मेंढ़की को ब्याह रचायौ, सुनो जी सरकार!

कहते हैं कि बुद्धिमान लोग तो लिफाफा देख कर ही उसका मजमून भांप लेते हैं और एक मैं हूं कि पत्र खोल कर पढऩे के बाद भी कुछ पता नहीं लगा सका कि पत्र का आशय क्या है? उसमें लिखा था, आ रही है। कौन आ रही है? क्यों आ रही है? कब आ रही है? कुछ पता नहीं। अब मेरे को बैठे बैठाए चिंता हो गई। हाय राम! यह क्या हुआ? पहले तो यह सोचा कहीं महंगाई ने तो चि_ी नहीं लिख दी? परन्तु फिर ख्याल आया कि वह तो पहले से ही बिन बुलाए मेहमान की तरह आई हुई है। फिर सोचा शायद किसी मुसीबत के आगमन की कोई सूचना हो, परन्तु उसके लिए तो कहा जाता है कि वह अक्सर बिना बुलाए ही आती है और साथ में अपनी बहनों को भी लेकर आती है। खैर, जो भी हो दो-तीन दिन बाद इसका रहस्य खुला, जब नीमच-मालवा निमाड-से एक रिश्तेदार के यहां से ब्याह की कुंकुम पत्रिका प्राप्त हुई। साथ में मालवी-राजस्थानी की खिचड़ी में लिखा एक पत्र भी था। लिखा था साहजी! आपने तो पतो ही है कि रोज सावन का दिन आई रिया है, न जाई रिया है, पण बरसात नी होरी है। मैं तो इहा लोगां नै कयौ थो कि इ सब सरकार का पाप अपन भुगत रिया हां। जावरा के पंडितजी ने कहा है कि मेंढ़की बाईरा हाथ पीला करदयो तो बरसात होई जासी। सो आगली ग्यारस नै मेंढ़क-मेंढ़की रो ब्याह मांड दियो है। आपनै जरूर जरूर आनो है।
मुझे ध्यान आया, मैं इससे पहले मन्दसौर में एक शादी में जा चुका हूं। शादी थी करेले और हरी मिर्च की। उसमें मालवा की औरतों ने क्या-क्या रसीले गीत गाए थे। एक बानगी देखना चाहेंगे?
मिरची को ब्याह रचाया, करेला जी दूल्हा बनी आया,
सुणो जी सरकार!
बैठे बैठाए मुझे यह भी याद आया कि मेरे बचपन में कभी हमारे मोहल्ले में भी किसी ने कद्धू की सगाई की रस्म अदा की थी, जिसमें महिलाओं ने निम्नलिखित गीत गाया था-
कद्दूृ की हुई थी सगाई, शकरकंद नाचण को आई।
पता नहीं बाद में कद्दूकी बाकायदा शादी भी हुई या वह लोग अभी तक लिव इन रिलेशनशिप में ही रह रहे हैं।
उन्हीं दिनों कई धार्मिक प्रवृत्ति के लोग तुलसी की शादी भगवान विष्णु के साथ करने की रस्म भी किया करते थे। अपनी अपनी श्रद्धा है, लेकिन यहां तो मेंढ़की की शादी का बुलावा है। बताते है कि मेंढ़की को मूसल से बांध कर उसे एक टोपले में रख कर उसकी बिन्दौरी निकाली जाएगी और उसके पीछे पीछे महिलाएं हाथ में नीम के पत्ते व झाड़ लेकर सुहाग के गीत गाते हुए चलेंगी। आगे आगे स्थानीय जिया बैन्ड होगा। कितना मनोहारी दृश्य होगा? ऊपर से खाने को मिलेंगे मालपुए और मालवा की अरहर की दाल! यह सोच कर ही मैं बाग-बाग होगया।
मैंने यह भी सोचा कि आखिर मेंढ़की का इतना महत्व क्यों है? पौराणिक कथाओं के अनुसार रावण की पटरानी मंदोदरी पूर्व जन्म में मेंढ़की थी। एक परोपकार के कारण एक ऋषि ने उसे आशीर्वाद दिया और वह रावण की पत्नी बनी। वह बहुत विद्वान थी। एक जानकार ने बताया कि कुंभकर्ण, पोलर बीयर, मेंढ़क और प्रशासन चारों में एक खास गुण है। यह जब सोते हैं तो लम्बी तान कर सोते हैं। मैं उन लोगों से सहमत नहीं हूं जो यह कहते हैं कि यह लोग घोड़े बेच कर सोते हैं। मुझे डर है तो सिर्फ इतना ही कि यह मेंढ़क-मेंढ़की की शादी अरेंज मैरिज है या प्रेम विवाह? क्योंकि अगर प्रेम विवाह हुआ और खाप पंचायतों को पता चल गया तो वे इनके विरुद्ध कार्रवाही करने में देर नहीं करेंगी। फिर आप करते रहना कोर्ट-कचहरी। बरसों कुछ नहीं होगा क्योंकि वहां अंग्रेजों के जमाने के ही कई कैसेज अभी तक नहीं निपटे हैं। रहा सवाल राज्य के विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा खापों के फरमान के समानान्तर कोई सामाजिक आंदोलन चलाने का तो क्यों नहीं कांग्रेस और कम्युनिस्ट मिल कर यह काम करते हैं? महज सरकारी आदेशों, कानून से क्या होने वाला है?
-ई. शिव शंकर गोयल
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