राजस्थान में काँग्रेस की हालत दयनीय

शेष नारायण सिंह, लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं। वह इतिहास के वैज्ञानिक विश्लेषण के एक्सपर्ट हैं। नये पत्रकार उन्हें पढ़ते हुये बहुत कुछ सीख सकते हैं।
शेष नारायण सिंह, लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं। वह इतिहास के वैज्ञानिक विश्लेषण के एक्सपर्ट हैं। नये पत्रकार उन्हें पढ़ते हुये बहुत कुछ सीख सकते हैं।

-शेष नारायण सिंह- लोकसभा चुनाव 2014 की तैयारियाँ हर पार्टी शुरू कर चुकी है। काँग्रेस ने कर्नाटक में भाजपा को हराकर एक ज़बरदस्त संकेत दिया है। छत्तीसगढ़ में काँग्रेसी नेताओं पर हुये माओवादी हमले के बाद दो और राज्यों में भी भाजपा की हालत डावाँडोल हो चुकी है। मुख्यमन्त्री रमन सिंह के राज्य में कानून-व्यवस्था की हालत बहुत ही दयनीय मुकाम पर पायी जा रही है जबकि भाजपा सुशासन और सुराज के नारे के बल पर केन्द्र की सत्ता में वापसी चाहती है। मध्य प्रदेश में भी लाल कृष्ण आडवानी ने मुख्यमन्त्री की तारीफ़ के पुल बाँधने के प्रोजेक्ट पर काम शुरू कर दिया है लेकिन वहाँ भाजपा के कई बड़े नेता राज्य के मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह चौहान को पैदल करने में चक्कर में भाजपा को ही झटका देने पर आमादा हैं। हाँ, राजस्थान में भाजपा की हालत मज़बूत बतायी जा रही है। मिजोरम और दिल्ली के अलावा इन तीनों राज्यों में भी विधानसभा चुनाव 2013 में होंगे और 2014 के पहले जो माहौल बनने वाला है उसमें इनके नतीजों की भारी भूमिका होगी। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनावों पर बस्तर में हुये काँग्रेसी नेताओं के संहार का असर ज़रूर पड़ेगा। सुरक्षा की खामी उसमें मुख्य मुद्दा है। यह अलग बात है कि भाजपा वाले उस नरसंहार की जिम्मेदारी काँग्रेस की आपसी सिरफुटव्वल पर मढ़ने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। इसी योजना के तहत कुछ वफादार टीवी चैनलों पर खबर भी चलवा दी गयी लेकिन राजनीतिक हलकों में यह बात हँसी में टाल दी गयी, किसी ने भी इन बातों पर विश्वास नहीं किया। अभी तक स्थिति यह है कि भाजपा में सुकमा के जंगलों में हुये हत्याकाण्ड में सरकारी असफलता की बात को काटने में नाकामयाब रही है। हालाँकि छत्तीसगढ़ में मुख्यमन्त्री रमन सिंह की अपनी पार्टी के अन्दर उनको चुनौती देने वाले भाजपा नेता नहीं है लेकिन उनको काँग्रेस और अपनी नाकामयाबी की ज़बरदस्त चुनौती मिल रही है।

राजस्थान में भी सत्ताधारी पार्टी की नाकामयाबियाँ विधानसभा चुनाव का मुद्दा बन चुकी हैं। मुख्यमन्त्री अशोक गहलोत की असफलता गिनाने के लिये भाजपा नेता और पूर्व मुख्यमन्त्री वसुंधरा राजे निकल पड़ी हैं। जहाँ भी जा रही हैं जनता उनका स्वागत कर रही है। वसुंधरा राजे को उनकी पार्टी के अध्यक्ष राजनाथ सिंह का पूरा समर्थन हासिल है, हालाँकि इसके पहले भारी नाराजगी थी। जाति के गणित में भी वे जाटों और राजपूतों में अपनी नेता के रूप में पहचानी जा रही हैं। राजनाथ सिंह के कारण पूरे उत्तर भारत में राजपूतों का झुकाव भाजपा की तरफ है उसका फायदा भी उनको मिल रहा है। जाटों की राजनीति का अजीब हिसाब है। काँग्रेस ने जाटों को साथ लेने के लिये उसी बिरादरी का अध्यक्ष बना दिया है लेकिन उनकी वजह से काँग्रेस की  तरफ उनकी जाति का वोट नहीं

