नेताजी बीमार हैं, उन्हें क्या बीमारी है, ये किसी को नही पता है……
बीमार का इलाज अदालत मे हैं या अस्पताल मे, इस मसले पर दोनों
आमने – सामने है | फिलहाल नेताजी बीमार हैं | उन्हें क्या बीमारी है, ये किसी को नही पता
ये वो ही नेताजी हैं | जिन के पास कभी हर बीमारी का इलाज हुआ करता
था और हर इलाज इन्हें बीमारी समझा करता था | वे अपनी बीमारी का इलाज
करवाने अस्पताल जाया करते थे | बस वही एक नर्स के चक्कर मे बीमारी का
एसा दोरा पड़ा की सरकार तक का ब्लड प्रशेर बढ गया था | कुर्सी हिलने लगी थी |
क्यों ना हो …….क्यों कि दोष भी उसी सरकार का था |
जिस के वो मंत्री हुआ करते थे | उन योजनाओं का था | जिनकी कोख से
बीमारियां निकलती है , बीमार निकलते हैं | ऐसी ही एक योजना के तहत
दवाएं फ्री थी | नेताजी ने भोले मन से सोचा जब दवाएं फ्री है , तो
हो सकता है नर्से भी फ्री होंगी |… बस नर्स को फ्री समझने के चक्कर मे वे
पहले अपनी हद से फ्री हुए , फिर पद से , उस के बाद सब कुछ फ्री स्टाइल मे| अस्पताल से अदालत , अदालत से अस्पताल,.. के भंवर मे ऐसे फसे की खुद भंवरी
हो गये | लोग आज भी उन्हें भंवरी वाले नेता के रूप मे पूजते है |
बेचारे नेताजी शतरंज से लेकर सांप सीडी तक के सारे खेल
राजनीति मे अपना चुके थे | पहली बार एक सीडी जो पता नही केसे सांप
बन गयी , और शतरंज की बिसात पे उन्हें मात दे गयी | शुरू -शुरू
में नेताजी ने सीडी के प्रचार – प्रसार को अपनी पार्टी का प्रचार –
प्रसार समझा, बाद मे पता चला की ये पार्टी का प्रचार है और नेताजी का प्रसार .. |
उन्हें पसरने की बीमारी है | वे बीमारी का इलाज अस्पताल मे करवाना
चाहते है | पर अदालत का मानना है कि अस्पताल में नए सीरे से नर्स देखकर
पसर गये तो बीमारी बढ सकती है | बकोल ग़ालिब मर्ज बढता गया ! ज्यो – ज्यो
दवा की|
नेताजी का तर्क है कि इस बार सरकारी नही प्राइवेट अस्पताल
में इलाज ले रहे है | वहां ना नर्स फ्री है , ना दवा ,सब कुछ पेड है | इसलिए बीमार से वैसा खतरा
नही है | सारा पेमेंट पहले होता है | ब्लैकमेल कि कोई गुंजाईश नही
बनती है | वहा नर्स नहीं , पर्स फ्री होता है |
अस्पताल अपने अंदाज मे कह रहा है !…..हमारा क!म बीमार को
बचाना है,बीमारी को नहीं, बीमार से लेना देना है | यानि बीमार दे रहा है ,
हम ले रहे है | इस लेन – देन से बीमार बच रहा है, हम बचा रहे है | अदालत
का मानना है .कि . इस अंदाज में तो इलाज किसी भी जेल में हो सकता है ,
बेहतर होगा क्योंकी वहां लेन – देन का हिसाब – किताब नही रहता
हैं | इसलिए इलाके से बहार की जेल में बीमार का इलाज जरुरी हैं |
क्योंकि बीमार के साथ स्थनीय हमदर्दी नुकसानदेह होती है |
आमने – सामने है | फिलहाल नेताजी बीमार हैं | उन्हें क्या बीमारी है, ये किसी को नही पता
ये वो ही नेताजी हैं | जिन के पास कभी हर बीमारी का इलाज हुआ करता
था और हर इलाज इन्हें बीमारी समझा करता था | वे अपनी बीमारी का इलाज
करवाने अस्पताल जाया करते थे | बस वही एक नर्स के चक्कर मे बीमारी का
एसा दोरा पड़ा की सरकार तक का ब्लड प्रशेर बढ गया था | कुर्सी हिलने लगी थी |
क्यों ना हो …….क्यों कि दोष भी उसी सरकार का था |
जिस के वो मंत्री हुआ करते थे | उन योजनाओं का था | जिनकी कोख से
बीमारियां निकलती है , बीमार निकलते हैं | ऐसी ही एक योजना के तहत
दवाएं फ्री थी | नेताजी ने भोले मन से सोचा जब दवाएं फ्री है , तो
हो सकता है नर्से भी फ्री होंगी |… बस नर्स को फ्री समझने के चक्कर मे वे
पहले अपनी हद से फ्री हुए , फिर पद से , उस के बाद सब कुछ फ्री स्टाइल मे| अस्पताल से अदालत , अदालत से अस्पताल,.. के भंवर मे ऐसे फसे की खुद भंवरी
हो गये | लोग आज भी उन्हें भंवरी वाले नेता के रूप मे पूजते है |
बेचारे नेताजी शतरंज से लेकर सांप सीडी तक के सारे खेल
राजनीति मे अपना चुके थे | पहली बार एक सीडी जो पता नही केसे सांप
बन गयी , और शतरंज की बिसात पे उन्हें मात दे गयी | शुरू -शुरू
में नेताजी ने सीडी के प्रचार – प्रसार को अपनी पार्टी का प्रचार –
प्रसार समझा, बाद मे पता चला की ये पार्टी का प्रचार है और नेताजी का प्रसार .. |
उन्हें पसरने की बीमारी है | वे बीमारी का इलाज अस्पताल मे करवाना
चाहते है | पर अदालत का मानना है कि अस्पताल में नए सीरे से नर्स देखकर
पसर गये तो बीमारी बढ सकती है | बकोल ग़ालिब मर्ज बढता गया ! ज्यो – ज्यो
दवा की|
नेताजी का तर्क है कि इस बार सरकारी नही प्राइवेट अस्पताल
में इलाज ले रहे है | वहां ना नर्स फ्री है , ना दवा ,सब कुछ पेड है | इसलिए बीमार से वैसा खतरा
नही है | सारा पेमेंट पहले होता है | ब्लैकमेल कि कोई गुंजाईश नही
बनती है | वहा नर्स नहीं , पर्स फ्री होता है |
अस्पताल अपने अंदाज मे कह रहा है !…..हमारा क!म बीमार को
बचाना है,बीमारी को नहीं, बीमार से लेना देना है | यानि बीमार दे रहा है ,
हम ले रहे है | इस लेन – देन से बीमार बच रहा है, हम बचा रहे है | अदालत
का मानना है .कि . इस अंदाज में तो इलाज किसी भी जेल में हो सकता है ,
बेहतर होगा क्योंकी वहां लेन – देन का हिसाब – किताब नही रहता
हैं | इसलिए इलाके से बहार की जेल में बीमार का इलाज जरुरी हैं |
क्योंकि बीमार के साथ स्थनीय हमदर्दी नुकसानदेह होती है |
सबके अपने – अपने तर्क है , कारण है …! पर इस बात पर सब एकमत है कि
नेताजी बीमार है…… और उनका इलाज होना चाहिए |