न्यूट्रिएंट्स के भंडार हैं-‘मिलेट्स’ (श्रीअन्न)

सुनील कुमार महला
भारत के प्रस्ताव के आधार पर, यूएनजीए द्वारा वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष (आईवाईएम) के रूप में घोषित किया गया है। जानकारी देना चाहूंगा कि 5 मार्च 2021 को भारत के प्रस्‍ताव पर 72 देशों की स्‍वीकृति के बाद संयुक्‍त राष्‍ट्र महासभा ने 2023 को अंतरराष्‍ट्रीय मोटा अनाज वर्ष के रूप में मनाए जाने की घोषणा की थी।हाल ही में 18 मार्च शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई दिल्ली में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के राष्ट्रीय कृषि विज्ञान परिसर के सुब्रमण्यम हॉल में मोटे अनाज यानि कि ‘श्रीअन्न’ पर दो दिन तक चले वैश्विक सम्मेलन का उद्घाटन किया। 19 मार्च को यह सम्मेलन समाप्त हो गया। भारत के मोटा अनाज मिशन से ढाई करोड़ लघु एवं सीमांत किसानों को लाभ होगा। पीएम मोदी ने सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि हमारे देश में मिलेट्स को अब ‘श्री अन्न’ की पहचान दी गई है, यह सिर्फ खेती और खाने तक ही सीमित नहीं है, श्री अन्न भारत में समग्र विकास का एक माध्यम बन रहा है। इसमें गांव और गरीब भी जुड़ा है। मिलेट्स अब लोगों के लिए रोजगार का जरिया भी बन रहे हैं। उन्होंने कहा कि आज 2.5 करोड़ किसान सीधे तौर पर मिलेट्स से जुड़े हैं, श्री अन्न के लिए हमारा मिशन इन सभी किसानों और उनसे जुड़ी तंत्र को फायदा पहुंचाएगा। इससे ग्रामीण अर्थव्यस्था भी मजबूत होगी। वास्तव में, मोटा अनाज प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियों में और रसायनों एवं उर्वरकों का इस्तेमाल किए बिना आसानी से उगाया जा सकता है। आज मोटा अनाज वर्ष को सफल बनाने के लिए केंद्र सरकार बहुत सी योजनाएं लेकर आई है।आज राशन प्रणाली के तहत आमजन में मोटे अनाजों के वितरण पर लगातार जोर दिया जा रहा है। यहाँ तक कि आंगनबाड़ी और मध्यान्ह भोजन योजना(मिड-डे मील) में भी मोटे अनाजों को शामिल कर लिया गया है। हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी रेडियो पर ‘मन की बात’ कार्यक्रमों में मोटे अनाजों से बने व्यंजनों का उल्लेख करते रहते हैं। आज फास्टफूड का जमाना है। लोग फास्ट फूड का सेवन करके आज तरह तरह के बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। हृदय रोग, उच्चरक्तचाप , डाइबटीज , कैंसर, लीवर, किडनी से संबंधित बीमारियां, एलर्जी जैसी अनेक गंभीर बीमारियां आज लोगों को होने लगी है। इसलिए अब लोगो को आज जरूरत है कि वे मोटे अनाज का सेवन करें।एक समय था जब भारत के हरेक गांव-घरों की हरेक थाली में केवल ज्वार, बाजरा, रागी, चीना, कोदो, सांवा, कुटकी, कुटटू और चौलाई से बने हुए व्यंजन ही हुआ करते थे लेकिन फिर समय बदलता गया और आज स्थिति यह हो गयी है कि लोग इन अनाजों का महत्व तो दूर इनका नाम तक भी भूल गए हैं। आज के आधुनिक वातावरण में जब घरों में बड़े बुजुर्ग इन अनाजों का नाम लेते हैं या नई पीढ़ी को इनका महत्व बताते हैं तो युवा पीढ़ी इनके महत्व को मानने से इंकार तक करती है।वास्तव में,