जा रहा है। बल्कि उससे काँग्रेस को नुकसान ही हो रहा है। परम्परागत रूप से भाजपा के मतदाता रहने वाले जाटों को राज्य काँग्रेस के लगभग सभी महत्वपूर्ण पदों पर बैठा दिये जाने के बाद राज्य के राजपूत नेताओं में भारी नाराज़गी है। मुख्यमन्त्री अशोक गहलोत की राजनीति इस तरह से डिजाइन की गयी है जिससे राज्य में काँग्रेस की हार को सुनिश्चित किया जा सके। दिल्ली में ज़्यादातर काँग्रेस नेता यह मानकर चल रहे हैं कि अशोक गहलोत अकेले ही चलना चाहते हैं क्योंकि उन्होंने अपनी पार्टी के ज़्यादातर केन्द्रीय मन्त्रियों को नाराज कर रखा है। अशोक गहलोत ने ऐसा माहौल बना रखा कि केन्द्रीय मन्त्री सी पी जोशी,सचिन पाइलट, भंवर जीतेंद्र सिंह और लाल सिंह कटारिया उनको पूरा समर्थन नहीं दे रहे हैं। महिपाल मदेरणाज्योति मिर्धा और शीशराम ओला भी उनसे नाराज़ बताये जा रहे हैं। जब पूछा गया कि अगर राज्य के सभी केन्द्रीय नेता उनसे नाराज़ हैं तो वे चल क्यों रहे हैं। जवाब मिला कि मुख्यमन्त्री ने पता नहीं क्या कर रखा है कि दस जनपथ का उन्हें पूरा समर्थन मिल रहा है। इस सूचना के मिलते ही काँग्रेस अध्यक्ष के रिश्तेदारों के व्यापारिक कारोबार पर बरबस ही ध्यान चला जाता है और अशोक गहलोत की कुर्सी की स्थिरता की पहेली समझ में आने लगती है। जहाँ तक रिश्तेदारों की बात है मुख्यमन्त्री ने अपने रिश्तेदारों को भी सत्ता से मिलने वाले लाभ को पहुँचाने में संकोच नहीं किया है। जयपुर के स्टेच्यू सर्किल के एक ज़मीन का ज़िक्र बार बार उठ जाता है जहाँ बन रहे फ्लैटों की कीमत आठ करोड़ रूपये से ज्यादा बतायी जा रही है और खबर यह है कि गहलोत जी के बहुत करीबी लोग उसमें लाभार्थी हैं। एक नेता जी ने तो यहाँ तक कह दिया कि जिस कम्पनी की संस्थागत ज़मीन का लैंड यूज बदल कर इतनी महँगी प्रापर्टी बना दिया गया है उसमें मुख्यमन्त्री का बेटा ही डायरेक्टर है। पत्थर की खदानों का घोटाला भी राजस्थान के मुख्यमन्त्री के नाम पर दर्ज है। उस घोटाले को तो टी वी चैनलों ने भी उजागर किया था। बताते हैं कि इस घोटाले में 21 खानें आवंटित की गयी थीं जिनमें से 18 मुख्यमन्त्री जी के क़रीबी लोगो और रिश्तेदारों को दे दी गयी थीं।

राजस्थान में काँग्रेस की मुश्किलें बहुजन समाज पार्टी भी बढ़ाने वाली है क्योंकि राज्य के कुछ क्षेत्रों में उसकी प्रभावशाली उपस्थिति है। पिछले चुनाव में छह सीटें जीतने वाली बहुजन समाज पार्टी इस बार दस का टारगेट लेकर चल रही है। बसपा को मिलने वाला हर वोट काँग्रेस का सम्भावित वोट माना जाता है इसलिये बसपा भी काँग्रेस को नुक्सान पहुँचायेगी। इस चुनाव में वसुन्धरा राजे संचार के आधुनिक तरीकों का भी पूरा इस्तेमाल कर रही हैं जबकि मुख्यमन्त्री उस मैदान में भी पीछे हैं, किसी शुभचिंतक ने उनका ट्विटर एकाउंट खोल दिया था। लेकिन उसमें वही दर्ज़न भर ट्वीट हैं जो जिस दिन खाता बनाया गया था उस दिन ट्रायल के तौर पर दर्ज किया गया था जबकि वसुंधरा राजे के फॉलोवर बीस हज़ार से ज्यादा हैं, हालाँकि चुनावों में इन चोचलों से कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन अपनी यात्रा के दौरान आने वाली भीड़ को देख कर अशोक गहलोत तो निराश हो ही रहे हैं, उनके साथ जाने वाले केन्द्रीय नेता भी बहुत खुश नहीं हैं। उधर वसुंधरा राजे ने ऐसा माहौल बना दिया है कि उनकी सभाओं में जाना और उनको सुनना अब राजस्थानी अवाम के लिये एक ज़रूरी काम माना जाने लगा है। ऐसी स्थिति में लगता है कि राजस्थान में काँग्रेस को पैदल होना पड़ेगा। यह अलग बात है कि छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में अच्छा प्रदर्शन करके काँग्रेस 2014 के लिये अपने कार्यकर्ताओं के हौसले बढ़ाने में कामयाब हो जायेगी। कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में यह कारनामा पहले ही अंजाम दिया जा चुका है

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