बर्फ की चादर से निकल कर पहुंचे रेगिस्तान का जहाज देखने

मोहन थानवी

बीकानेर। अंतरराष्ट्रीय ऊंट उत्सव में राजस्थानी, विशेष रूप से मरुनगरी के लोक रंग में देश विदेश से पहुंचे सैलानियों को अपनापन दिखा। लोकवाद्यों ने सुकून दिया। रेत के लहरदार धोरों पर दिन में मुस्कराती धूप और ठंडी रातों में थिरकती चांदनी। फेस्टीवल के आखिरी दिन स्टेडियम में परंपरागत रूप से सजेधजे ऊंट। उमंग-उल्लास और उत्साह से गाते-नाचते लोक कलाकार। इन सब को परम आनंद की अनुभूति से निहारते सैलानियों के झुंड। रेत के समन्दर के बीच बसे बीकाणा का यह रूप ही तो सावन बीकानेर के बाद अब पूस की रात बीकानेर की नव-उक्ति रचने जा रहा है। मरुनगरी बीकानेर। राव बीकाजी का बीकाणा। यहां सावन बिताने प्रवासी तो निश्चित रूप पहुंचते रहे हैं। अब नए आयाम स्थापित कर रहे हैं देश विदेश के पर्यटक। सावन नहीं बल्कि पूस की रात बिताने। जी हां। विगत कुछ वर्ष से यहां पौष मास में अर्थात जनवरी माह में अंतरराष्ट्रीय ऊंट उत्सव (बंउमस मिेजपअंस) आयोजित किया जा रहा है। चांदनी रातों में लाडेरा के चमकते धोरों और नगर के विशाल डा करणी सिंह स्टेडियम में तीन दिवसीय ऊंट उत्सव होता है। इसके प्रति लोकरंगों को साकार होते देखने का शौकीन युवा वर्ग तो आकर्षित हुआ ही है। विदेशी पर्यटक भी बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। बर्फ की चादर से ढकी धरती को देखने के आदी विदेश पर्यटक यहां रेल के टीलों पर दौड़ते ऊंट और उनकी अठखेलियांे का अनुभव प्राप्त कर रोमांचित होते हैं।
यही रोमांच हर वर्ष पर्यटकों की संख्या बढ़ाने में सहायक बनता है। फेस्टीवल में केवल ऊंटों के टोले ही नहीं वरन मरु भूमि का लोक जीवन भी आकर्षित करता है। विदेशी युवतियों के लिए पर्यटन विभाग की ओर से मिस मरवण प्रतियोगिता इस बार विशेष आकर्षण रही। 26  जनवरी 2013 से 28 जनवरी 13 तक के तीन दिवसीय केमल फेस्टीवल के पहले दो दिन नजदीकी गांव लाडेरा के धोरों पर धूम मची। अंतिम दिन सोमवार को स्टेडियम में लोक संगीत और परंपरागत पहरावे में कलाकारों ने रंगारंग प्रस्तुतियों से पर्यटकों को मंत्रमुग्ध किया।
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बर्फानी ओढणी सूं बारै आ पूग्या मरुधरा रौ जहाज देखण नै
बीकानेर।अंतरराष्ट्रीय ऊंट उत्सव मांय राजस्थानी, खास तौर सूं मरुनगरी रा लोक रंग मांय देश विदेश रै पावणां नै आपणोपण दिस्यौ। लोकवाद्यों री ताण सुकून दिरायो। बाळू रा लहरदार धोरां माथै दिन भर मुळकती धूप अ‘र  ठंडी टीर रात्यां मांय इनै सूं बिनै थिरकती चांदनी। फेस्टीवल रौ आखिरी दिन स्टेडियम में परंपरागत रूप सूं सज्योड़ा धज्योड़ा ऊंट। उमंग-उल्लास अ‘र उत्साह सूं गावंता नाचता लोक कलाकार। इण सब रौ हिवड़ै तांईं खुशी भरियोड़ा आनंद सूं निहारता सैलानियों रा झुंड। रेत रै इण समन्दर बिचाळै बस्योड़ो बीकाणे रौ ओ रूप ही तो सावन बीकानेर री लोकोक्ति पछै अबै पूस री रात बीकानेर री नूवीं नकोर-उक्ति रच रैयो है। मरुनगरी बीकानेर। राव बीकाजी रौ बीकाणो। अठै सावन मांय  प्रवासी तो पूगणा तय ही है। अबै नूवां आयाम स्थापित कर रैया है देश विदेश रा सैलानी। सावन नीं पण पूस री रात बितावणनै। हां जी। विगत मंे कुछ बरसां सूं अठै  पौष मास में यानी जनवरी महीने में अंतरराष्ट्रीय ऊंट उत्सव (बंउमस मिेजपअंस) मनायो जावै । चांदनी रात्यां में लाडेरा रा चिमकता धोरां अ‘र शहर रै
विशाल डा करणी सिंह स्टेडियम में तीन दिनां रौ ऊंट उत्सव मनाइजै। इण रै ठोड़ लोकरंगा नै साकार होवता देखण रा शौकीन जवानां रौ वर्ग तो आकरसन में बंध्यो इज है। विदेशी पर्यटक भी खूब पहुंचै।
बर्फ री चादर सूं ढक्योड़ी जमीन नै देखणिया विदेशी पर्यटकां नै अठे रेत रै टीबां माथै भागता दौड़ता ऊंटां रा टोळा अ‘र उणारी कलाबाजियां सूं भरयोड़ा करतब देखणै रौ अनुभव रोमांचित तो करै इ है। ओ इ रोमांच लगोलग सालोसाल पर्यटकों री गिणती बढ़ावण में सैयोग करै। फेस्टीवल मायं फगत ऊंटों रा टोळा इ नीं पण मरु भूमि रै लोक जीवन रौ भी आकरसण है। विदेशी युवतियों खातिर पर्यटन विभाग अबकी साल मिस मरवण होडाहोड राखी जिकी खास आकरसण रैयी।  26  जनवरी 2013 से 28 जनवरी 13 तांई रो तीन दिनां रौ केमल फेस्टीवल पैलीपोत रा दो दिन कन्नै रै गांव लाडेरा रै धोरा माथै धमाल सूं मनायो गयो। आखिरी अंतिम सोमवार नै स्टेडियम में लोक संगीत और परंपरागत पहरावे में कलाकारां री
रंगारंग प्रस्तुतियां सूं पर्यटक मंत्रमुग्ध होया। जय बीकाणा।
-मोहन थानवी 

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