मोटा अनाज वर्ष के माध्यम से युवा पीढ़ी भी इन अनाजों का वैज्ञानिक महत्व समझ सकेगी और इनकी महत्व व महत्ता को स्वीकार कर सकेंगे।आज हमारी जीवनशैली में आमूल चूल परिवर्तन आ गए हैं। हमारा रहन-सहन बदल गया है। यहाँ तक कि हमारे खानपान में आमूल चूल परिवर्तन आए हैं। यदि हमारा खानपान अच्छा है तो हमारा स्वास्थ्य अच्छा है और यदि हमारा खानपान ही सही नहीं है तो इससे हमारे स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है।ऐसे में हमें हमारे खानपान को लेकर बहुत अधिक ध्यान बरतने की जरूरत है। हमारे यहाँ कहा गया है कि-“जैसा खावै अन्न, वैसा रहे मन।” यानी कि जिस प्रकार का भोजन हम ग्रहण करते है, उसी प्रकार का हमारा मन, शरीर बनता है, क्योंकि संतुलित आहार का जीवन शैली पर प्रभाव पड़ता है। इसलिए हमें यह चाहिए कि हम अपनी दिनचर्या में मोटे अनाज युक्त एवं चोकर युक्त भोजन को शामिल करें। हमारे बुजुर्ग कहते आए हैं कि मोटा अनाज हमें सेहतमंद बनाये रखता है। सर्दी का मौसम हो या गर्मी का, मोटा अनाज यानी कि यदि हम अंग्रेजी में कहें तो मिलेट्स(मोटा अनाज) हमारे शरीर के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। विशेषकर सर्दियों के मौसम में बाजरा, मक्का का सेवन हमें सेहतमंद बनाये रखता है। पंजाब जैसे राज्य में सर्दियों के मौसम में मक्का की रोटी और सरसों के साग का प्रचलन है, यहाँ अच्छी मात्रा में मक्का का सेवन किया जाता है। राजस्थान की यदि हम बात करें तो हमारे यहाँ मक्का भी प्रयुक्त किया जाता है लेकिन यहाँ बाजरे का प्रयोग अधिक किया जाता है, क्योंकि हमारे यहाँ बाजरा बहुतायत में पैदा किया जाता है। वैसे पंजाब में भी बाजरे का प्रयोग बहुत से लोग करते हैं। वैसे मोटे अनाज में मक्का व बाजरा के अतिरिक्त ज्वार, रागी (मडुआ), जौ, कोदो, सामा, सांवा, लघु धान्य या कुटकी, कांगनी और चीना जैसे अनाज भी शामिल किये जाते हैं, लेकिन अधिकतर प्रयोग दो या तीन अनाजों का ही होता है। बुजुर्ग कहते हैं कि मोटे अनाज में भरपूर पोषण तत्व पाये जाते हैं और यह ताकतवर होता है। आपने देखा होगा कि पहले के जमाने में, यानी कि आज से बीस पच्चीस बरस पहले गांवों में लोग जौ, बाजरा,मक्का जैसे मोटे अनाजों का प्रयोग अधिक करते थे और कम बीमार पड़ते थे। आजकल हम गेहूँ का प्रयोग अधिक करते हैं, मक्का, बाजरा,जौ आदि का प्रयोग कम। मोटा अनाज यानी कि मिलेट्स को सुपरफूड भी कहा जाता है, क्योंकि यह हमारी सेहत के लिए बहुत ज्यादा फायदेमंद होता है और हमारी पाचनशक्ति को भी दुरस्त रखता है। स्वयं भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी मन की बात कार्यक्रम में मोटा अनाज की तारीफ कर चुके हैं और इस संबंध में जागरूकता फैलाने की अपील भी वे कर चुके हैं। समय के साथ आज मोटा अनाज खाने वाले लोगों में कमी देखने को मिली है, क्योंकि साधारणतया बाजरा व मक्के की रोटी बनाना भी आसान कार्य नहीं है। बाजरे का आटा गेहूँ की तरह नहीं गूंथा जा सकता है, उसे रोटी बनाते समय साथ साथ ही गूंथना पड़ता है। मोटा अनाज की महत्ता कितनी है, यह इस बात से पता चलती है कि इसे जी-20 की बैठकों में भी परोसा गया। मोटा अनाज को पोषक तत्वों का भंडार माना जाता है। बीटा-कैरोटीन, नाइयासिन, विटामिन-बी6, फोलिक एसिड, पोटेशियम, मैग्नीशियम, जस्ता आदि से भरपूर इन अनाजों को सुपरफूड भी कहा जाता है। मोटे अनाज में भरपूर मात्रा में फाइबर पाया जाता है जो कि शरीर के लिए बहुत लाभदायक है। हमारे बुजुर्ग तो हमेशा हमेशा से मोटे अनाज की काफी तारीफ करते रहे हैं। और अब तो डाक्टर्स भी मोटा अनाज खाने के लिए रिकमंड करने लगे हैं, विशेषकर सर्दियों के मौसम में। डाक्टर्स कहते हैं कि मोटे अनाज में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा काफी कम होती है। ऐसे में नियमित तौर पर मोटा अनाज खाने से हाई बीपी और दिल से जुड़ी समस्याओं का खतरा काफी कम हो जाता है। साथ ही इसके सेवन से शरीर में कोलेस्‍ट्रॉल का स्तर भी कम होता है। बाजरे में भरपूर मात्रा में कैल्शियम पाया जाता है जो कि हमारी हड्डियों को मजबूती प्रदान करता है।