जापान की जमीन से मोदी ने दिया चीन को ‘संदेश’

modi japanतोक्यो / प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जापान के साथ द्विपक्षीय संबंधों को नई ऊंचाई पर ले जाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं। इसके लिए वह वहां के कारोबारियों के लिए भारत में निवेश का बेहतर माहौल तैयार करने का वादा कर रहे हैं। जापान के पांच दिनों के दौरे पर गए प्रधानमंत्री ने वहां के कारोबारियों को संबोधित करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री कार्यालय में जापानियों को निवेश में मदद के लिए एक विशेष टीम ‘जापान प्लस’ गठित की जाएगी। उन्होंने चीन का नाम लिए बिना ’21वीं सदी के एशिया’ के लिए भारत और जापान को स्वाभाविक साझेदार बताकर इशारों-इशारों में अपनी मंशा भी जता दी।
सोमवार को तोक्यो में जापान चैंबर ऑफ कॉमर्स में हिन्दी में दिए अपने भाषण में कहा कि 21 वीं सदी एशिया की होगी यह तो सभी मानते हैं, लेकिन यह सदी कैसी होगी यह भारत और जापान के संबंधों पर निर्भर करता है। उन्होंने कहा, ‘दुनिया दो धाराओं में बंटी है, एक विस्तारवाद की धारा है और दूसरी विकासवास की धारा है। हमें तय करना है कि विश्व को विस्तारवाद के चंगुल में फंसने देना है या विकासवाद के मार्ग पर जाने के लिए अवसर पैदा करना है। इन दिनों 18वीं सदी का विस्तारवाद नजर आता है, कहीं किसी के समंदर में घुस जाना, कहीं किसी की सीमा में घुस जाना। 21वीं सदी में शांति और प्रगति के लिए भारत और जापान की बड़ी ज़िम्मेदारी है।’ माना जा रहा है कि मोदी के इस बयान का निशाना चीन था क्योंकि भारत और जापान दोनों के चीन के साथ सीमा विवाद हैं। चीन और जापान के बीच पूर्वी चीन सागर में कुछ द्वीपों को लेकर विवाद चल रहा है। जापान में इन द्वीपों को सेनकाकू के नाम से जाना जाता है, जबकि चीन के लोग इसे तियाओयू के नाम से जानते हैं। भारत में भी लद्दाख के क्षेत्र में चीन के सैनिक आए दिन घुसपैठ करते रहते हैं। पूरे अरुणाचल प्रदेश पर चीन अपना दावा जताता है। दक्षिणी चीन सागर में भी भारत और चीन के हित आपस में टकरा रहे हैं। इसके अलावा ब्रह्मपुत्र पर बांध, अक्साई चीन, पाक अधिकृत कश्मीर और गिलगित में चीनी की लगातार तेज होतीं गतिविधियां भी दोनों देशों के बीच विवाद के कारण हैं।
प्रधानमंत्री ने जापानी निवेशकों को आमंत्रित करते हुए बेहतर निवेश माहौल और तुरंत फैसले होने का वादा किया। कारोबारियों से रू-ब-रू मोदी ने अपने भाषण की शुरुआत में कहा, ‘गुजराती होने के नाते व्यवसाय मेरे खून में है। इसलिए मेरे लिए इसे समझना आसान है। कारोबारियों को काम करने के लिए अच्छा माहौल चाहिए और यह उपलब्ध कराना सिस्टम और शासन की ज़िम्मेदारी है। हम इसी के लिए काम कर रहे हैं।’ उन्होंने कहा, ‘भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए पिछला एक दशक कठिनाई में गुज़रा है, लेकिन अब पहली ही तिमाही में 5.7% की विकास दर के साथ हमने जंप लगाया है। इससे विश्वास पैदा हुआ है। नियम और कानूनों को बदले जा रहे हैं, जिनके परिणाम निकट भविष्य में दिखने लगेंगे।’
मोदी ने कहा, ‘भारत और जापान की जिम्मेदारी द्विपक्षीय संबंधों से भी आगे जाकर है। भारतीय और जापानी कारोबारी दुनिया की अर्थव्यवस्था को दिशा दे सकते हैं।’ उन्होंने कहा कि हम स्किल डिवलेपमेंट और रिसर्च में जापान से मदद लेना चाहते हैं। हम सरकार के काम में तकनीक और ‘क्लीन एनर्जी’ के इस्तेमाल को बढ़ाना चाहते हैं, जिसमें जापान हमारी मदद कर सकता है। इस मौके पर मोदी ने प्रधानमंत्री कार्यालय के तहत ‘जापान प्लस’ टीम बनाने का ऐलान भी किया, जो भारत में जापानी निवेश को आसान बनाने की दिशा में काम करेगी।
इससे पहले मोदी जापान की शिक्षा प्रणाली को समझने के लिए एक ‘छात्र’ के तौर पर 136 साल पुराने स्कूल गए ताकि ऐसी ही प्रणाली अपने देश में भी लागू की जा सके। प्रधानमंत्री ने भारत में जापानी भाषा पढ़ाने के लिए यहां के शिक्षकों को आमंत्रित किया और 21 वीं सदी को सही मायने में एशिया की सदी बनाने के उद्देश्य से एशियाई देशों में भाषाओं तथा सामाजिक मूल्यों के लिए सहयोग को आगे बढ़ाने की अपनी वकालत के बीच ऑनलाइन पाठ्यक्रमों का प्रस्ताव भी दिया।
मोदी ने तेइमेई प्राइमरी स्कूल में कहा, ‘यहां आने का मेरा इरादा यह समझना है कि आधुनिकीकरण, नैतिक शिक्षा और अनुशासन जापान की शिक्षा प्रणाली में किस प्रकार एकाकार हुए हैं। मैं 136 साल पुराने स्कूल में सबसे उम्रदराज छात्र के तौर पर आया हूं।’ प्रधानमंत्री को उप शिक्षा मंत्री माएकावा केहाई ने जापान की शिक्षा प्रणाली, खास कर सरकार संचालित प्रणाली और कामों के बारे में विस्तार से बताया। मोदी ने कुछ सवाल पूछे जैसे सिलेबस कैसे तैयार किया जाता है, क्या अगली क्लास में प्रमोट करने के लिए परीक्षा एकमात्र मानदंड है, क्या छात्रों को सजा दी जाती है और उन्हें नैतिक शिक्षा कैसे दी जाती है?
मोदी ने स्कूल के दौरे के दौरान कहा, ‘अब मैं ज्ञानवान महसूस कर रहा हूं।’ उन्होंने कहा, ‘पूरी दुनिया जानती है कि 21 वीं सदी एशिया की होगी। इसे वास्तविकता में बदलने के लिए एशियाई देशों को भाषाओं और सामाजिक मूल्यों की दिशा में सहयोग बढ़ाना चाहिए। इससे पूरी मानवता की सेवा होनी चाहिए।’ मोदी ने कहा कि सीबीएसई ने भारत में जापानी भाषा के पाठ्यक्रमों की शुरुआत की है लेकिन देश में दक्ष जापानी टीचरों की कमी है। उन्होंने जापानी टीचरों को भारत में पढ़ाने के लिए आमंत्रित किया।

error: Content is protected !!