बहुदलीय प्रणाली के कारण खोखला हो रहा है देश

वनिता जैमन
वनिता जैमन

रोज-रोज के घोटालों, भ्रष्टाचार की खबरों, बेतहाशा बढ़ती महंगाई, इस देश के नेता चोर हैं के जुमले, आदि सुन-सुन कर जनता परेशान हो गयी है। समाधान कहीं नजर नहीं आता। सरकार की इच्छाशक्ति भी नजर नहीं आती कि क्यों कि जिन दलों के दम पर वह टिकी हुई है, उनके हितों का ध्यान भी रखना होता, वरना सरकार दूसरे ही दिन धराशायी हो जाए। सरकार की इस कमजोरी का इजहार खुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी कर चुके हैं कि गठबंधन की सरकार की अपनी मजबूरियां होती हैं। हम भी समझते हैं कि गठबंधन की सरकारों में छोटे दल अथवा निर्दलीय किस प्रकार सत्तारूढ़ दल को ब्लैकमेल किया करते हैं। व्यवहार में हम देखते ही हैं कि कोई भी नेता किसी भी बात से नाराज हो कर नई पार्टी का गठन कर लेता है एवं चुनाव जीत कर स्वार्थ के लिए, गलत बातों को मनवाने के लिए, सत्ताधारी पार्टी का समर्थन करता रहता है। ऐसे में सवाल ये उठता है कि गठबंधन की सरकारों के मौजूदा सिलसिले को कैसे समाप्त किया जाए?
जरा गौर करें तो इस व्यवस्था में बदलाव करने में चुनाव आयोग अहम भूमिका निभा सकता है। और आयोग को अधिक अधिकार देने के लिए यदि संविधान में संशोधन करने की जरूरत हो तो वह भी किया जाना चाहिए।
इस सिलसिले में अमेरिका की बात करें। वहां सिर्फ दो ही राजनीतिक पार्टियां हैं। दोनों में प्रतिद्वंद्विता होने के कारण दोनों ही सजग रहती हैं। सत्तारूढ़ दल विपक्ष में दबाव रहता है तो विपक्ष भी विपक्ष की भूमिका ठीक से निभाने को मजबूर होता है। अगर कुछ इस प्रकार की व्यवस्था हमारे देश में भी लागू हो जाए तो काफी हद तक समाधान निकल सकता है।
एक बड़ी समस्या क्षेत्रीय दलों को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता की है। हमारे यहां भाषा, प्रांत, वर्ग आदि के नाम पर अनेकानेक राजनीतिक पार्टियां हैं, जिनका कोई राष्ट्रीय एजेंडा नहीं होता। वे केवल सीमित दायरे के हित ही साधना चाहती हैं। इसके लिए कई बार राष्ट्रीय हितों की भी बली चढ़ा देती हैं। ऐसा भी पाया गया है वे विकास में रोड़े भी अटकाती हैं। इस लिहाज से पार्टियों की अधिकता देश को एक सूत्र में बांधने में बाधक बनी हुई हैं। स्वार्थ की खातिर देश की बेड़ा गर्क कर रही हैं। सच तो ये है कभी सोने की चिडिय़ा कहा जाने वाला हमारा देश आज इस विषमता की वजह से ही कंगाल होता जा रहा है। बेरोजगारी व महंगाई निरंतर बढ़ रही है। बेहतर ये है कि क्षेत्रीय दलों को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता दी ही न जाए।
जानकारी के अनुसार दुनिया में सबसे ज्यादा राजनीतिक पार्टियां 1326 हमारे देश में हैं। इनमें से कई पूरी तरह से निष्क्रिय हैं, मगर उनका रजिस्ट्रेशन हो रखा है और वे पीछे के रास्ते से कई तरह के लाभ हासिल करती रहती हैं। इसके अतिरिक्त नित नई पार्टी का गठन भी एक बड़ी समस्या है। आयोग को चाहिए कि वे रजिस्ट्रेशन के नियम कड़े करे और नई पार्टी के गठन को हतोत्साहित करे।
ऐसा नहीं है कि इस तस्वीर को देश के राजनेता व बुद्धिजीवी नहीं जानते, मगर कभी एकजुट कर प्रयास ही नहीं करते। आज भी वक्त है। हमें चुनाव सुधार करके हालात को काबू में करना चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि आपसी लड़ाई के चक्कर में विदेशी ताकतें हम पर हावी हो जाएं। आज भी कहीं न कहीं हुकूमत तो विदेशी हाथ में है, हम कहने भर को चला रहे हैं।
-वनिता जैमन
(लेखिका अजमेर की भाजपा नेत्री हैं और सामाजिक कार्यों में सक्रिय हैं)

error: Content is protected !!