वीरांगना हो तो ऐसी!

कहते है न कि मूंछें हो तो नत्थूलालजी जैसी वैसे ही अब कहा जाने लगा है कि वीरांगना हो तो मधुरा जैसी. वाह! क्या घुसपैठ की है ? ना किसी खेलकूद की तैयारी में हिस्सा लिया ना किसी सरकारी दल में नाम था, ना ही निर्धारित यूनीफार्म पहनने को मिली, सीधे ही दल में घुसपैठ की- जैसे पिछले वर्षों में बंगलादेषियों ने भारत में की है- और दल का नेतृत्व कर रहे सुषील
कुमार के साथ, आगे आगे, मार्चपास्ट में लोगों का अभिवादन स्वीकार करते हुए निकल गई. दर्षकों का तो यहां तक कहना है कि टीवी कैमरा ज्यादातर उसी पर ही फोकस रहा. वाकई कमाल की कामयाबी है! अब लोगों का तो यहां तक
कयास है कि वह जरा और प्रयास करती और किसी प्रतियोगिता में पदक मिलते समय पोडियम तक पहुंच जाती तो षायद कोई न कोई पदक झटक लाती और इस तरह देष को एक और पदक मिल जाता.
यों भूतकाल में ऑलेम्पिक दल में न केवल केन्द्र और राज्यों के विभिन्न स्तर के सरकारी अधिकारी, नेता और रिटायर्ड पुलीस और आईएएस ऑफीसर, जो खेलकूद संधों पर कब्जा जमायें बैठे है, बल्कि उनके रिष्तेदार और मिलने
जुलनेवालें तक जाते रहे है. इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है जिसके अनुसार हरियाणा के एक बडे नेताजी जो किसी खेल के पदाधिकारी है वह भी वहां गए हैं
राजस्थान के एक नेता सिर्फ इसलिए जाने में कामयाब हुए है कि वह पिछले एक अर्से से जाते रहे है. इतना ही नही झारखंड से तो कई अधिकारी ऑलेम्पिक में गए बताए जिनके लिए वहां के बडे नेता सिबू सोरेन ने आष्चर्य और एतराज प्रकट किया. इनमे से अधिकांष सिर्फ सैर सपाटे के लिए जाते है और यह बात सबको पता है लेकिन इन सबका एक फार्मूला है ‘तू मेरी मत कहना, मैं तेरी नही कहूंगा, तू भी जा मै भी जाउं’.
ऐसे ही कुछ लोग जुगाड करके पदमश्री, पदम विभूषण इत्यादि झटक लेते है तो जब जुगाड करके मधुरा ने अपना कौषल दिखाया है तो उसे भी कोई न कोई पदक तो मिलना ही चाहिए.
-शिवशंकर गोयल
फलेट न. 1201, आईआईटी इंजिनीयर्स
सोसायटी, प्लाट न. 12,सैक्टर न.10,
द्वारका, दिल्ली- 75.मो.9873706333

1 thought on “वीरांगना हो तो ऐसी!”

Comments are closed.

error: Content is protected !!