राजस्थान में पूर्ण बहुमत की सरकार बनने के बाद भी पार्टी ने 10 दिन बाद अपना मुख्यमंत्री भजनलाल को घोषित किया और अब उसके भी 10 दिन बाद तक यानी चुनाव परिणाम के तीन हफ्ते बाद भी पार्टी अब तक मंत्रियों के नाम का ऐलान नहीं कर सकी है। अब तो मीडिया भी नाम के कयास लगा-लगा के हांफने लगा है। नड्डा के बयान ने एक बात तो साफ कर दी कि अब कांग्रेस की तरह भाजपा में भी राज्यों की सत्ता केंद्र यानी दिल्ली से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के नियंत्रण में चलाई जा रही हैं और भाजपा, कांग्रेस पर जो एक ही परिवार का शिकंजा होने का आरोप लगाती थी, वह भी अब लगभग दो नेताओं के इशारे पर चल और चलाई जा रही है। मंत्रियों की नियुक्ति में देरी के कारण भाजपा की छवि को भी बट्टा लग रहा है। जब सब कुछ दिल्ली से ही तय होना है और भाजपा सब पहले ही तय कर लेती है,तो फिर क्यों इतने दिन बाद भी मंत्रियों की घोषणा नहीं की गई ? जब मोदी और शाह की पसंद के ही मंत्री बनने हैं,तो भजनलाल और दोनों उपमुख्यमंत्री दिया कुमारी और बैरवा क्यों बार-बार दिल्ली जा रहे हैं?
कांग्रेस में तो मुख्यमंत्री और मंत्रियों के चयन में हमेशा गुटबाजी हावी रहती है। लेकिन भाजपा में तो गुटबाजी का भी कोई संकट नहीं है। वहां तो हालत ये है कि जिस किसी नेता का नाम मुख्यमंत्री या मंत्री के लिए मीडिया में चल जाता है,उसका पत्ता कटना तो अब भाजपाई ही नहीं,आम आदमी भी तय मानता है।
मंत्रिमंडल गठन में देरी को लेकर भाजपा की क्या रणनीति होगी,यह भी अपने आप में बड़ा सवाल है। हालांकि कहा जा रहा है कि जातिगत समीकरण बैठाने के चलते देरी हो रही हैं।
लेकिन मोदी तो कह चुके हैं कि भाजपा जाति की राजनीति नहीं करती उसके लिए महिला, किसान, युवा और गरीब ही जाति है, तो फिर परेशानी क्या है?
हालांकि राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्रियों के चयन में जिस तरह जाति के समीकरण बैठाए गए हैं,उसे देखकर लगता नहीं है कि भाजपा जातीय समीकरण पर ध्यान नहीं देती। अपना तो हमेशा से मानना रहा है कि जाति ही राजनीति का पहला और आखिरी सच है। बात चाहे टिकट वितरण की हो या पदों के वितरण की। इतना ही नहीं चुनाव की जीत में भी उम्मीदवारों के लिए उनकी जाति सबसे महत्वपूर्ण आधार होती है।
*ओम माथुर*