समानता, न्याय और बंधुता के लिए वोट करें

-बाबूलाल नागा

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 326 एक सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार को निर्वाचित सरकार के सभी स्तरों के चुनावों के आधार के रूप में परिभाषित करता है। सर्वजनीन मताधिकार से तात्पर्य है कि सभी नागरिक जो 18 वर्ष और उससे अधिक उम्र के हैं, उनकी जाति या शिक्षा, धर्म, रंग, प्रजाति और आर्थिक परिस्थितियों के बावजूद वोट देने के लिए स्वतंत्र हैं। भारतीय लोकतंत्र को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहा जाता है। आगामी 18वीं लोकसभा चुनाव के लिए देश में पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल 2024 को है। मतदान एक लोकतांत्रिक देश के लिए एक महत्वपूर्ण और सबसे जरूरी प्रक्रिया है। किसी भी लोकतंत्र की स्थापना मतदान के बिना नहीं हो सकती। जहां लोकतंत्र हैं, वहां मतदान अवश्य होगा। मतदान लोगों को एक अधिकार देता है कि वह अपना प्रतिनिधि चुने या किसी विषय पर अपनी पसंद की राय व्यक्त करें। मतदान लोगों के मौलिक अधिकार से संबंधित है।

लोकतंत्र की नींव मताधिकार पर ही रखी जाती है। नागरिकों द्वारा किए गए मतदान के द्वारा चुने प्रतिनिधियों के माध्यम से ही शासन में जनता की भागीदारी होती है। यह सभी प्रतिनिधि अपनी जनता की समस्याओं, मांगों और उनके हितों का ध्यान रखते है, जिससे नागरिकों में राजनीतिक चेतना जागृत होती है। मताधिकार के कारण ही सरकार और जनता के बीच सामंजस्य उत्पन्न होता है, जिससे शासन व्यवस्था में कार्यकुशलता आती है। वयस्क मताधिकार के कारण ही सरकार को संवैधानिक आधार प्राप्त होता है। मतदान के द्वारा मतदाता सरकार बदलने की शक्ति रखता है। लोकतंत्र में वोट हर मतदाता की ताकत और जिम्मेदारी होती है। लोकतंत्र में वोट डालना वोटरों का कर्तव्य और जिम्मेदारी बनती है। इसलिए लोकसभा 2024 चुनाव में प्रत्येक मतदाता उस अधिकार का प्रयोग करें जोकि समाज, राज्य और देश की भलाई के लिए बहुत जरूरी है। जितना ज्यादा मतदान होगा, हमारा लोकतंत्र भी उतना ही ज्यादा मजबूत होगा। क्योंकि भारत एक लोकतांत्रिक देश है। जहां पर चाहे केंद्र की सरकार और चाहे किसी राज्य की, उसे चुनने का माध्यम एक वोट ही है। इसलिए इस देश में वोट की महत्ता बहुत ज्यादा है। मतदान से ही हम अपने इलाके के लिए अच्छा प्रतिनिधि चुनते हैं। मतदान से ही राज्य में सरकार का गठन होता है। हमारे देश में अपना प्रतिनिधि और अपनी मनचाही सरकार चुनने का यही एक तरीका है। यही हमारे लोकतंत्र की खूबसूरती है। इसलिए प्रत्येक मतदाता को मतदान में जरूर भाग लेना चाहिए। देश के प्रत्येक नागरिक को इसमें भाग लेने का अधिकार और जिम्मेदारी है। हमें मतदान का यह पर्व उत्साह और लगन से मनाना चाहिए।

अब हमें तय करना होगा कि आखिर हमें कैसा देश बनाना है? ऐसा देश जहां नफरत और अन्याय हो या फिर ऐसा देश जहां पर अमन, न्याय और खुशहाली हो। भाईचारे और बराबरी देश बनाने के लिए नफरत की राजनीति को दूर करना होगा। भय और असुरक्षा को मिटाना होगा। जाति-धर्म के बहकावे में या पैसे के लालच में वोट लेने वाले प्रतिनिधि जनता के हितैषी नहीं हो सकते। हमें सोचना होगा कि कहीं हम उन लोगों को तो नहीं चुन रहे जो जनता को बांटते हैं। वोट लेकर पांच साल जनता को पूछते ही नहीं हैं। या वोट लेने के बाद जनता पर अन्याय करते हैं। जो चुनाव के समय ही वोट मांगने आते हैं, क्या वे हमारे मुद्दों को गंभीरता से लेंगे। अपने वोट से हम अपना और देश का भविष्य तय करते हैं।

इस लोकतंत्र में महापर्व में हर मतदाता की हिस्सेदारी और जिम्मेदारी हो। तमाम नागरिक जनता के बीच में जागरूकता फैलाते हुए राजनीतिक पार्टियों की निगरानी करें। लोक राजनीति के लिए और निष्पक्ष, निर्भीक और स्वतंत्र और स्वच्छ चुनाव के लिए आगे आएं। स्वच्छ चुनाव और जनता के मुद्दों पर आधारित राजनीति से ही हमारा असली मताधिकार स्थापित होगा। हम भारत के लोग ये शपथ लें कि ये आम चुनाव संवैधानिक मूल्यों को बचाने, जनता के हकों और हाशिए के समुदायों की जरूरतों को पूरा करने की एक सामूहिक सोच पर आधारित हो। याद रखिए, यह मौका आपको पांच साल बाद मिला है। आपका एक गलत फैसला पांच साल बाद आए इस अवसर को खो देगा। अगर आप सुनहरे कल की कल्पना संजोए बैठे हैं तो अपने वोट का प्रयोग सोच समझकर ही करें। अतः अच्छी तरह ठोक बजाकर ही अपना नेता चुनें। सोचो, फिर सोचो और फिर वोट दो। “सोच समझकर देवणो, घणो कीमती वोट। हांडी परखे लेवण्यों, दे उंगली की चोट।।‘‘ (लेखक स्वतंत्र पत्रकार व टिप्पणीकार हैं) (संपर्क-9829165513)

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