बाबरी मस्जिद विध्वंस की आंखों देखी

कारसेवकों का जोश-जुनून अद्भुत था
श्रीराम मंदिर सनातनियों के लिए गौरव का क्षण

■ओम माथुर ■
देश के लिए कल ऐतिहासिक दिन है। 500 साल के संघर्ष,बलिदानों और अनवरत आंदोलन के बाद अयोध्या में भव्य श्री राममंदिर का प्राण-प्रतिष्ठा समारोह होगा। यह शुभ घड़ी 6 दिसंबर 1992 अयोध्या में बाबरी ढांचे को कारसेवकों के ढहाने के कारण आई है। मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में भले ही जाना नहीं हो पा रहा हो,लेकिन बाबरी मस्जिद के विध्वंस का मैं भी चश्मदीद रहा हूं।
राजस्थान के सबसे पुराने समाचार पत्र दैनिक नवज्योति के लिए मैंने इस ऐतिहासिक घटना का अयोध्या जाकर कवरेज किया था। संभवत: राजस्थान के दो- तीन पत्रकार ही इसे कवर करने के लिए वहां पहुंचे थे। कार सेवा का कवरेज करने अजमेर से अयोध्या जाते,ढांचे को तोड़ने और वहां से लौटते समय देश भर में फैले दंगों के कारण रास्ते में डर के माहौल की स्मृतियां आज भी दिलोदिमाग में ताजा है।

ओम माथुर
नवज्योति के प्रधान संपादक श्री दीनबंधु चौधरी ने 2 दिसंबर 1993 की दोपहर अचानक अपने कक्ष में बुलाकर मुझे अयोध्या जाकर कार सेवा का कवरेज करने के निर्देश दिए। मुझे उस समय पत्रकारिता में आए बहुत ज्यादा समय नहीं हुआ था। मेरे लिए यह कार्य चुनौतीपूर्ण था,क्योंकि अपने शहर से बहुत दूर दूसरे राज्य में एक बड़े कार्यक्रम को कवर करना था। लेकिन मैंने इसे सहर्ष स्वीकार किया। अचानक अयोध्या जाने के कारण उस समय ट्रेन में आरक्षण नहीं मिल पाया। ऐसे में अयोध्या तक बस से सफर करना पड़ा। लेकिन समस्या ये भी थी कि वहां जाने के लिए कोई सीधी बस नहीं थी। लेकिन पहुंचना जल्दी से जल्दी था। ऐसे में अजमेर से 3 दिसम्बर की दोपहर बस से पहले जयपुर,वहां से आगरा,फिर आगरा से लखनऊ और लखनऊ से फैजाबाद तक का सफर बस बदल-बदल कर तय किया और 5 दिसंबर को सुबह फैजाबाद पहुंचा। कई जगह बस का भी घंटों इंतजार करना पड़ा। उस समय रास्ते भी आज की तरह एक्सप्रेस -वे या सभी जगह फोर लाइन नहीं हुआ करते थे। ना ही ट्रेन-बसों की भरमार थी। ऐसे में तब जहां सीधी बस या ट्रेन से फैजाबाद या अयोध्या 18 से 22 घंटे में पहुंचा जा सकता था,वहां पहुंचने में मुझे करीब 40 घंटे लग गए। फैजाबाद से अयोध्या महज सात किलोमीटर दूर है। अब तो योगी सरकार फैजाबाद का नाम ही अयोध्या कर चुकी है।
नवज्योति में उस वक्त मेरे वरिष्ठ मनोज पांडे (अब स्वर्गीय) के करीबी रिश्तेदार फैजाबाद में रहा करते थे और उन्होंने मुझे उनका पता देते हुए वहां रूकने का सुझाव दिया था,ताकि पराए शहर में परेशानी ना हो। फैजाबाद में उन रिश्तेदार का मकान उस चौराहे के पास था,जहां से सीधा रास्ता अयोध्या जाता था। 