अंदर वही रुई भरी हुई है। यही मनुष्यों मेंभी है, एक सुंदर है, दूसरा बदसूरत है, तीसरा साधु है और चौथा दुष्ट है लेकिन ईश्वरीय तत्व सबकेअंदर उपस्थित है “।तुम ईश्वर की चाहे जैसे प्रार्थना करो, वो उन तक पहुँचती है। ध्यान रखो वो चींटी के कदमों कीआहट भी सुन सकते हैं।ईश्वर के अनंत नाम हैं और असंख्य रास्ते हैं जिससे उनसेसंपर्क किया जा सकता है। तुम जिस भी नाम और रूप से उनकी वंदना करोगे, उसी से वोतुमको प्राप्त हो जायेंगे। शिव राम कृष्ण हनुमान अल्लाह ईशु आदि एक ही | अलग-अलग व्यक्ति विभिन्न नामोंसे ईश्वर का नाम लेते हैं। कोई अल्लाह कहता है, कुछ लोग गॉडकहते हैं और कुछ कृष्ण, शिव और ब्रह्म कहते हैं। ये झील में भरे हुए पानी केसमान है। झील के एक किनारे से कोई पानी पीता है और उसे ‘जल’ कहता है।दूसरा अलग किनारे से पीकर उसे ‘पानी’ बोलता है औरकुछ लोग अलग जगह से उसी को पीकर ‘वॉटर’ कहता है।हिन्दू ने उसे ‘जल’ कहा औरमुस्लिम ने ‘पानी’। किन्तु वह तो एक और एकमात्र हीवस्तु है। सबको प्रेम करो, कोई भी तुमसेअलग नहीं है। सच्चाई तो यही है कि सूर्य काप्रकाश हर जगह एकसमान ही पड़ता है लेकिन सिर्फ चमकदार सतह जैसे पानी की सतह या दर्पण ही उसेपरावर्तित करता है। ईश्वर का दिव्य प्रकाश भी ऐसा ही है। ये सबके हृदय पर बिना पक्षपातके पड़ता है परंतु केवल पवित्र और सच्चे हृदय वाले लोग ही उस दिव्य प्रकाश को सहीसे ग्रहण और परावर्तित कर पाते हैं। भगवान तोसबके मन में हैं लेकिन सबका मन भगवान में नहीं लगा है, इसलिए हमकष्ट और दुर्गति भोगते हैं।बरसात का पानी ऊंची जमीन पर नहीं टिकता, वो बहकर नीचेही आता है। जो विनम्र और सच्चे हैं उनपर ईश्वर की दया बनी रहती है परंतु अधिकारीऔर घमंडी पर अधिक देर तक टिक नहीं पाती। जैसे तुमईश्वर से भक्ति के लिए प्रार्थना करते हो, वैसे ही उनसे प्रार्थना करो कि तुम्हारे अंदर से दूसरोंका दोष देखना बंद हो जाए। यदि कोई व्यक्ति अज्ञान लोभी की अवस्था में मृत्यु को प्राप्त होता है, वो दोबारापैदा होता है ; परंतु जब वो सच्चे ज्ञान की आग में पक जाता है और एकआदर्श व्यक्ति के रूप में मरता है, तो उसको मुक्ति मिल जाती और वो जन्म मरण से मुक्त हो जाता है | मन हीव्यक्ति को बांधता है, मन ही व्यक्ति को मुक्त करता है। जो भी पक्के दृढ़विश्वास से कहता है ‘मैं बंधा हुआ नहीं हूँ, मैं मुक्तहूँ’ वो मुक्त होजाता है। वो मूर्ख है जो हमेशा रटता रहता है : ‘मैं बंधन मेंहूँ, मैं बंधा हुआहूँ’, वो हमेशावैसा ही रह जाता है। जो बार-बार दिन और रात ये रटता रहता है : ‘मैं पापी हूँ, मैं पापी हूँ’, वो वाकई पापीही बन जाता है। अत जो व्यक्ति दूसरों की बिना किसी भीस्वार्थपूर्ण उद्देश्य से मदद करता है, वो असल मेंखुद के लिए अच्छे का निर्माण कर रहा होता है। हरे बांस कोआसानी से मोड़ा जा सकता है, किन्तु पके हुए बांस को जब ताकत लगाकर मोड़ा जाता है तोवो टूट जाता है। एक युवा हृदय को भगवान की तरफ मोड़ना आसान है, किन्तु एकवृद्ध व्यक्ति के अनाड़ी हृदय को भगवान की ओर लाने पर वो भाग-भाग जाता है।