श्रीलंकाई मुद्दा-सामरिक और राजनैतिक मज़बूरियों के साथ भारत सरकार

केशवराम सिंघल
केशवराम सिंघल

‘श्रीलंकन ‍तमिल’ या ‘सीलोन ‍तमिल’ व्यक्ति ‍तमिल भाषा में ‘ऐलम तमिल’ के रूप में जाने जाते हैं. यह ‍तमिल लोगो का वह् समूह है, जो दक्षिण एशिया के श्रीलंका द्वीप में रहते हैं. श्रीलंका इतिहास के अनुसार ‘श्रीलंकन ‍तमिलों’ का इतिहास बहुत पुराना है और वे वहाँ दो शताब्दी ईसा पूर्व से रह रहे हैं. वर्तमान में अधिकांश श्रीलंकन ‍तमिलों का दावा है कि वे जाफना साम्राज्य के वंशज हैं. जाफना साम्राज्य इस द्वीप के उत्तर में स्थित है. श्रीलंका के उत्तरीय प्रदेश में श्री लंकन ‍तमिलों की बहुलता है, अच्छी संख्या में ये पूर्वी प्रदेश में भी रहते हैं, फिर भी श्रीलंका के बाकी हिस्सों में जनसंख्या के हिसाब से अल्पसंख्यक ही हैं.
श्रीलंका ने ब्रिटेन से 1948 में स्वतंत्रता हासिल की, और तभी से बहुसंख्यक सिंहली और अल्पसंख्यक ऐलम ‍तमिलों के बीच सम्बन्ध तनावपूर्ण रहे हैं श्रीलंकन ‍तमिलों में अधिकांश हिंदु और उल्लेखनीय ईसाई आबादी है. बढ़ते जातीय और राजनैतिक तनाव के साथ 1956, 1958, 1977, 1981 और 1983 में जातीय दंगे और नरसंहार हुए और इन्ही सब के बीच तमिलों के लिए स्वंत्रतता की माँग ज़ोरों से उठने लगी. इसके बाद हुए श्रीलंकाई गृह युद्ध का परिणाम 70,000 लोगों का मारे जाना और हजारों लोगों का लापता होना रहा. वर्तमान में श्रीलंका तमिलों की एक तिहाई आबादी श्रीलंका के बाहर रहने को मजबूर है, जिसमें से अधिकांश गृह युद्ध प्रारंभ होने के बाद लगभग आठ लाख से अधिक तमिलों को भारत, कनाडा, आस्ट्रेलिया और यूरोपीय देशों में रहने को मजबूर होना पडा़ है. 2009 के अन्तिम सप्ताहों में ‍तमिल विद्रोहियों पर सैन्य जीत के फलस्वरूप अलग-अलग अनुमानों के अनुसार लगभग 10,000 से 40,000 मारे गए. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार श्रीलंका सेना और ‍तमिल टाइगर्स ने नागरिकों को मानव-ढाल के रूप में उपयोग किया, इस प्रकार अनेक युद्ध अपराध हुए. लेकिन गृह युद्ध के अंत की स्थिति में भी सुधार नहीं हुया है और प्रेस की स्वंत्रतता अभी भी बहाल नहीं है. श्रीलंकाई ‍तमिल कनाडा और आस्ट्रेलिया देशों में शरण लेने के लिए मजबूर हैं. प्रवासन के लिए अंतरराष्ट्रीय संगठन और आस्ट्रेलिया सरकार ने ‍तमिल शरणार्थियों को आर्थिक प्रवासियों के रूप घोषणा की है. उधर कनाडा ने अपने शरणार्थी प्रणाली कार्यक्रम पर नियंत्रण कठोर कर दिया है.
22 मार्च 2013 को संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकार कौंसिल (यूएनएचआरसी – UNHRC) अमेरिका द्वारा प्रस्तावित श्रीलंकाई सेना द्वारा की गई ज्यादतियो के आरोपो पर मतदान करेंगे.
भारत में भी राजनैतिक माहौल गर्मा गया है, देखना है कि भारत सरकार का रुख क्या रहता है. भारत सरकार को सामरिक और राजनैतिक मज़बूरियों के साथ मानव अधिकारों के संतुलन के लिए उचित निर्णय लेना होगा और यह ध्यान भी रखना होगा कि श्रीलंका से हमारे रिश्ते खराब ना हों. आगे का कार्य बहुत ही महत्वपूर्ण है कि एक ऐसा स्वीकार्य समाधान आम सहमति से तैयार किया जाय, जिसे श्रीलंका सरकार लागू करने के लिए तैयार और सक्षम हो. यह बहुत ही मुश्किल कार्य है. अन्तिम मसौदा जो भी हो भारत सरकार को श्रीलंका की संप्रभुता की पुष्टि के साथ प्रस्ताव के समर्थन में वोट करना होगा, ऐसी संभावना लगती है. देखना है कि आगे क्या होता है.
-केशव राम सिंघल
(लेखक राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर हैं तथा 1975 में श्रीलंका की यात्रा कर चुके हैं.)

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