न्यूयॉर्क पुलिस के गुप्तचर विभाग के प्रमुख का कहना है कि शहर में मुसलमानों पर कई वर्षों से खुफ़िया तौर पर निगरानी रखने के बावजूद पुलिस को आतंकवाद से संबंधित कोई सुराग हाथ नहीं लगा.
पुलिस विभाग की ख़ुफ़िया शाखा के मुखिया टोमस गलाती न्यूयॉर्क की एक अदालत के समक्ष कामकाज से संबंधित सुधारों के एक मामले में गवाह के रूप में पेश हुए थे. और एक गवाह के तौर पर उन्होंने हलफ़िया बयान में मुसलमानों पर खुफ़िया निगरानी रखने के सिलसिले में व्यापक चर्चा के दौरान यह बयान दिया.
ये पहली बार है कि शहर के पुलिस विभाग के किसी उच्च अधिकारी ने ये माना है कि न्यूयॉर्क पुलिस के डेमोग्रैफ़िक्स यूनिट नाम के विशेष गुप्तचर विभाग के जासूसों द्वारा मुसलमानों पर बड़े पैमाने पर नजर रखी जाती रही है और ये भी कि इस तरह की जासूसी के बावजूद किसी आतंकवादी गतिविधि के बारे में कोई सुराग हाथ न लगा.
पाकिस्तानियों पर नज़र?
गुप्तचर विभाग के मुखिया टोमस गलाती ने अपने बयान में कहा,”मैंने डेमोग्रैफ़िक्स यूनिट के तहत कार्रवाई के बाद खुफ़िया रिपोर्टों से कोई ऐसा मामला शुरु होते नहीं देखा जिसका संबंध आतंकवाद से हो. मैं इस खुफ़िया सेल का 2006 से मुखिया हूं और अभी तक हमें ऐसे सुराग नहीं मिले.”
लेकिन फिर भी गलाती का कहना था कि खुफ़िया निगरानी ज़रूरी है और इससे सुराग मिलने की संभावना तो बनी ही रहती है.
पिछले छह साल से ज़्यादा से न्यूयॉर्क के मुसलमानों की खुफ़िया निगरानी की जाती रही है. जिसके तहत उनकी मस्जिदों, रेस्तरां, इस्लामिक केंद्र और दुकानों की व्यापक निगरानी की जाती है.
गलाती ने अपने बयान में बताया कि इस कार्यक्रम के तहत खासकर उर्दू बोलने वाले और पाकिस्तानी मूल के लोगों की खास निगरानी की जाती है. और मुस्लिम समुदाय में उर्दू बोलने वाले जासूस ही खासतौर पर छोड़े जाते हैं.
अपने बयान में गलाती कहते हैं,”जब मैं किसी व्यक्ति को उर्दू बोलते देखता हूं या वह व्यक्ति पाकिस्तानी मूल का हो तो मुझे बहुत उत्सुक्ता होती है उसके बारे में अधिक जानकारी हासिल करने के लिए मैं ऐसे लोगों की गहन खुफ़िया निगरानी का हुक्म देता हूं.”
एतराज़
गलाती ने कहा कि उर्दू बोलने वाले और पाकिस्तानी मूल के लोगों की विभिन्न विषयों पर बातचीत को भी सादे लिबास वाले जासूस अपनी रिपेर्टों में शामिल करते हैं.
अगर कोई आतंकवादी हमले होने की आशंका होती है तो पुलिस के पास ऐसे लोगों और इलाकों के बारे में जानकारी मौजूद रहने से मदद मिलती है.
गलाती ने अपने बयान में बार बार उर्दू बोलने वाले लोगों को शक से देखे जाने का ज़िक्र किया है.
लेकिन उनका कहना है कि अगर अतंकवाद से लड़ाई लड़नी है तो ऐसे लोगों पर नज़र रखनी होगी जो या तो उसी समुदाए से संबंधित हैं, या वही भाषा बोलते हैं जैसी अधिकतर आतंकवादियों द्वारा बोली जाती है.
उन्होंने तर्क दिया कि अगर कोई आतंकवादी शहर में छुपना चाहेगा तो वह इनही इलाकों में छुपेगा जहां सांस्कृतिक और सामाजिक लिहाज़ से उसी की तरह के लोग रहते हैं और उसकी ही भाषा बोलते हैं.