मोटे अनाज तासीर में गर्म होते हैं। ऐसे में सर्दियों में इसके सेवन से शरीर को गर्माहट मिलती है, जिससे हम ठंड,सर्दी से बचे रहते हैं। इसके अलावा इसमें मौजूद कई पोषक तत्‍व भी शरीर के लिए फायदेमंद होते हैं। मोटे अनाज के सेवन से कब्ज,गैस व एसिडिटी की समस्या नहीं होती है और ये हमारी पाचन प्रणाली को दुरस्त रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इन दिनों डायबिटीज की समस्या काफी आम हो चुकी है। आज बहुत से लोग इस गंभीर बीमारी से परेशान है। ऐसे में मोटा अनाज का सेवन कई तरह के मधुमेह में गुणकारी है। दरअसल, डायबिटीज के मरीजों के लिए गेहूं का सेवन हानिकारक माना जाता है। ऐसे में बाजरा, रागी, ज्वार आदि ब्लड शुगर को कंट्रोल करने में काफी अहम भूमिका निभाते हैं।जानकारी देना चाहूंगा कि बाजरा में मैग्नीशियम, पोटैशियम भरपूर मात्रा में पाया जाता हैं। इसमें ओमेगा-3 फैटी एसिड भी पाया जाता है। बाजरा ग्लूटेन फ्री होता है। बाजरा खाने से शरीर को भरपूर एनर्जी मिलती है और इस प्रकार से ये ऊर्जा एक बहुत अच्छा स्त्रोत है।सर्दी में बाजरा कई लोगों की पसंद होती है, लेकिन बड़ा वर्ग इसे नापसंद भी करता है। राजस्थान के शेखावटी, बीकानेर, जोधपुर, बाड़मेर, जैसलमेर, नागौर क्षेत्रों में तो बाजरा बड़े ही चाव से खाया जाता है। शेखावाटी इलाके में बहुत बड़े वर्ग की यह पसंद है। यहाँ का बाजरा खाने में बहुत ही स्वादिष्ट व मीठा होता है। बाजरे की रोटी,खिचड़ी, दलिया, चूरमा और राबड़ी खाने में बहुत अच्छी लगती है।मोटे अनाज में शामिल बाजरे की खास बात ये है कि सेहत के लिए काफी फायदेमंद होने के साथ ही किसान और जमीन के लिए भी यह काफी फायदे का सौदा है। फायदे का सौदा इसलिए क्योंकि बाजरे को पैदा करने के लिए कम पानी,कम खाद की जरूरत होती है। अमूमन बिना खाद के ही बाजरा पैदा किया जाता है। यूरिया व कीटनाशकों की जरूरत बाजरे की फसल के लिए सामान्यतया नहीं पड़ती है और यह शुद्ध होता है। आज पूरी दुनिया ऑर्गेनिक खेती पर जोर दे रही है, क्योंकि कीटनाशकों, रसायनों से बहुत खतरनाक बीमारियाँ पैदा हो रही है, ऐसे में बाजरा हमारी सेहत के लिए बहुत शानदार फूड है। बाजरे में मौजूद फाइबर से कैंसर का ख़तरा भी कम होता है।जानकारी देना चाहूंगा कि बाजरा अधिक तापमान में पनप जाता है। बाजरे की पैदावार दूसरी फसलों की तुलना में बहुत आसान है और साथ ही ये कीट-पतंगों से होने वाले रोगों से भी बचा रहता हैं।अफ्रीकी मूल के इस अनाज में (बाजरे में) अमीनो एसिड, कैल्शियम, जिंक आयरन, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस, पोटैशियम और विटामिन (बी6, सी, ई) जैसे कई विटामिन और मिनरल्स की भरपूर मात्रा पाई जाती है. प्रति 100 ग्राम बाजरे में लगभग 11.6 ग्राम प्रोटीन, 67.5 ग्राम कार्बोहाइड्रेट और 132 मिलीग्राम कैरोटीन पाया जाता है। बाजरा शुष्क क्षेत्र में अनाज वाली प्रमुख फसल है, यह राज्य के लगभग 51 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में प्रतिवर्ष उगाई जाती है।