5 दिसंबर को फैजाबाद पहुंचने के कुछ ही देर बाद करीब 11 बजे मैं अयोध्या पहुंच गया। जहां बड़ी संख्या में कार सेवक जमा थे और सुरक्षा बल भी काफी दिख रहे थे। सबसे पहले मैंने वहां पहुंचकर श्री राम सेवा समिति द्वारा स्थापित मीडिया सेंटर में अपने समाचार पत्र दैनिक नवज्योति के नाम से परिचय पत्र बनवाया। जिसे सेंटर के रमाशंकर अग्निहोत्री के नाम से जारी किया जा रहा था। इसी परिचय पत्र को दिखाकर 6 दिसंबर को कवरेज के लिए पत्रकारों के लिए निर्धारित स्थान पर प्रवेश मिलना था। इससे पहले 5 दिसंबर की शाम विश्व हिंदू परिषद के महामंत्री अशोक सिंघल ने कार सेवा प्रतीकात्मक रूप से करने और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की पालना करने की जानकारी पत्रकारों को दी थी। यानि कार सेवक निर्धारित स्थान पर एक मुट्ठी बालू और अंजलि भर पानी डालेंगे। दिन भर अयोध्या में गुजारने के बाद मैं रात में फिर फैजाबाद लौट आया।
फिर आया छह दिसंबर 1992 का दिन। फैजाबाद से मैं सुबह सात बजे अयोध्या के लिए रवाना हुआ। जन्मभूमि तक करीब 10 -11 किलोमीटर रास्ते में कार सेवकों का सैलाब नजर आ रहा था। युवा, बुजुर्ग, महिलाएं, युवतियां हाथों में भगवा ध्वज थामे और सिर पर भगवा पट्टियां बांधे, त्रिशूल,डंडे,थामे पूरे जोशोखरोश से नारे लगाते हुए अयोध्या की ओर बढ़ रहे थे। ऐसा लग रहा था मानो सड़कों पर हिन्दू भावनाओं का ज्वार हो। उनमें कार सेवा के लिए जोश इतना था कि दिसंबर की सर्द हवाएं भी बेअसर थी। अयोध्या में कार सेवकों के झुंड सरयू में स्नान कर जन्म भूमि की तरफ जा रहे थे। उधर,बाबरी मस्जिद के आसपास जमा कारसेवकों में उन्माद की हद तक उत्साह था और उस चबूतरे के चारों ओर भारी भीड़ थी,जहां प्रतीकात्मक कार सेवा की जानी थी। अयोध्या में उस समय एक से सवा लाख कारसेवक मौजूद थे। सुबह करीब 9 बजे चबूतरे पर दो दरियां बिछाकर उस पर पूजा की सामग्री रखी गई। चबूतरे पर विश्व हिंदू परिषद के नेताओं सहित करीब 50-60 साधु संत मौजूद थे। इसी चबूतरे के निकट बने गड्ढे को भरकर प्रतीकात्मक कार सेवा की जानी थी।
हम लगभग डेढ़ सौ पत्रकार बाबरी मस्जिद के ठीक सामने तीन मंजिला मानस भवन की छत पर खड़े होकर कवरेज कर रहे थे। बांई ओर कुछ दूरी पर राम कथा कुंज में सभा चल रही थी। जिसमें भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, अशोक सिंघल, उमा भारती आदि मौजूद थे और नेताओं और संतों के भाषण चल रहे थे। भाषण सुनकर कारसेवकों का जोश बढ़ रहा था। जबकि मंच से कारसेवकों से शांत रहने और संयम रखने की अपील की जा रही थी। प्रतीकात्मक कार सेवा का समय दोपहर सवा बारह बजे तय था। लेकिन इससे पहले ही करीब पौने बारह बजे बाबरी मस्जिद के दाहिने ओर से अचानक सैंकड़ों कारसेवक बल्लियों व लोहे के सरियों की कई फीट ऊंची बेरीकेडिंग लांघकर मस्जिद परिसर में घुस गए। उसके बाद उन्होंने वहां से बाहर रस्सियां लटका दी,ताकि और कारसेवक इनके जरिए बाबरी ढांचे परिसर में आ जाएं। इन्हीं