*समाज सुधार व जनजागरण के कार्यों को आगे बढ़ाना होगा*

महर्षि दयानंद सरस्वती ने वेदों के प्रति जो भ्रांतियां पैदा हुई, उन पर प्रहार किया
स्वामी जी ने उद्घोष किया वेदों की और लौटो
-चरित्र पूजा से ही चक्रवती व विश्वगुरु का स्थान प्राप्त हो सकता है
-महर्षि दयानंद सरस्वती के 200वें जयंती वर्ष के अवसर पर प्रबुद्धजन संगोष्ठी में वक्ताओं ने रखे विचार

✍️प्रेम आनन्दकर, अजमेर l
👉डॉ हेडगेवार स्मृति सेवा प्रन्यास, अजमेर एवं श्री माधव स्मृति सेवा प्रन्यास, अजमेर के संयुक्त तत्वावधान में रविवार को सतगुरु इंटरनेशनल स्कूल , पृथ्वीराज नगर , पंचशील नगर के ऑडिटोरियम में प्रबुद्धजन संगोष्ठी आयोजित की गई। प्रन्यास के अध्यक्ष जगदीश राणा ने मुख्यवक्ता एवं शिक्षाविद हनुमानसिंह राठौड़ का स्वागत किया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि परोपकारिणी सभा आर्य समाज के आचार्य सत्यव्रत मुनि ने महर्षि दयानंद सरस्वती के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि स्वामी जी समाज जागरण, मानव जागरण के पुरोधा थे। उनके जीवन के गुण, सत्य को जानने की तीव्र इच्छा, ज्ञान प्राप्ति की उत्कंठता समाज सुधार की दिशा में उनके द्वारा किए गए प्रयास आज भी प्रासंगिक हैं। मुख्यवक्ता हनुमानसिंह राठौड़ ने कहा कि बाल्यकाल में किस प्रकार स्वामी जी के मन में सत्य को जानने की इच्छा हुई, हिमालय में योग साधना द्वारा शिवत्व की खोज से किस प्रकार वे मूलशंकर से दयानंद सरस्वती बने। उन्होंने कहा कि स्वामी जी अपने जीवन में वैभव एवं प्रलोभन को तिलांजलि देकर सत्य की खोज में निकल पड़े। उसी का प्रणाम है कि जब देश गुलामी की दास्तान में जी रहा था, उस दौरान उन्होंने वेदों की पुनः प्रतिष्ठा स्थापित की एवं समाज में फैली कुरीतियों व अंधविश्वास को दूर करने का अथक प्रयास किया।
महर्षि दयानंद सरस्वती द्वारा स्थापित डीएवी संस्थान के योगदान को कोई भूल नहीं सकताl यह सब शिक्षा के क्षेत्र में मिशनरी स्कूलों के दबदबे को कम करने एवं देश की युवा पीढ़ी को ईसाईकरण से बचाने में मील का पत्थर साबित हुए। वेदों में इतिहास ढूंढना हमारी भूल है। राष्ट्र की उत्पत्ति तप से होती है। वर्ष 1875 से 1918 के दौरान देश में 1664 डीएवी स्कूलों की स्थापना की, जिनमें 55 स्कूल अस्पर्श समाज के बच्चों के लिए थे। जिससे उनके बच्चों को भी शिक्षा से वंचित न किया जा सके। ऋषि परंपरा का पराभव होने से समाज का ह्वास हुआ। स्वामी दयानंद सरस्वती ने वेदों के प्रति जो भ्रांतियां पैदा हुई, उससे बाहर निकलने के लिए प्रयत्न किया। “कृणवंतो विश्वमार्यम” का अर्थ है-वेदों के उच्चारण से जीवन जीने वाला श्रेष्ठपुरुषl राठौड़ ने कहा कि स्वामी जी के 200वें जयंती वर्ष पर हमारा कर्त्तव्य है कि हम आज उनके द्वारा शुरू किए गए सामाजिक सुधार एवं जन जागरण के कार्यों को आगे बढ़ाएं। आरएसएस के महानगर संघचालक खाजुलाल चौहान ने धन्यवाद ज्ञापित किया। राष्ट्रगीत वंदे मातरम के गायन के साथ संगोष्ठी का समापन हुआ।

error: Content is protected !!