आप के संयोजक और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल 23 अप्रैल को वाराणसी से नामांकन के समय ऐसी गलतियां कर सकते हैं, जिससे उनका नामांकन रद्द हो जाए। दरअसल, वाराणसी में अरविंद केजरीवाल को इन दिनों इतना विरोध झेलना पड़ रहा है कि अरविंद दिल्ली के पैटर्न पर वाराणसी में पहले तो यह कहकर चुनाव मैदान में कूद पड़े कि वाराणसी की जनता की इच्छा है कि वह चुनाव लड़ें। लेकिन हाल में भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी का जिस कदर जोर-शोर से प्रचार अभियान परवान चढ़ा है उससे केजरी बाबू की बोलती ही बंद हो गई है। वे जहां भी जा रहे हैं, वहाँ भारी विरोध हो रहा है। कुछ दिनों पहले उन पर अंडे फेंके गए और फिर काली स्याही फेंकी गई, लेकिन केजरीवाल प्रथमद्रष्टा टस से मस होते नहीं दिख रहे।
दरअसल, केजरीवाल बड़ी मुसीबत में फंस गए हैं। वाराणसी से अगर वो सीधे पैर लौटते हैं और अब नहीं लड़ते हैं तो उनके राजनीतिक करियर पर भगोड़ा का प्रश्न चिह्न फिर से उपलाने लगेगा, क्योंकि, पहले ही दिल्ली की सीएम कुर्सी को छोड़कर उन्होंने आफत मोल ले ली है और मजे की बात की उन्होंने इसपर मीडिया के जरिए अफसोस भी जाहीर कर लिया। ऐसे में वाराणसी से भागना तो उनके लिए मुश्किल है। अब विश्वस्त सूत्रों के हवाले से बताया जा रहा है कि अरविंद ऐसी चालें चलने की सोच रहे हैं जिससे उनके चुनाव लड़ने पर खुद ब-खुद ग्रहण लग जाए और वो सम्मानजनक ढंग से वाराणसी से विदा ले सकें।
ऐसे में केजरीवाल या तो 23 अप्रैल को नामांकन के दिन ऐसा कोई हेरफेर कर दें या गलती कर दें जिससे उनका नामांकन खुद रद्द हो जाए। या तो वो ऐसी कोई बड़ी जानकारी छिपा लें, जिससे उनकी उम्मीदवारी पर असर पड़े। या तो वो ऐसा कोई व्यान देदें, जिससे उनकी उम्मीदवारी रद्द हो सकता हो।
ज्ञात रहे कीजरीवाल का वाराणसी में विरोध की हद यहां तक है कि उन्हें विरोध के चलते वाराणसी में अपना घर तक बदलना पड़ा है। केजरीवाल अभी तक संकटमोचन मंदिर के प्रमुख विशम्भर मिश्रा के घर पर रह रहे थे, लेकिन विरोध के कारण उन्हें दूसरी जगह जाना पड़ा है। जब चारों तरफ केजरीवाल का विरोध होने लगा तो महंत के ऊपर एक सामाजिक दबाव बनने लगा, जिसके चलते महंत ने केजरीवाल को जगह बदलने को कहा और उन्होंने फिर अपना ठिकाना बदल लिया। हालांकि केजरीवाल के लिए यहां आनन-फानन में एक ऑफिस बनाया गया है और वह फिलहाल यहीं पर रहेंगे। लेकिन वहां भी आसपास केजरी को नमो-नमो की गूंज सताने लगी है।
दरअसल, वाराणसी में अरविंद के सामने इतने सवाल उपज रहे हैं कि उनके लिए जवाब देना भी मुश्किल है। जब उन्हें अन्ना का पहले दूत और अब उनके अलग हटकर आका बनने की बात पूछी जाती है, तो उनके पास तर्क तो होता है, लेकिन जिस लोकपाल बिल के बल वह यहां तक पहुंचे उस पर चुप्पी क्यों है, इसका जवाब के लिए वो दिल्ली सरकार में रहते कदम को बताने लगते हैं, लेकिन दिल्ली सरकार से जिस कदर हटे, इस पर वो मौन हो जाते हैं।
केजरी बाबू की परेशानी यहीं तक नहीं है। उनके विश्वसनीय शागिर्द और अमेठी से लोकसभा प्रत्याशी कुमार विश्वास के प्रचार में अब आप की टोपी पर केजरी नहीं, विश्वास की फोटो देखी जा रही है। केजरीवाल के लिए यह भी मुसीबत है, क्योंकि हाल में आप के एक नेता ने विश्वास को आप का केजरीवाल से बड़ा नेता बताया था, जिसके बाद उसे बाहर कर दिया गया। चुनाव के बाद केजरी और विश्वास के बीच वह भी चिंगारी सुलगने वाली है।
अंदर – अंदर केजरीवाल को यह डर सताने लगा है कि अगर वो वाराणसी में चुनाव बुड़ी तरह हार जाएँ, और कुमार विश्वास चुनाव जीत जाएँ, या केजरीवाल और कुमार विश्वास दोनों ही चुनाव हार जाएँ और विश्वास के हार का अंतर कम हो या कहें कुमार विश्वास को उनसे बहुत ही ज्यादा मत मिले दोनों ही हालत में केजरीवाल की मुश्किलें बढ़नेवाली है।
ऊपर से कोर्ट की सख्ती केजरीवाल पर अलग है। दिल्ली की एक अदालत ने अरविंद केजरीवाल और आप के तीन अन्य नेताओं को आगाह है किया कि केंद्रीय दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल के बेटे वकील अमित सिब्बल की ओर से दायर आपराधिक मानहानि मामले में 24 मई को पेश होने में यदि वे नाकाम रहते हैं तो ‘मजबूरन उसे कार्रवाई’ करनी होगी।
चलिए अगर केजरी वापस नहीं होते हैं और लोकसभा चुनाव लड़ते हैं और चुनाव हार जाते हैं तो भी उनके पास रेडीमेड जवाब पहले से ही है। इस हार के लिए वाराणसी की जनता ही जिम्मेदार है, क्योंकि केजरीवाल कहेंगे कि “मैं क्या जी, मैं तो बहुत ही मामूली आदमी हूँ, मेरी कोई औकाद नही है, वो तो वाराणसी की जनता ने मुझे कहा कि खड़े हो जाओ तो मैं खड़ा हो गया। मैं तो सारे निर्णय जनता से पूछ कर करता हूं।“
खैर, बाकी परेशानियों से तो केजरीवाल चुनाव के बाद निपट लेगें, लेकिन अभी फिलहाल उन्हें यह समझ में नहीं आ रहा है कि वाराणसी से इस चुनावी रणभूमि से वापस कैसे मुड़ा जाए, वो केजरीटर्न क्या हो।