वास्‍तु से बना अंडरवाटर टैंक लाता है समृद्धि

नरेश सिंगल
नरेश सिंगल

-नरेश सिंगल- लिविंग रूम, बेडरूम, बॉलकनी और डाइनिंग रूम आदि की तरह भवन में जल स्रोत का भी विशेष महत्‍व होता है। जल संग्रह के लिए ओवरहेड वाटर टैंक अथवा अंडर वाटर टैंक का निर्माण किया जाता है। वाटर टैंक का निर्माण किस दिशा में किया जाए, इसका ज्ञान होना अत्‍यंत आवश्‍यक है। वास्‍तु के अनुरूप अंटरवाटर टैंक कहां होना चाहिए, आइए जानते हैं।जल स्रोत के लिए चाहे आप बोरवैल का निर्माण करें,  कुएं का अथवा किसी अन्य रूप में भूमिगत जलाशय का,  इस कार्य हेतु सबसे उचित दिशा उत्तर-पूर्व है। उत्तर-पूर्व में जलाश्य का निर्माण करने से गृह स्वामियों को समृद्धि मिलती है। उत्तर-पूर्वी भाग अन्य दिशाओं की अपेक्षा हल्का माना गया है। वास्तु कहता है कि इस भाग को खुला एवं हवादार रखना चाहिए। इस दृष्टिाकोण से भी उत्तर-पूर्व में भूमिगत जलाशय का निर्माण उचित है। इसका वैज्ञानिक आधार भी है। सुबह के सूर्य की किरणें जलाशय में उत्पन्न होने वाले सूक्ष्म जीवाणुओं को समाप्त कर देती हैं।

अगर उत्तर-पूर्वी भाग में जलाशय बनाना संभव न हो तो इसे भूखंड के उत्तर या पूर्वी भाग में बनाया जा सकता है। परंतु इसे दक्षिण, दक्षिण-पूर्व, दक्षिण-पश्चिम या उत्तर-पश्चिम भाग में नहीं बनाना चाहिए। दक्षिणी भाग में भूमिगत जलाशय होना घर की स्त्रियों पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। वहीं पश्चिमी भाग में होने से परिवार के पुरुष सदस्यों का स्वास्थ्य खराब रहेगा एवं आर्थिक संकट उत्पन्न होगा। दक्षिण-पूर्व या दक्षिण-पद्गिचम में होने से महिलाओं को स्वास्थ्य, मान-सम्मान या अन्य किसी प्रकार की हानि हो सकती है। यही नहीं, इससे पुरुष सदस्यों को जानलेवा बीमारी तक हो सकती है। दक्षिण व दक्षिण-पश्चिम एवं उत्तर-पश्चिम में दीवारों का निर्माण संध्या के सूर्य की किरणों को घर में पड़ने से रोकने के लिए किया जाता है। अगर इनमें से किसी भाग में बोरवैल अथवा कुआं बनाया जाता है,  तो वहां उसके रख-रखाव व मरम्मत के लिए बहुत ही कम स्थान शेष रह जाता है। इस व्यवहारिक दृष्टिाकेण से भी उक्त स्थानों पर जलाशय निर्माण उचित नहीं माना जाता।

भूखंड के एकदम मध्य में जलाशय निर्माण नहीं किया जाना चाहिए। ऐसे वास्तु-विन्यास के आधार पर भवन की संरचना करना दुषकर कार्य होता है। इसके लिए विशाल भूखंड की आवश्‍यकता होती है। चारदीवारी के एकदम निकट भी जलाशय का निर्माण नहीं किया जाना चाहिए। ऐसा करने से चारदीवारी की नीवं कमजोर तो होती ही है, यह स्थिति गृह-स्वामी के लिए दुर्भाग्य को न्यौता देती है।

भूमिगत जलाशय के लिए खुदाई कार्य कब आरंभ करें, यह प्रश्न भी अति-महत्वपूर्ण है। इसके लिए कुशल ज्योतिषी के परामर्श पर शुभ समय का चुनाव करना चाहिए। खुदाई से पूर्व भूमि-पूजा करें। सूर्य उदय के बाद ३ घंटों के भीतर खुदाई आरंभ करनी चाहिए। संध्या समय जलाशय की खुदाई नहीं की जानी चाहिए। शायद इसका एक कारण यह है कि प्राचीन समय में बिजली की व्यवस्था न होने से भूमिगत खुदाई करना कठिन कार्य था। खुदाई कार्य दिन में ही किया जाना श्रेयस्कर है। जहां तक संभव हो, इसे रात्रि के समय न करें। किसी मनुष्य अथवा जीव की कुएं में मृत्यु होना अशुभ होता है। यदि ऐसा हो तो सारा जल निकलवा देना चाहिए। इसके बाद जलाशय शुद्धी के लिए आवश्‍यक धार्मिक अनुष्ठान करवाना चाहिए। इस बात का भी ध्यान रखा जाए कि जलाशय आधार से ही गोलाकार हो।

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