कुम्भ मेला : अन्यत्र दुर्लभ एक नजारा

~लालकृष्ण आडवाणी~ चालीस वर्षों से अधिक समय से मैं संसद में हूं। एक समय था जब मिलने आने वाले लोग कोई न कोई काम कराने के लिए आते थे। उनमें से अधिकांश ऐसे थे जो टेलीफोन कनेक्शन चाहते थे। उनमें से अधिकतर का कहना रहता था कि उनका नाम प्रतीक्षा सूची में वर्षों से दर्ज है, फिर भी निकट भविष्य में उन्हें टेलीफोन कनेक्शन मिलने की संभावना नहीं दिखती।

मोबाइल फोन के आने के बाद स्थिति आमूलचूल बदल चुकी है। आज शायद ही कोई इस काम के लिए आता होगा। भारत में मोबाइल फोन उपभोक्ताओं की संख्या विश्व के किसी भी हिस्से की तुलना में तीव्रता से बढ़ रही है। ऐसा अनुमान प्रकट किया गया था कि सन् 2010 तक देश में मोबाइल फोन उपभोक्ताओं की संख्या 60 करोड़ से ज्यादा थी और इसके अलावा 15 मिलियन नए उपभोक्ताओं की संख्या हर महीने इसमें जुड़ती जा रही है। इंटरनेट उपयोग करने  वालों की संख्या में भी भारी वृध्दि हुई है। सन् 1998 में यह संख्या 1.4 मिलियन थी। आज यह 75 मिलियन से भी ज्यादा है। हार्वर्ड की विद्वान डायना एल एक्क की पुस्तक ‘सेक्रिड जियोग्राफी‘, जिसे पिछले पखवाड़े मैंने उध्दृत किया था, ने भारत को ”कैपिटेल ऑफ दि टेक्नालॉजी रिवोल्यूशन” (प्रौद्योगिकी क्रांति की राजधानी) के रूप में वर्णित किया है।

डायना एक्क की पुस्तक के अंतिम अध्याय का शीर्षक ”ए पिलग्रिम्स इण्डिया टूडे” (एक तीर्थयात्री का वर्तमान भारत) है। इसमें वह लिखती हैं:

इससे हमें आश्चर्यचकित नहीं होना चाहिए कि यातायात और संचार क्षेत्र में क्रांति ने तीर्थयात्रियों की संख्या को बढ़ावा दिया है। आधुनिक प्रौद्योगिकी के प्रवाह के चलते कम होना दूर उल्टे तीर्थयात्रा ने नई उर्जा ग्रहण की है। इंटरनेट, तिरूपति या वैष्णोदेवी की वेबसाइट के माध्यम से कोई पूजा और विशेष दर्शनों हेतु बुकिंग कर सकता है तथा धर्मशाला में अपना आरक्षण भी करा सकता हैं। यदि कोई किसी कारण से यात्रा पर नहीं जा पाए, तो भी वह तिरूपति मंदिर से प्रात: सुप्रभातम् सुन सकता है और ऑनलाइन दर्शन तथा दान हेतु भी सम्पर्क उपलब्ध है। तीर्थयात्री इंटरनेट के माध्यम से हिमालय स्थित चारधाम यात्रा या अनगिनत अन्य तीर्थस्थलों,पहाड़ों पर स्थित बदरीनाथ से लेकर दक्षिण में तमिलनाडू के रामेश्वरम तक के बारे में अच्छा पैकेज पा सकते हैं।”

इस अध्याय में वैष्णो देवी (जम्मू एवं कश्मीर) जाने वाले यात्रियों की संख्या में हुई बढ़ोत्तरी को भी दर्ज किया गया है। डायना कहती हैं कि 1986 में वैष्णो देवी जाने वाले यात्रियों की संख्या 14 लाख थी जबकि सन् 2009 में यह 82 लाख से ऊपर हो गई। गत् तीन वर्षों में, वार्षिक संख्या निश्चित रूप से एक करोड़ पार कर गई होगी!

गत् सप्ताह प्रयाग, जहां गंगा, यमुना और विलुप्त सरस्वती नदियों की त्रिवेणी है, पर दुनियाभर में सबसे बड़े धार्मिक उत्सव कुम्भ की शुरूआत हुई। प्रयाग ही एकमात्र स्थल नहीं है जहां यह विशाल कुंभ मेला लगता हो। कुम्भ का शाब्दिक अर्थ है कलश, और पवित्र कुम्भ मेले का आशय है अमृत से भरे कलश से। यह मेला तीन अन्य स्थानों पर विभिन्न समयों पर आयोजित होता है- हरिद्वार, उज्जैन और नाशिक।

बारह वर्ष पूर्व मैं प्रयागराज कुम्भ गया था। पिछली बार मैं हरिद्वार के कुम्भ मेले में गया था। यह सन् 2010 की बात है जब भाजपा के डा0 रमेश पोखरियाल ‘निशंक‘ मुख्यमंत्री थे। इस मेले में, परमपूज्य दलाई लामा अधिकांश कार्यक्रमों में मेरे साथ थे।

हरिद्वार जाने से पूर्व मैं स्वामी चिदानंदजी के परमार्थ निकेतन, जहां सामान्यतया मैं रूकता हूं, गया था,वहां मुझे मार्क टुली द्वारा कुम्भ मेलों पर लिखित एक उत्कृष्ट लेख पढ़ने को मिला। मार्क टुली अनेक वर्षों तक नई दिल्ली में बी.बी.सी. के ब्यूरो चीफ रहे हैं और आपातकाल के दौरान कांग्रेस सरकार ने उन्हें भारत से बाहर भेज दिया था क्योंकि उन्होंने आपातकाल का सशक्त विरोध किया था। यह उल्लेखनीय है कि सेवानिवृत्ति के बाद मार्क टुली भारत में ही बस गए हैं।

