लोकेश, लो…केश

रास बिहारी गौड़

पुलिस के हाकिम क्या गए, अपने साथ रौनकें ले गए । उनके जाने के साथ साथ छोटे हाकिम न जाने कहां चले गए। न जानू मैं न जाने तू वाले अंदाज में। छोटे हाकिम बोले तो उप पुलिस अधीक्षक, उनका अपना कलर था, लेकिन वे अंडरग्राउंड हैं, क्योंकि इस खेल का सारा ग्राउंड उनके अंडर में था, इसलिए उन्हें अंडरग्राउंड होना ही था। वैसे उन्होंने जो किया, उस काम का उनके नाम से सीधा संबध था।
उनका नाम लोकेश। ………. लोग उन्हें पुकारते थे, वे सुनते लो, केश…! ..जबाव देते दो, केश….बस चक्कर केश का था! सारे लेन-देन को वे अंडरग्राउंड करते थे।
परिणामत: अंडरग्राउंड हैं। परन्तु अब स्थितियां बदल गई हैं। वे रहने के लिए कह रहे हैं लो केश, रखने वाले बोल रहे हैं दो.. कैश। कुल मिला कर खेल केश का ही है। लोकेश अब दो केश हो गए हैं, पर अब हाकिम गिरफ्तार हो गए हैं, रौनकें चली गयी हैं।
अभी हाकिम के जाने का गम भी पूरी तरह गलत भी नहीं हुआ था कि पीछे पीछे बारह थाने वीरान हो गए, विधवा हो गए। मांग सूनी हो गई, क्योंकि वे हाकिम की मांग भरते थे। हाकिम इनकी मांग भरते थे। कहने को चुटकी भर सिन्दूर था, जिसे चुटकी भर-भर कर जनता से इकट्ठा किया था।
अब ऐसी चुटकी भरी गयी की मांग खुद कुछ नहीं मांग रही है। कुल मिला कर थानों का सिन्दूरी सिन्दूर, नूर जो कभी लाल फीती में, कभी लालबत्ती में, कभी लाल गालों में, कभी ख्यालों में था, अब खो गया है।
थाने लाइन हाजिर हो रहे हैं। कभी इन थानों पर लगने केलिए लाइन लगती थी। अब वे खुद लाइन में लग गए। फिर तो लाइन का भगवान ही मालिक है। पता नहीं वहां मांग और सिन्दूर का क्या होगा। अभी तो हाकिम के जाने से रौनक गई हुई है। वे गिरफ्तार हो गए हैं।
समय समय की बात है। शायद यही भाग्य में लिखा था। पर उनका मानना है, भाग्य में नहीं पर्ची में लिखा था। भाग्य पहीं पर्ची धोखा दे गई । वो वफादार पर्ची, जिसने पहली से पुलिस तक की हर परीक्ष पास करवाई। जिस ने कबूतर बन के पता नहीं किस किस कबूतर के पर कतरे, नौकरी की सिफारिश, सिफारिश के नम्बर, नम्बरों के इशारे सब कुछ हजम कर गई, पर पर्ची अचानक हाकिम के बरामदे में जा कर एक अदनी सी रकम नहीं पचा पाई। बस फिर क्या था, जिसका परचम फहराता था, उनकी पर्ची फहर गई। अब सब एक स्वर मे चिल्ला रहे हैं। साली एक पर्ची थाने को लाइन बना देती है। थाने तो थाने, सड़कें तक हाकिम के गम में ठंडी पड़ी हुई हैं। हर छोटी बड़ी वर्दी का तापमान गिरा हुआ है। कुछ कहते हैं कि सर्दी है, पर हाकिम के ऊपर पाला पड़ा हुआ है। मतलब कि हाकिम का अपने से ऊपर वाले से पाला पड़ा हुआ है। इस पाले के डर से इतनी ठिठुरन के बावजूद कोई जेब गरम करने का दुस्साहस नहीं कर रहा है। कहीं सर्द-गरम न हो जाये, सब सिकुड़े पड़े हैं। और तो और पुलिस की सीटी की आवाज भी सुनाई नहीं दे रही। हांलाकि सबको पता है कि विभाग की सीटी बज गई, बजने के बाद भी वो चुप है, क्योंकि हाकिम चले गए। और अपने साथ रौनक ले गए।
-रास बिहारी गौड़

1 thought on “लोकेश, लो…केश”

  1. Heariteist compliments to Ras Bihar whom I love listening on TV screen. His piece provoked me to ponder that currently Ajmer might be relatively at a beter piece!!

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