भारत में दुनिया में सबसे बड़ा बाजरा क्षेत्र (9.8 मिलियन हेक्टेयर) है। करीबन 11.79 क्विंटल/हेक्टेयर की उत्पादकता के साथ बाजरा भारत में 1.64 मिलियन हेक्टेयर में उगाया जाता है। बाजरा वर्षा पर आधारित असिंचित एवं सिंचित क्षेत्रों में खरीफ ऋतु में उगाया जाता हैं अनाज के साथ-साथ यह चारे की भी अच्छी उपज देता है। बाजरे की तरह ही मक्का भी हमारे शरीर के लिए बहुत फायदेमंद है। मक्का भी बाजरे की तरह डायबीटीज को नियंत्रित करता है, यह आंखों के लिए फायदेमंद है और वजन नियंत्रित करने में बाजरे की तरह ही सहायक है। मक्का शरीर में आयरन की कमी को दूर करता है और एनीमिया से बचाव में सहायक होता है। यह हमारे हृदय को, पाचन प्रक्रिया को दुरुस्त रखता है तथा कोलेस्ट्रॉल को भी कंट्रोल करता है।मक्का दुनियाभर में पॉप्युलर अनाजों में गिना जाता है। यह आमतौर पर पीला होता है लेकिन लाल, नारंगी, बैंगनी, नीला, सफेद और काला जैसे कई अन्य रंगों में भी यह होता है। मक्के में कई तरह के पोषक गुण होते हैं जिसके वजह से न्यूट्रीशियन एक्सपर्ट इसे खाने की सलाह देते हैं। यह हमारे चेहरे और यहाँ तक कि हमारे बालों की सुंदरता को भी बनाये रखता है।मकई में फैट, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और फाइबर के साथ कई जरूरी विटामिन और मिनरल्स मौजूद होते हैं। जिसकी मदद से यह शरीर में विभिन्न पोषक तत्वों की पूर्ति करने में सक्षम होता है। साथ ही यह हमारी त्वचा का भी ख्याल रखता है। यह अल्जाइमर में भी मददगार है।न्यूट्रीनिस्ट बताते हैं कि भुट्टे के दानों में विटामिन बी और फोलिक एसिड पाया जाता है, जो हमारे बालों को बेहतर करने के साथ ही इन्हें सफेद होने से रोकता है। साथ ही इसमें मौजूद फाइबर की मदद से कब्ज की परेशानी भी नहीं होती है। इससे हम हमारा ब्लड शुगर कंट्रोल कर सकते हैं। मिलेट्स या मोटा अनाज फसलों का एक समूह है जो, मुख्यतः उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में खेती के लिए अनुकूल होते हैं तथा सीमित स्रोतों के साथ उगाए जा सकते हैं। ये फसलें जलवायु के अनुकूल, कठोर और शुष्क भूमि वाली फसलें हैं जो खाद्य और पोषण सुरक्षा में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं। यहाँ यह भी जानकारी देता चलूं कि वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष कहा गया है। यहाँ पाठकों को यह जानकारी देना भी तर्कसंगत होगा कि बाली में जी-20 शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पारंपरिक मोटे अनाज के लाभों का उल्लेख करते हुए कहा था कि इनसे कुपोषण और भूख की वैश्विक समस्या हल हो सकती है। श्री मोदी ने उस समय यह बात भी कही थी कि भारत सतत खाद्य सुरक्षा के लिए प्राकृतिक कृषि और बाजरा,जौ,ज्वार,मक्का जैसे मोटे अनाजों को बढ़ावा दे रहा है। उन्होंने उस समय, इस वर्ष को यानि कि 2023 को पूरे उत्साह के साथ अंतर्राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष मनाने का आग्रह किया था। बहरहाल, बताता चलूं कि मोटे अनाज भरपूर एंटी-ऑक्सीडेंट गुण रखते हैं। वैसे भी मोटे अनाज को लंबे समय तक गरीब आदमी की फसल के रूप में करार दिया गया है, लेकिन आज मोटा अनाज बहुत महंगा है और शहरों में इसके बहुत दाम हैं। वैसे,मोटे अनाज में संघनित टैनिन भी होते हैं, जिनका प्राथमिक कार्य अनाज को फफूंदी से बचाना और उन्हें खराब होने से बचाना है, हालांकि वे अनाज की कसैलेपन के लिए भी जिम्मेदार हैं।