अपने लेख में मार्क टुली ने इस पर खेद प्रकट किया था कि जबकि मीडिया अक्सर कुम्भ के अवसर पर पवित्र गंगा में स्नान करने वाले लाखों की अनुमानित संख्या की बात तो करता है परन्तु वास्तविक संख्या के सही आकलन के लिए सेटेलाइट फोटोग्राफर्स, कम्प्यूटर्स और आधुनिक तकनीक के अन्य उपकरणों का सहारा नहीं लेता।

जब 2010 में, मैं कुम्भ हेतु गया तब मैंने हमारे मुख्यमंत्री डॉ0 पोखरियाल को यह करने के लिए कहा। श्री पोखरियाल ने केन्द्र सरकार के इसरो नेशनल रिमोट सैंसिंग सेन्टर और राज्य सरकार के उत्तराखण्ड स्पेस एप्लीकेशन सेंटर को मिलकर आने वाले तीर्थ यात्रियों की और अधिक विश्वसनीय आकलन संख्या देने को कहा।

उपरोक्त वर्णित दोनों संगठनों ने हाई रिसोल्यूशन इंडियन सेटेलाइट द्वारा और ग्राऊण्ड बेस्ड इन्फोरमेशन का उपयोग करके कुम्भ के प्रमुख शाही स्नान दिवस (14 अप्रैल, 2010) पर स्नान करने वाले तीर्थयात्रियों की अनुमानित संख्या दी जोकि 1 करोड़ 63 लाख 77 हजार और 5 सौ थी! मैं आशा करता हूं कि ये संगठन प्रयागराज के कुम्भ मेले में इस वर्ष भाग लेने वाले लोगों की संख्या का स्वयं ही आकलन करेंगे।
कुम्भ पर मार्क टुली का लेख उनकी पुस्तक ”नो फुल स्टाप््स इन इण्डिया” में से लिया गया था जो कहता है: ”दुनिया में कोई अन्य देश कुंभ मेले जैसा दृश्य नहीं प्रस्तुत कर सकता। यह सर्वाधिक बदनाम भारतीय प्रशासकों की विजय है लेकिन उससे ज्यादा यह भारत के लोगों की विजय है। और अंग्रेजी प्रेस इस विजय पर कैसे प्रतिक्रिया व्यक्त करती है? अपरिहार्य रूप से, तिरस्कार के साथ। देश के सर्वाधिक प्रभावशाली दैनिक द टाइम्स ऑफ इण्डियाने एक लम्बा लेख प्रकाशित किया जिसमें ये वाक्य कई बार दोहराए गए थे ‘अबस्क्युअरिज्म रूल्ड दि रूट्स इन कुम्भ’ (कुम्भ में रूढ़िवाद ने बसेरा डाला), ‘रिलीजियस डॉगमा ओवरब्हेल्म्ड रीज़न एट दी कुम्भ ¼कुंभ में धार्मिक कर्मकाण्ड ने तर्क को पीछे धकेलk ½ और ‘दि कुंभ आफ्टर ऑल रिमेन्ड ए मेअर स्पेक्टेकल विद इट्स मिलियन ह्यूज बट लिटिल सबस्टेन्स’¼कुंभ में लाखों की भीड़ उमड़ी मगर ठोस कुछ नहीं निकला½।”

जब टुली इलाहाबाद जोकि प्रयाग के नाम से भी प्रसिध्द है, गए तो वह एक पूर्व सांसद संत बख्शसिंह के यहां ठहरे। वह एक अन्य कांग्रेसजन श्री वी.पी. सिंह जो प्रधानमंत्री राजीव गांधी के विरूध्द विद्रोह कर बाद में प्रधानमंत्री (1989-90) बने, के भाई थे। धर्म और सेकुलरिज्म के बारे में संत बख्शसिंह से बातचीत करते हुए मार्क टुली ने कहा कि जब इतने लाख लोग कुम्भ मेले में आते हैं, तो क्या कुछ बुध्दिजीवियों की इस आशंका की पुष्टि नहीं होती कि ऐसे धार्मिक मेले हिन्दू कट्टरपन की तरफ ले जाएंगे? संत बख्शसिंह द्वारा इसका दिया गया जवाब न केवल दिलचस्प है अपितु शिक्षाप्रद भी है। मार्क टुली की पुस्तक से मैं यहां उध्दृत कर रहा हूं। ”देखो, तुम अच्छी तरह से जानते हो कि यहां स्नान करने वालों में से अधिकांश जाने के बाद कांग्रेस या मेरे भाई के जनता दल जैसे सेकुलर दलों को वोट करेंगे, तो सेकुलरिज्म को खतरे का सवाल कहां उठता है? वास्तव में, सेकुलरिज्म को लेकर बहस एक पश्चिमी बहस है, क्योंकि आपके देशों में धर्म तर्कों और विज्ञान को प्रतिबंधित करता है। हमारे यहां बहस कभी भी धर्म बनाम अधर्म नहीं रही – यह तो आपके यहां से आई है।”

इस वार्तालाप को उदृत करते हुए मार्क टुली ने ”आक्रमक सेकुलरिज्म” की तीखी आलोचना की और इसे”एक ऐसा व्यर्थ वर्ग जो धार्मिक लोगों के प्रति बड़ा अपराध करता है” निरूपित किया।

LK Advani’s Blog से साभार

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