*अफसरशाही पर भरोसा कांग्रेस को पड़ा भारी*

-कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव पायलट ने राजस्थान में पार्टी की हार का बताया सबसे बड़ा कारण
-पायलट बोले, यदि अफसरशाही की बजाय पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं पर भरोसा करते गहलोत, तो फिर बन सकती थी कांग्रेस की सरकार

✍️प्रेम आनन्दकर, अजमेर।
👉कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव सचिन पायलट ने कहा है कि राजस्थान में पार्टी की हार का सबसे बड़ा कारण हमारी सरकार द्वारा अफसरशाही पर भरोसा करना रहा। उन्होंने कहा कि यदि सरकार पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं पर भरोसा करती, सरकार के कामकाज का फीडबैक कार्यकर्ताओं से लेती, उसके अनुसार काम करती और उन्हें तवज्जो देती, तो हो सकता है कि फिर से हमारी सरकार बन जाती। पायलट ने यह बात बीते रविवार को पत्रकार रजत शर्मा के टीवी शो ’’आपकी अदालत’’ में कही। हालांकि पायलट अनेक तीखे सवालों को घुमा गए और बार-बार कई मुद्दों पर कुरेदने पर पूछ भी बैठे कि आखिर और कितना कुरेदोगे। उन्होंने सवालों के जवाब में कांग्रेस शासनकाल में अपने द्वारा उठाए गए मुद्दों, अजमेर से जयपुर तक निकाली गई पदयात्रा, पर्यवेक्षकों के आने पर अनेक विधायकों के बैठक में नहीं जाने और गहलोत खेमे के मंत्रियों व विधायकों द्वारा अलग बैठक किए जाने सहित अनेक विषयों पर बेबाकी से सवालों के जवाब दिए। इस कार्यक्रम में पदयात्रा प्रारंभ होने के मौके पर प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेता महेंद्रसिंह रलावता के फार्म हाउस पर आयोजित सभा के वीडियो फुटेज भी दिखाए गए। पायलट ने कहा कि वर्ष 2013 में हुए विधानसभा चुनाव में हमारी पार्टी सिमट कर 21 सीटों तक रह गई थी, लेकिन उन्होंने पार्टी को मजबूत बनाने और फिर से सत्ता में लाने के लिए पूरे पांच साल तक अथक मेहनत की, जिसका नतीजा यह हुआ कि वर्ष 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सौ सीटें जीत कर सत्ता में आई। रजत शर्मा द्वारा पूछे गए सवाल के जवाब में पायलट की यह टीस भी अप्रत्यक्ष रूप से सामने आई कि उस वक्त मुख्यमंत्री बनने की उनकी बारी थी, लेकिन अशोक गहलोत ने उनकी राह में रोड़े डाले। उन्होंने कहा कि हम वर्ष 2023 में हुए विधानसभा में फिर से अपनी सरकार बनाकर पांच साल भाजपा, तो पांच साल कांग्रेस वाला रिवाज बदल सकते थे, लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी हम ऐसा नहीं कर सके।

प्रेम आनंदकर
उन्होंने अपनी बातचीत में यह साफ कहा कि हमारी सरकार ने अफसरशाही पर भरोसा किया। यदि यही भरोसा पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं पर किया जाता, सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं के बारे में अफसरशाही की बजाय पार्टी कार्यकर्ताओं से फीडबैक लिया जाता, योजनाओं के अमल में कार्यकर्ताओं की राय के अनुसार सुधार किया जाता और कार्यकर्ताओं को तवज्जो दी जाती, तो हम चुनाव जीत सकते थे। पायलट ने कुछ सवालों के जवाब में भाजपा की तीखी आलोचनाएं भी कीं, जिन्हें देखते हुए अब पायलट के भाजपा के साथ राज्य में सत्ता परिवर्तन का खेल करने का कयास लगाने वालों को सीधा जवाब मिल जाना चाहिए कि ऐसा कुछ भी नहीं होगा। फिर भी राजनीति में कब क्या हो जाए, कुछ भी नहीं कहा सकता है, क्योंकि इसका ताजा उदाहरण बिहार है, जहां भाजपा को पानी पी-पीकर कोसने वाले पलटूराम नीतीश कुमार ने फिर से सत्ता में आने के लिए भाजपा का दामन थाम लिया और गठबंधन ’’इंडिया’’ को टाटा-बाय-बाय कर दिया। किंतु राजनीतिक चतुरसुजानों को इतना तो यकीन है कि सचिन पायलट राजनीतिक शुचिता के पक्षधर हैं, इसलिए बिहारी पलटूराम जैसा खेला नहीं करेंगे। पायलट ने कहा कि विधानसभा चुनाव में हमारी सरकार क्यों नहीं बन पाई, इस पर अब हम ज्यादा चर्चा नहीं करते, क्योंकि जो बीत गया, सो बीत गया। अब हम लोकसभा चुनाव पर फोकस कर रहे हैं और चुनाव जीतने की रणनीति बना रहे हैं। पायलट ने भले ही अपनी पार्टी के सत्ता से बाहर होने की वजह अफसरशाही पर भरोसे को बताया है, किंतु यह भाजपा और उसकी सरकार के लिए भी एक सबक है कि यदि उसने भी अफसरशाही पर भरोसा किया और पार्टी कार्यकर्ताओं को तवज्जो नहीं दी तो अगले पांच साल बाद कांग्रेस जैसी स्थिति उसकी भी हो सकती हैl

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