अब प्रशासन घर की ओर आयेगा

वाकई यह सही खबर है। हो सकता है कि आपने अभी तक न सुनी हो लेकिन यह सौलह आने सही खबर है और अगली कड़ी के रूप में इसके अभ्यास के लिए अभी से ही एक राज्य में तो अभियान भी शुरू हो गया है। वैसे आपको पता ही है कि गांवों में जाने से पहले प्रशासन शहरों की तरफ गया था। इसके पहले वह कहां गया था, यह बात उसके भाई कुंभकरण को भी मालूम नहीं है।
शुरू-शुरू में जब राज्य सरकार द्वारा प्रशासन शहर की ओर अभियान चलाया गया था तो प्रशासन के शहर में पहुंचते ही चारों ओर भागदौड़ मच गई। शहर की टूटी फूटी सड़कों पर सरकारी वाहन बेतहाशा इस तरह दौडऩे लगे मानो पेट्रोल डीजल के बढ़ते हुए भावों की खिल्ली उड़ा रहे हों। सरकारी मुलाजिमों और उनके वाहनों के दौडऩे से शहर के सूअरों में अफरा तफरी मच गई। इसके पहले सूअर शहर में फैली गंदगी और कूड़ों के ढ़ेर पर बेधड़क घूमते थे। हालांकि सूअरों की जमात के बड़े बूढ़ों ने उन्हें समझाया कि प्रशासन से घबराने की क्या जरूरत है? अलबत्ता तो प्रशासन पूरे शहर में आ ही नहीं सकता क्योंकि अतिक्रमण करने वालों ने शहर के रास्तों को इतना संकरा कर दिया है कि क्या मजाल जो प्रशासन की सवारी सारे शहर में घूम जाय मगर फिर भी प्रशासन आ ही गया तो नगर निगम गंदगी और कूड़े के ढ़ेर तो हटवायेगा नहीं क्योंकि शहर के डाक्टरों ने इनसे अघोषित समझौता किया हुआ है कि शहर में गंदगी बने रहने देना, जिससे बीमारियां फैलें और हमारी चांदी होती रहे। आप भी मौज करो और हमारी भी कमाई हो यानि तू भी कमा और मैैं भी कमाऊं, तू मेरी मत कहना मैैं तेरी नहीं कहूंगा।
प्रशासन के आगमन से पहले शहर में ढूंढ़ी पिटवा दी गई कि होशियार, खबरदार, बामुलाहिजा बाकायदा प्रशासन शहर की ओर आ रहा है। ढंूढ़ी पीटते समय शहर के कुत्ते उस कर्मचारी पर भौंक भौंक कर मानो उसकी मजाक बना रहे थे। कुछ दिनों बाद आगमन के विषय में नगर में जगह जगह पोस्टर और बैनर इत्यादि भी लगवा दिए गए। फिर प्रशासन के आगमन की तैयारियां चालू हो गईं। प्रशासनिक अधिकारी इंजीनिरिंग एवं तकनिकी विषयों पर भाषण और फैसले देने लगे और कतिपय विभागों के इंजीनियर प्रशासन की बारीकियों का बखान करने लगे। प्रशासन को जहां जहां जाना था, उन चुने हुए स्थानों पर नगर की सड़कें पक्की बना दी गई। फिर प्रशासन उन खास खास सड़कों से गुजरा लेकिन सवारी के गुजरते ही फिर जगह जगह अतिक्रमण, गंदगी के ढ़ेर यानि वही घोड़े वही मैदान वाली कहावत चरितार्थ होने लगी। जलदाय विभाग की टूंटियां एवं हैंडपम्प पहले की तरह फिर सूं सांय करके हवा छोडऩे लगे। कहीं कहीं पानी तीन तीन अथवा चार चार दिनों में आने लगा। इसका नतीजा यह हुआ कि नगर की महिलाओं को जब दूर दूर से पानी लाना पड़ता तो वह विभाग को चिढ़ाने के लिए गाती जाती और पानी लाती रहती, सुसराजी खुदायो कुओं बावड़ी जी। उधर बिजली वालों की मेहरबानी से कबाड़ी बाजार की सारी लालटेनें एवं चिमनियां बिक गईं, उलटा इन चीजों का ब्लैक होने लगा। यह कयावद पूरी होने के बाद प्रशासन गांवों की ओर मुड़ गया अर्थात प्रशासन गांवों की ओर अभियान चला। इसके लिए भी तरह तरह के नारे और कार्यक्रम ईजाद किए गए। मसलन एक नारा था जंगल में ं मंगल। इस नारे को गढऩे वाले की मंशा कुछ भी रही हो, प्रशासन के लोगों ने इसका कुछ और ही मतलब निकाल लिया। वे सपरिवार सरकारी गाडिय़ों में अपने इष्ट-मित्रों को भर भर कर गांवों के आसपास के पिकनिक स्पॉट पर जाकर गोठ गूगरी करने लगे। कुछ लोग तरह-तरह के सोमरस लेकर जंगल में जाकर इष्ट मित्रों के साथ उसका रसास्वादन करने लगे। कुछ लोग एक अन्य कार्यक्रम कैच द मैम यंग से बहुत प्रभावित थे और ललचाई नजरों से अपने आकाओं से आदिवासी इलाकों में जाने की मांग करने लगे, सर, एक चांस हमें भी दीजिए। बताने वाले तो यहां तक बताते हैं कि फिल्म शोले, जिसमें हेमा मालिनी एक गांव में तांगा चलाती है, से प्रेरणा पाकर कई कर्मचारी तो अपने-अपने एमएलए से रामगढ़ की डिजायर तक लिखवा लाए और मिनिस्टर के पास पहुंच गए।