रस्सियों से बांधकर बैरीकेडिंग को भी खींच-खींच कर बाद में पूरा गिरा दिया गया था। इस दौरान वहां तैनात पुलिस बल की कार सेवकों से थोड़ी हाथापाई और विवाद हुआ। इसके बाद पुलिस बल मस्जिद परिसर से निकलकर पास ही बने पुलिस नियंत्रण कक्ष में जाकर खड़ा हो गया। इसके बाद तो इधर-उधर से दौड़कर और बेरिकेडिंग पर चढ़कर कुछ ही देर में हजारों कार सेवक मस्जिद की तीनों गुंबदों पर चढ़ गए और गुंबदों पर गेंती,फावड़ों,कुदाल और लोहे के सरियों से प्रहार करने लगे।
इस दौरान राम कथा कुंज से भी कार सेवक ढांचे की ओर दौड़ने लगे, तो मंच से अपील की गई कि कार सेवक गुबंद से उतर जाएं। लेकिन वहां इन नेताओं की सुनने वाला कोई नहीं था। करीब एक घंटे में मस्जिद का पहला गुंबद जमींदोज कर दिया गया। इसके बाद आडवाणी,जोशी,सिंघल रामकथा कुंज से चले गए। लेकिन पहला गुम्बद गिरने से उत्साहित कारसेवक खुशी से झूमने लगे। इस दौरान एक धक्का और दो,बाबरी मस्जिद तोड़ दो, राम नाम सत्य है,बाबरी ढांचा ध्वस्त हैं तथा जय श्रीराम, हो गया काम जैसे नारे गूंजते रहे। इसके बाद बाकी बचे दो गुम्बदों पर हजारों कारसेवक पिल पड़े और शाम करीब पांच बजे बाबरी मस्जिद मलबे के ढ़ेर में बदल चुका था। कारसेवक मलवे पर नाच रहे थे। पहला गुम्बद गिरते ही बीच के गुम्बद के नीचे रखी रामलला की मूर्ति व पूजन सामग्री कारसेवक बाहर निकाल लाए थे।
गुबंद ढहाने के बाद कारसेवकों ने मलवा हटाकर जमीन को समतल कर दिया और कुछ ही घंटे में अस्थाई मंदिर बनाकर रामलला की मूर्ति स्थापित कर दी थी। उस समय समाचार माध्यमों के नाम पर सरकार नियंत्रित दूरदर्शन एवं आकाशवाणी ही थे। आज की तरह सैंकडों न्यूज चैनल,सोशल मीडिया नहीं थे। इसलिए शाम तक ढांचा ध्वस्त होने की खबर देश को नहीं मिली थी। मैंने जब शाम करीब 7 फैजाबाद पहुंच ट्रंककाल बुक कराकर अजमेर समाचार लिखाने के लिए फोन किया,तो तब नवज्योति के प्रभारी स्वर्गीय श्यामजी ये सुनकर भौचक्कें रह गए कि बाबरी मस्जिद ध्वस्त हो गई है। उन्होंने मुझसे दो-तीन बार पूछा कि मैं क्या कह रहा हूं।
बहरहाल, अयोध्या जाने और वापस लौटने तक की पूरी घटना आज भी मानसपटल पर जैसी की तैसी अंकित है और मैं इस पर बहुत कुछ लिख सकता हूं। लेकिन आप मित्रों के लिए इस दौरान नवज्योति में जो कवरेज मैंने किया था,उसकी कुछ खबरें हैं। आप भी पढिए। हो सकता है आप में से कई लोगों इस घटना की पूरी जानकारी ना हो या आप भूल चुके हो। ऐसे में जब कल मंदिर का प्राण प्रतिष्ठा समारोह है,मुझे इस बात का गर्व है कि मैं अपने पत्रकारिता कैरियर में उस ऐतिहासिक घटना का साक्षी रहा हूं। जिसने देश का इतिहास बदल दिया और अब वहां हजारों साल पुराने सनातन धर्म की ध्वजा लहरा रही है। हमारे ईष्ट भगवान राम टेंट से निकल भव्य मंदिर में आ गए हैं। जय श्रीराम।

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