टैनिन प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और खनिजों की पाचन क्षमता को कम करता है और इसमें एंटीकार्सिनोजेनिक, गैस्ट्रो-प्रोटेक्टिव, एंटी-अल्सरोजेनिक और कोलेस्ट्रॉल कम करने वाले गुण भी होते हैं।कई अध्ययनों से यह पता चलता है कि मोटे अनाज में विभिन्न घटक जैसे β-ग्लूकेन्स, लिग्नन्स, एंटीऑक्सिडेंट और फाइटोस्टेरॉल होते हैं जो स्तन, प्रोस्टेट, कोलो-रेक्टल और अन्य कैंसर की रोकथाम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। बहरहाल, अभिजात्य वर्ग में आज भी मोटे अनाज बहुत कम शामिल हैं, क्योंकि अमूमन मोटे अनाज को गरीबों का अनाज माना गया है। मोटे अनाज अपने समृद्ध पोषक तत्व और सूखा प्रतिरोध गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं। अतः हमें यह चाहिए कि हम अपने भोजन में मोटे अनाजों का प्रयोग करें क्योंकि ये विभिन्न पोषक तत्वों के साथ ही उच्च गुणवत्ता युक्त और स्वास्थ्य की दृष्टि से लाभकारी होते हैं। वास्तव में, हमारे भोजन का सीधा प्रभाव हमारे चरित्र व मन पर पड़ता है। हमारे उपनिषदों में भी यह कहा गया है कि-“अन्न ही बल से बढ़कर है। किसी को यदि दस दिन भोजन न मिले तो प्राणी की समस्त शक्तियाँ क्षीण हो जाती हैं और वे फिर तभी लौटती हैं जब वह पुनः भोजन करने लगे। तुम अन्न की उपासना करो। यह अन्न ही ब्रह्म है।” वास्तव में,आहार शुद्ध होने से अन्तःकरण की शुद्धि होती है। अन्तःकरण शुद्ध होने से भावना दृढ़ हो जाती है और भावना की स्थिरता से हृदय की समस्त गाँठें खुल जाती है। वास्तव में, कुपोषण मुक्त और अच्छा स्वास्थ्य, अच्छा व सुंदर भविष्य बनाने के लिये मोटे अनाज की अहम भूमिका होगी ऐसा विशेषज्ञों, वैज्ञानिकों का मानना है और इसके लिए विश्व के विभिन्न देशों को साथ मिलकर काम करने की बेहद आवश्यकता है। आज मोटे अनाज को प्रोत्साहन देना समय की मांग भी है क्योंकि यह अनाज आधुनिक जीवन शैली में बदलाव के कारण सामने आ रही कई बीमारियों व कुपोषण को रोकने में सक्षम है। जानकारी देना चाहूंगा कि भारत में अति प्राचीन समय से ही मोटे अनाजों को खाने खिलाने का प्रचलन रहा है।
हमारे यहाँ प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता के समय से ही मोटे अनाज की खेती के प्रमाण मिलते हैं। भारत समेत विश्व 131 देशों में मोटे अनाजों की खेती की जाती है । मोटे अनाज के वैश्विक उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी 20 प्रतिशत और एशिया में 80 प्रतिशत है। गौरतलब है कि ज्वार के उत्पादन में भारत विश्व में प्रथम स्थान पर है।भारत में ज्वार का सर्वाधिक उत्पादन महाराष्ट्र, कर्नाटक, राजस्थान, तमिलनाडु , आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना और मध्य प्रदेश में होता है।बाजरे के उत्पादन में राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक आगे है। राजस्थान, हरियाणा,उत्तर प्रदेश के अनेक गांवों में आज बाजरा बड़े चाव से खाया जाता है। भारत मोटे अनाज के वैश्विक उत्‍पादन में लगभग 41 प्रतिशत की हिस्सेदारी के साथ मोटे अनाज का प्रमुख उत्‍पादक देश है।

( इस आर्टिकल में उल्लिखित सलाह और सुझाव सिर्फ पाठकों को सामान्य सूचना के उद्देश्य या सामान्य जानकारी के लिए ही है। यह कोई चिकित्सीय सलाह नहीं है। आर्टिकल का उद्देश्य किसी की भावनाओं को आहत करना नहीं है।)

सुनील कुमार महला,
स्वतंत्र लेखक व युवा साहित्यकार
पटियाला, पंजाब
ई मेल [email protected]

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