गुरु हमें अमृत्यु के लिए जीना सिखाता है

शिव शर्मा

वे सब लोग जो आज जीवित हैं, एक दिन मर जाएंगें। हम सब हमारी मृत्यु तक ही जीवित हैं। जीवित रहने के दो तरीके हैं – 1. बार-बार जन्मते रहो और मरते रहो 2. केवल इस बार मर कर दोबारा नहीं मरना है। यह दूसरा तरीका गुरु सिखाता है। पुनर्जन्म से बचने की विधि गुरु सिखाता है। जन्म नहीं तो मृत्यु भी नहीं। इसे कहते हैं अमृत्यु के लिए जीवित रहना।

जीवन की चलती हुई श्वास कब, कहां रुक जाएगी, हमें नहीं पता। एक पल में सब कुछ छूट जाता है। जो धन, यश, विद्वता जीवन के ‘पचास साल’ में कमाई, वह मात्र एक ही क्षण में छूट जाती है। सारा संचय यहीं रह जाता है। फिर अगले जन्म में भी ऐसा ही सब कुछ – पढ़ो, काबिल बनो, भोग-स्वाद में ठहरे रहो, जो कुछ अर्जित कर सकते हो वह करते रहो, फिर मर जाओ। हजार बार ऐसा हो चुका है और आगे भी न जाने कितनी बार यही होता रहेगा। यदि हमें हमारे सारे विगत जन्मों की स्मृति हो जाए तो हम चीत्कार करने लगेंगे, पागल हो जाएंगे।
इस जंजाल से छुटकारा जरूरी है। इसका उपाय गुरु बताता है। देखिऐ, यह गुरू गायत्री यही बात कहती है – ओम् गुरूदेवाय विद्महे, गुरू ब्रह्माय धीमहि, तन्नो गुरुः प्रचोदयात्। इसका अर्थ है – हम गुरू के दिव्य स्वरूप को समझें। यह दिव्य रूप परम सत्तावान ब्रह्म जैसा है। वह ब्रह्म विद्या का ज्ञाता है। यही विद्या हमें अमृत्यु की अवस्था प्राप्त कराती है। इसलिए हम गुरुदेव के ब्रह्मरूप को धारण करते हैं और उनसे प्रार्थना करते हैं कि वे हमें इस मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करें। हमें बार-बार की मृत्यु से अमृत्यु तक पहुंचाने वाला ज्ञान उपलब्ध कराएं। कैसे, यह कोई गुरु ही बताएगा।

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