एकमात्रईश्वर ही सबके गाइड (पथप्रदर्शक) और ब्रह्मांड के गुरु हैं। सामान्य आदमी झोला भरकर धर्म की बातें करता है किन्तु खुद के व्यवहार मेंएक दाना बराबर नहीं लाता। एक बुद्धिमान व्यक्ति बातें बहुत थोड़ी करता है, जबकि उसकापूरा जीवन धर्म के वास्तविक व्यवहार का प्रदर्शन होता है।एक व्यक्ति चाहे तो दिये की रोशनी में भागवत पढ़ सकता हैऔर दूसरा उसी के प्रकाश में जालसाजी कर रहा हो सकता है ; किन्तु इन सबसे दिये को कोई फर्क नहीं पड़ता। सूर्य अपना प्रकाश दुष्ट व्यक्ति और भले व्यक्तिदोनों को देता है।अगर किसी सफेद कपड़े में छोटा सा भी दाग लग जाए, वो दागदेखेने में बहुत बुरा लगता है। इसी प्रकार किसी साधु का छोटे से छोटा दोष भी बहुतबड़ा प्रतीत होता है। चीनी और बालू साथ मिल जाते हैंलेकिन चींटी बालू के कण छोड़ देती है और शक्कर के दाने बिन लेती है। इसी तरह एक संतबुरे लोगों से भी अच्छाइयों को ही ग्रहण करते हैं। एक नाव पानीमें रहती है लेकिन पानी को नाव के अंदर नहीं होना चाहिए, नहीं तो नावडूब जाएगी। आध्यात्मिक उन्नति के लिए अग्रसर व्यक्ति संसार में रहे तो कोई हर्जनहीं लेकिन उसके मन में संसार की माया नहीं होनी चाहिए। सच तो ये हैकि जब तक तुम्हारे मन में जरा सा भी इच्छाएं, वासनायें बाकी हैं तुम भगवान को पूर्णतः प्राप्त नहीं करसकोगे। धर्म की गति सूक्ष्म होती है। अगर तुम सुई में धागा डालने की कोशिश कर रहेहो, तो तुम तब तकसफल नहीं होगे जब तक धागे का एक भी रेशा टेढ़ा हो।दाद के रोग से ग्रसित आदमी दाद की जगह को खुजलाता है तोउद्को अच्छा लगता है लेकिन खुजलाने के बाद वहाँ दर्द और जलन होने लगती है। इसी तरहसंसार के सुख शुरू में बड़े आकर्षक लगते हैं परंतु उनके परिणाम भयानक और कष्टकारी होते हैं। जिस तरह कम्पस कीचुंबकीय सुई हमेशा उत्तर दिशा की ओर इशारा करती है और इसकी वजह से पानी का जहाजआगे बढ़ते हुए अपनी दिशा से नहीं भटकता। इसी प्रकार जब तक व्यक्ति का हृदय ईश्वरमें लगा रहता है, वो सांसारिक माया के समुद्र में भटकने से बच जाता है।अगर तुम पूर्व दिशा में जाना चाहते हो तो पश्चिम दिशामें मत जाओ। जीवन में अपना लक्ष्य निर्धारित करें और उसकोहासिल करबे के लिए पूरी तन्मयतासे कोशिश करो |जब तक मधुमक्खी फूल की पंखुड़ियों से बाहर है और उसनेपराग के मीठेपन को नहीं चखा है, वो फूल के चारों ओर गुंजन करती हुई मंडराती रहती है ; परंतु जब वोफूल के अंदर आ जाती है, तो शांत बैठकर पराग पीने का आनंद लेती है। इसी प्रकारजब तक मनुष्य मत और सिद्धांतों को लेकर बहस और झगड़ा करता रहता है, उसने सच्चेविश्वास के अमृत को नहीं चखा है ; जब उसे ईश्वरीय आनंद अमृत का स्वाद मिल जाता है, वो चुप और शांतिसे भरपूर हो जाता है।