आईपीएल में मैच फिक्सिंग

रास बिहारी गौड
रास बिहारी गौड

आईपीएल में मैच फिक्सिंग….. खिलाडियो से नैतिकता की उम्मीद ठीक वेसे ही है जेसे किसी कॉल गर्ल से करवाचोथं व्रत की आस लगाना …..ऐसे मैच में कोई खिलाडी बिना मैच फिक्स किये खेले तॊ लगता है जैसे कोई बीयर बार में बैठकर हनुमान चालीसा पढ़ रहा है…
फिक्सिंग की मिक्सिंग का फायदा ये हुआ कि स्पोर्ट्स चैनल के साथ-साथ सारे चैनल खेल को अपने अपने तरीके से खेल रहे हैं …कोई बाल दिखा रहा है…कोई कॉल दिखा रहा है…कोई पोल्लम पोल दिखा रहा है… इस पोल की बहस बड़ी दिलचस्प हो रही है..हर बहस का मसौदा फिक्स है कि सौदा करना रिस्क है …सौदे में नीलामी जायज है और बिकना नाजायज है …नीलामी में बोली लगती है..बिकने में दाम… बस यही गडबडी है….जब आप नीलाम हॊ गए तॊ फिर आपको खुद को बेचने का हक़ नहीं है….दुसरे ही बेचेंगे ….अपनी शर्तो पे बेचेंगे , अपने हुनर से बेचेंगे …अपने टैग अपने ब्रांड के साथ बेचेंगे !
लेकिन हमारे खिलाडी इतना कहाँ समझते है …जब नीलाम हुए थे..तब बड़े खुश थे….लेकिन जब बिकने की बारी आई तॊ ओर खुश हुए सोचा अपनी रीसेल वैल्यू है ..वसूल लो.. बस थोडा खेलना ही तॊ है …इशारे इशारो में खेलनें लग गए…भूल गए कि उन्हें इशारो में नहीं मालिको के हाथो में खेलना है…..
इस तरह खेलना बेईमानी है ..धोखा है, चीटिंग है….किसी खेल में चीटिंग हॊ तॊ मज़ा नहीं आता और चीटिंग भी खिलाडियों के स्तर पर बिलकुल नहीं चलेगी …जब वहां नेता है ,,अभिनेता है ,प्रेनेता है ,जो करेंगे वो करेंगे ….खिलाडी कौन होते है ईटिंग चीटिंग करने वाले….वो खिलाडी है मालिक नहीं …दरअसल मूलत; तॊ वे खिलाडी भी नहीं है क्योंकि असली खिलाडी तॊ उनके मालिक है…वोही खेल खेलते है….भले ही बोल और बल्ले उनके पास नहीं हॊ पर असली शॉट मालिक ही लगाते है ,वो चाहे मैदान में लगे या खिलाडी पर ..वो क्या है क्या नहीं ,पता नहीं …नौकर भी नहीं कह सकते क्योंकि नौकर के पास नौकरी के अलावा कुछ भी करने का विकल्प रहता है …..पालतू भी नहीं होते क्योंकि वहां भी अपनी मर्ज़ी से पूँछ हिलाने को फिक्सिंग का इशारा नहीं समझा जाता ….वो जॊ भी है पर मालिक नहीं है इसलिये उनकी डील फिक्सिंग है और मालिको की डील टूर्नामेंट है
मालिक बड़े लोग है वे खेल भावना से खेलते हैं …जीत के लिये नहीं…जीत कि टुच्ची रकम दस करोड़ रूपए क्या होती है ….वो दस करोड़ न जो सुबह सवेरे किसी चवन्नी छाप नेता को टिप दे देते है…वो दस करोड़ जो शाम को शराब के प्याले में डूबा देते हैं ….उन दस करोड़ के लिये खेलेंगे ….नहीं वे सौ करोड़ लोगो से खेलते हुए हजारो करोड़ का खेल खेलते है…जिनके बल पर चीयर्स लीडर्स बन कर मुन्न्नियाँ खुले मैदान में बदनाम हॊ रही है ,,,मैदान के बहार लगे रहो मुन्ना भाई की दूकान है…और मैदान के मुन्ने डिंग का चिका गा रहे हैं ….ये सारे खेल बाउंड्री के बाहर होते हैं बस वो दिखावटी खिलाडी सीमा के अंदर खेलते हैं …फिक्सिंग करके वो सीमायें तोड़ रहे हैं….भला कोई मालिक कैसे बर्दास्त करेगा …ये मालिक बड़े लोग हैं ..जो सरकारों को निर्देश देते है,,राजनीती को केश देते है…अभिनय को ऐश देते हैं ..बाकि सबको शेष देते हैं यहाँ तक कि इन्होने अंधे क़ानून को वो आँखें दे दी…जिन्होंने बारीक इशारे पकड़ लिये . सिस्टम क बहरे कानो में खिलाडियों की कानाफूसी पहुँच गयी. ओर तो ओर जनता की गूंगी आवाज़ भी उन्हें देखकर चोर चोर चिल्लाने लगी. यह ताकत का कमाल मालिकहै ,मालिक होने का रुतबाहै .
हम नमकहलाल लोग इन आर्थिक आकाओं के एहसान को कभी नहीं भूल सकते. इन्होने ही हमें बताया कि भारत सोने की चिड़िया है और उनके पिंजरे में सुरक्षित है. उनके पिंजरों की हिफाज़त करना हमारा फ़र्ज़ है तभी तो हमें गरीब की रोटी के घोटाले मंज़ूर है पर इन आकाओं के हिस्सों मे कोई अपनी रोटी सेके कतई स्वीकार नहीं है. संसद के भ्रष्टाचार से सड़क के व्यभिचार की मिक्सिंग को भले ही हम अपनी नियति मान ले पर बिके हुए खिलाडियों की फिक्सिंग को हम सदा अति मानते है. एक जमाना था जब बिकने पर खिलाडियों को शर्म आती थी. हमें याद है साउथ अफ्रीका के हेंसी क्रोन्ये और भारत के अजहरुद्दीन बिकते हुए पकडे गए थे परिणाम हेंसी ने शर्म से आत्महत्या कर ली और अजहरुद्दीन ने आत्मा की हत्या कर ली यानी कि सांसद बन गए आजतक बने हुए है. अब आत्म और आत्मा दोनों नदारद है केवल हत्या ही हत्या है चाहे खिलाडी की हो या खेल की और हत्या का ही परिणाम है की फिक्सिंग में खून की मिक्सिंग हो रही है
-रासबिहारी गौड

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