लेकिन न्यूयॉर्क में रहने वाले बहुत से मुसलमान और पाकिस्तानी मूल के लोगों को इस तरह निशाना बनाए जाने पर सख़्त एतराज़ है.
पाकिस्तानी मूल के अमरीकी एनुल हक कहते हैं, “पुलिस का ख्याल यह था कि हमारे समुदाए में कुछ लोग ऐसे हैं जो शांतिप्रिय नहीं हैं और वह घरेलू आतंकवाद को भी बढ़ावा देते हैं. लेकिन उनको खुफ़िया निगरानी के बावजूद ऐसा कोई सूराग नहीं मिला. फिर भी पुलिस अब भी यही समझती है कि हम अमन पसंद नहीं हैं. और इस तरह की सोच से अमरीका में रहने वाले हम जैसे मुसलमानों और हमारी आने वाली नस्लों तक को मुशिक्ल का सामना रहेगा. इसका असर बहुत अर्से तक रहेगा.”
अरबी मूल के लोगों की भी निगरानी
गलाती ने अपने बयान में यह भी कहा कि अरबी मूल के लोगों पर भी खास निगरानी रखी जाती है, खासकर इसलिए कि कहीं वह लेबनानी गुट हिज़्बुल्लाह के एजेंट होने के खतरे में. अमरीका ने हिज़्बुल्लाह को एक आतंकवादी गुट करार दिया हुआ है.
अब कई मुसलमान और अरब मूल के लोग कहते हैं कि गलाती के बयान के बाद पुलिस विभाग से उनका विश्वास उठ गया है.
न्यूयॉर्क में अरबी मूल की अमरीकी संस्था अरब अमेरिकन एसोसिएशन की अध्यक्ष लिंडा सरसूर कहती हैं, “इंटेलिंजेंस सेल के मुखिया के इस हल्फ़िया बयान से यह साफ़ हो गया है कि पुलिस कमिशनर रेमंड कैली झूठ बोल रहे थे जब उन्होंने कहा था कि मुसलमानों की खुफ़िया निगरानी नहीं हो रही बल्कि सिर्फ़ सूराग मिलने पर जांच की जाती है. मैं समझती हूं कि पुलिस के लिए यह बहुत शर्म की बात है. और हमारा तो पुलिस पर से पूरा विश्वास उठ चुका है.”
अब बहुत से मुसलमान ये भी मांग कर रहे हैं कि पुलिस विभाग को अपनी नीतियां बदलनी चाहिए और इस मामले में जिन अधिकारियों ने खुफ़िया निगरानी के आदेश दिए उनके खिलाफ़ सरकार सख़्त कार्रवाई करे.
भारतीय मूल के शेख उबैद, एक मुस्लिम संस्था इंडियन अमेरिकन कांउसिल के सचिव हैं.
वह कहते हैं,”हम तो बहुत दिनों से यही मांग कर रहे हैं कि खुफ़िया निगरानी के सिलसिले में कमिश्नर रेमंड कैली को निलंबित किया जाए और मुसलमानों से माफ़ी मांगी जाए. और यह भी सुनिश्चित किया जाए कि ऐसी गैरकानूनी निगरानी दोबारा नहीं की जाएगी. हम तो पुलिस के साथ हमेशा सहयोग करते आए हैं. और अब भी करना चाहते हैं. ”
सबसे बड़ा पुलिस विभाग
न्यूयॉर्क का पुलिस विभाग अमरीका का सबसे बड़ा पुलिस विभाग है.
लेकिन अब इस विवादित निगरानी कार्यक्रम के बाद मुसलमानों और अन्य मानवाधिकार संस्थाओं के दबाव के चलते शहर की काउंसिल में एक प्रस्ताव रखा गया है जिसके तहत विभाग के कामकाज पर नज़र रखने के लिए एक इंस्पेक्टर जनरल की तैनाती की मांग की जा रही है.
शहर के मेयर माईकल ब्लूमबर्ग और पुलिस कमिश्नर इंस्पेक्टर जनरल की तैनाती का विरोध कर रहे हैं.
इसके अलावा खुफ़िया निगरानी के सिलसिले में शहर में रहने वाले मुसलमानों के कई संगठन मिलकर न्यूयॉर्क पुलिस विभाग के खिलाफ़ अदालत में मुकद्दमा दायर करने की तैय्यारी भी कर रहे हैं.
और इसी सिलसिले में अगले सप्ताह कई मुसलिम संगठनों की बैठक भी बुलाई गई है.