बहुत ज्यादा ग्रंथ पढ़ना लाभ से ज्यादा नुकसान करते हैं।जरूरी बात है ग्रंथों के सार को जानना, समझना।उसके बाद फिर किताबों की क्या आवश्यकता ? व्यक्तिको सार समझना चाहिए और फिर ईश्वर को अनुभव करने के लिए गहरा गोता लगाना चाहिए।परमहंस कहते थे कि आदमी संसार में रहकर गृहस्थी चला रहाहै तो इसमें हानि नहीं परंतु तुम्हें अपना मन ईश्वर की ओर रखना चाहिए। एक हाथ सेकर्म करो और दूसरे हाथ से ईश्वर को पकड़े रहो। जब संसार में कर्मों का अंत हो जाएगातो दोनों हाथों से ईश्वर के चरणों को पकड़ना। जैसे अगर किसी की पीठ में घाव हो जाएतो वो लोगों से बातचीत और दूसरे व्यवहार आदि तो करता है परंतु उसका मन हर समय उसघाव के दर्द की ओर ही पड़ा रहता है।परमहंस के मुताबिक़ वही सच्चा सच्चे साधु है जिसका मन, प्राण, अंतरात्मापूरी तरह ईश्वर में ही समर्पित हो वही सच्चा साधु है। सच्चा साधु कामिनी, कांचन कासम्पूर्ण त्याग कर देता है। वो स्त्रियों की ओर ऐहिक दृष्टि से नहीं देखता, वो सदास्त्रियों से दूर रहता है। और यदि उसके पास कोई स्त्री आए तो वो उसे माता के समानदेखता है। वो सदा ईश्वर चिंतन में मग्न रहता है और सर्वभूतों में ईश्वर विराजमानहैं, ये जानकरसबकी सेवा करता है। ये सच्चे साधु के कुछ साधारण लक्षण हैं। जो साधु दवाईदेता हो, झाड़-फूँककरता हो, पैसे लेता होऔर भभूत रमाकर या मला-तिलक आदि बाह्य चिन्हों का आडंबर रचकर मानों साइनबोर्ड लगाकरलोगों के सामने अपनी साधुगीरी का प्रदर्शन करता हो, उसपर कभीविश्वास मत परमहंस का मानना था कि जिस तरह ख़राब आईने मेंजैसे सूर्य की छवि दिखाई नहीं पड़ती. वैस ही ख़राब मन में भगवान की मूरत नहीं बनती | धर्म सभीसमान हैं. वे सभी ईश्वर प्राप्ति का रास्ता दिखाते हैं } अगर मार्ग में कोई तकलीफ परेशानी ना आयेतब समझना की यह रास्ता गलत हैं } विषयक ज्ञान मनुष्य की बुद्धि को सीमा में बांध देता हैं और उन्हेंअभिमानी भी बनाता हैंआज से लगभग 150 साल पहले ही कह दिया था कि जब तक भारत के अंदर एक भीव्यक्ति भूखा और निसहाय हैं | तब तक देश का हर एकव्यक्ति नेता और अधिकारी गद्दार है | समूचा देश 15 मार्च 2023 को परमहंस रामकृष्ण की 187वीं जन्म जयंती पर उनके श्री चरणों मेंश्रधा सुमन अर्पित करके उनकीशिक्षाओं पर चलने का संकल्प लेता है| सर्वधर्म सुखाय की भावना कापूर्ण रूप से पालन करके सभी धर्मों का सम्मानकरें और उनको अपनी धार्मिक आस्थाओं के मुताबिक़ जीवन जीने का अधिकार दे | सभी धर्मों का आदर औरसम्मान करें |

डा. जे. के. गर्गपूर्व संयुक्त निदेशक कालेज शिक्षा जयपुर

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