प्रशासन गांवों की ओर को अपनी पार्टी के घोषणापत्र का मुख्य मुद्धा मानते हुए नेताओं में भी कम उत्साह नहीं था। उन्होंने प्रशासन के बड़े-बड़े अधिकारियों को कहा कि गांवों में जाकर लोगों को विश्व शांति, ग्लोबल वार्मिंग, कार्बन उत्सर्जन एवं पर्यावरण के विषय में समझाया जाए, उन्हें पेट्रोल बचत पर लैक्चर पिलाया जाय, पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देने हेतु उन्हें पांच सितारा होटलों का महत्व समझाया जाए।
एक दो गांवों में मंत्री जी भी गए। एक जगह उन्होंने एक झोंपड़ी में खाना भी खाया, जिसकी व्यवस्था अधिकारियों ने पहले से ही पांच सितारा होटल से खाना लाकर कर दी थी। एक गांव में जब मंत्रीजी गए तो उन्हें लगा कि शायद यह गांव तो उन्होंने पहले भी कभी देखा हुआ है। उस गांव वालों ने जब उन्हें पीने के पानी की समस्या के बारे में बताया तो मंत्रीजी नाराज हो गए बोले, हमने जन-जन के हाथ में मोबाइल फोन पहुंचा दिए है और आप लोग अभी तक बिजली-पानी जैसी छोटी-मोटी चीजों को लिए बैठे हैं। एक अन्य गांव की सभा में इस अभियान के बारे में बताते हुए जब मंत्रीजी ने अपने भाषण में यह कहा कि महिलाओं को आगे आना चाहिए तो सभा में बैठी घूंघट निकाले बहुत सी महिलाएं मंच की तरफ आगे सरक गईं और उनके साथ-साथ कई नंगधडंग़ बच्चे भी मंच की तरफ बढ़ गए तो काफी शोरगुल हुआ। वह तो ऐन मौके पर थानेदार साहब ने स्थितिी संभाल ली वरना राम जाने उस रोज क्या होता?
उन्हीं दिनों एक गांव में परिवार नियोजन अभियान के दौरान अति उत्साह देखने में आया। प्रोत्साहन राशि की ललक कहो या कर्मचारियों की सजगता, गांव के लगभग सभी योग्य पुरुषों ने ऑपरेशन करवा लिए। अभियान समाप्ति पर जब कर्मचारी जाने लगे तो गांव के ही दो-तीन नवयुवक आए और अपने ऑपरेशन करने की जिद करने लगे। कर्मचारियों ने उन्हें समझाया कि नियमों में ऐसा होना सम्भव नहीं है क्योंकि आपातकाल में जब ऐसा ही कुछ हो गया था तो कई फंस गए थे, जिनके कोर्ट केसेज की तारीखें अभी भी चल रही हैं, परन्तु फिर भी नौजवान नहीं माने तो कर्मचारियों ने इस जिद का कारण पूछा तो एक नौजवान ने जबाब दिया कि आपने गांव के सभी वयस्क पुरुषों के ऑपरेशन कर दिए हैं। भविष्य में गांव में कभी कुछ उल्टा सीधा हो गया तो गांव वाले और पुलिस हमें ही जिम्मेवार ठहरायेगी, इसलिए हम आपसे ऑपरेशन की कह रहे हैं। प्रौढ़ शिक्षा, साक्षरता आन्दोलन का भी धुंआधार प्रचार किया गया। लोगों का आवहान किया गया कि जो भी इसका फायदा उठाना चाहे वह अपना आवेदन इंगलिश में भरकर तीन प्रतियों में गांव के सरपंच से तसदीक करवा कर विभाग को भिजवा दें। दोनो ही अभियान जब निबट गए तो इस बार ऐलान हुआ कि अब प्रशासन घर की तरफ आयेगा। इससे लोगों में भगदड़ मच गई। कालू हरिजन, जिसके घर में दो चार ठीकरे-बर्तन भी मुश्किल से थे, बहुत घबराया। उसने हरिजन मोहल्ले की चौपाल में चर्चा की कि हमारे घरों में क्या रखा है, जो प्रशासन यहां आ रहा है ? रेलवे खलासी रामदीन को उसके मित्र मंगू रिक्शाचालक ने बताया कि अगर ऐसा हुआ तो वह वापस गांव भाग जायेगा। उधर उद्धा किसान ने रो-रोकर बुरा हाल कर लिया। उसका कहना था कि घर आया प्रशासन राम जाने क्या कर बैठे ? बला और प्रशासन दूर ही रहे तो अच्छा। सरकारी अस्पताल का कम्पाउंडर हरिनारायण इसलिए घबरा गया कि उसके घर में अस्पताल का बहुत सा सामान मसलन पट्टियां, टिंचर, दवाइयां तथा इंजैक्शन इत्यादि पड़े हुए थे। हां, दो नम्बर का धंधा करने वाले इस खबर से बिलकुल नहीं घबराए क्योंकि वे घर आए प्रशासन को वापस लौटाना जानते थे। उधर प्रशासन में बैठे कुछ अफसरों ने प्रशासन घर की ओर का कुछ अलग ही मतलब निकाल लिया। कई अफसर दफ्तर आने की बजाय घर पर ही दफ्तर लगाने लगे। पहले वे कुछ फाइलें ही घर ले जाते थे, अब हाजिरी रजिस्टर भी घर मंगवाने लगे। दफ्तर का एसी, दरियां, पंखे फर्नीचर घर ले आए और अखबारों में विज्ञापन निकलवा दिए कि प्रशासन घर की ओर आ रहा है।
-ई. शिव शंकर गोयल

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