सूचना आयोग के फैसले के खिलाफ अधिकतर राजनैतिक दल

केशव राम सिंघल
केशव राम सिंघल

मैंने अपने लेख ‘सूचना के अधिकार के अंतर्गत छ: राजनैतिक दल’ (https://ajmernama.com/guest-writer/81819/)में इस बात पर प्रसन्नता जाहिर की थी कि छ: राजनैतिक दलों को सूचना के अधिकार के अंतर्गत शामिल किया गया है और आशा की थी कि सरकार ऐसा कानून बनाती जिसके तहत सभी राजनैतिक दलों को चन्दे की राशि और आय-व्यय का लेखा-जोखा सार्वजनिक करने का कानून होता. पर अधिकतर राजनैतिक दलों को यह मान्य नहीं है कि वे पारदर्शिता बरतें. इसलिए ही तमाम राजनैतिक दल राजनैतिक दलों को सूचना के अधिकार के तहत लाने के सूचना आयोग के फैसले के खिलाफ एकजुट हो गए हैं। कांग्रेस, बीजेपी और सीपीएम ने खुलकर इस फैसले का विरोध किया है। केंद्रीय सूचना आयोग ने सोमवार को राजनीतिक दलों को सूचना के अधिकार कानून के तहत लाने का आदेश दिया था। कांग्रेस पार्टी के अनुसार राजनैतिक दल सरकारी संस्था नहीं है जो उस पर सूचना के अधिकार का शिकंजा कसा जाए। काँग्रेस पार्टी के मुख्य प्रवक्ता ने कहा कि मुख्य सूचना आयुक्त ने जो कुछ तय किया है उसके बारे में विचार करने से पहले ये सोचना चाहिए कि जितनी भी संस्थाएं हैं वो कानून से पैदा हुई हैं। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस इस निर्णय से पूरी तरह असहमत है और वे इसका समर्थन नहीं कर सकते।

भाजपा ने संवैधानिक संकट बता इस मुद्दे पर सर्वदलीय बैठक बुलाने की मांग की है। जेडीयू और सीपीएम भी आयोग के फैसले के खिलाफ हैं। सीपीआई को चंदे को सूचना के अधिकार के तहत लाने पर तो आपत्ति नहीं है लेकिन पार्टियों पर नकेल कसने के सीपीआई भी खिलाफ है। सोमवार को ही केंद्रीय सूचना आयोग ने राजनीतिक दलों को सूचना के अधिकार कानून के तहत लाने का अहम फैसला सुनाया था। फैसले के मुताबिक राजनीतिक दलों को बताना होगा कि उन्हें चंदा कौन दे रहा है। चंदे की रकम कितनी है। चंदे में मिली रकम का कहां और कैसे इस्तेमाल किया गया। साथ ही राजनीतिक दलों को अपने सारे खर्चों का ब्यौरा भी देना होगा। सूचना आयोग के फैसले के बाद राजनीतिक दलों में खलबली है क्योंकि सभी राजनैतिक दल और उनके नेताओं की कमाई और खर्च पर हमेशा सवाल उठते रहे हैं। ऐसा पता चला है कि सभी राजनैतिक दलों की एकजुटता को देखते हुए सरकार सूचना आयोग के फैसले के खिलाफ कोर्ट में जाने के बजाए संसद में ही इसका तोड़ खोजने पर विचार कर रही है, ताकि कोर्ट-कचहरी का झंझट ही ना रहे। इन सब बातों से एक बात बिलकुल साफ़ है कि राजनैतिक दलों में इतनी तिलमिलाहट इसलिए ही दिख रही है कि चन्दे का हिसाब देने से जनता बहुत कुछ जान जायेगी और वे नहीं चाहते कि आम आदमी उनके बारे में अधिक जान पाए.

– केशव राम सिंघल

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